बरूण जा पर रासुका लगाना मुसलिम आतंकवादियों को हिन्दुओं का खुलेआम कत्लेआम करने के समान है।हिन्दू मिटाओ- हिन्दू भगाओ अभियान
1985 में अलकायदा की स्थापना ने बाद बाकी सारी दुनिया की तरह भारत में भी मुस्लिम जिहादियों को नये सिरे से संगठित होने का मौका मिला ।
जिसका परिणाम कश्मीर घाटी में 1989-90 में मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दू मिटाओ- हिन्दू भगाओ अभियान के रूप में देखने को मिला । जिसके परिणामस्वरूप आज सारी कश्मीर घाटी को हिन्दुविहीन कर दिया गया ।
जिस तरह ये सैकुलर गिरोह हिन्दुओं पर किय गए हर हमले के बाद राम मन्दिर का तर्क देकर इसे बदले में की गई कार्यवाही बताकर सही ठहराने का दुससाहस करता है। अगर इनके इस तर्क को माना जाए तब तो जिस तरह मुस्लिम जिहादियों ने मुस्लिमबहुल कश्मीर घाटी से सब हिन्दुओं का सफाया कर दिया उसी तरह बदले में हिन्दुओं को सारे हिन्दुबहुल भारत से मुसलमानों का सफाया कर देना चाहिये ।
जिस तरह कश्मीर में वहां की मुस्लिम पुलिस ,प्रैस, नेताओं ने मुसलमानों के हिन्दुमिटाओ-हिन्दुभगाओ अभियान को सफल बनाने में हर तरह का सहयोग दिया तो इनके इस तर्क के अनुसार सब हिन्दू पुलिस, प्रैस व मीडिया व नेताओं को हिन्दुओं के इस मुस्लिम मिटाओ मुस्लिम भगाओ अभियान में सहयोग करना चाहिए ।
जिस तरह हुरियत कान्फ्रैंस ने सारे देश व संसार के मुसलमानों का समर्थन आर्थिक सहयोग इन मुसलमानों के हिन्दू मिटाओ हिन्दू-भगाओ अभियान के लिए जुटाया वैसा ही समर्थन व आर्थिक सहयोग सब हिन्दू संगठनों को मिलकर हिन्दुओं के इस अभियान को सफल बनाने के लिए जुटाना चाहिए ।
अतः हम तो यही कहेंगे कि अगर हिन्दू इस तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रहे हैं तो उसे उनकी कमजोरी मानकर उन्हें साम्प्रदादिक व आतंकवादी कहकर दुनिया में फजूल में बदनाम न किया जाए क्योंकि जिस दिन हिन्दुओं ने इस बदनामी से तंग आकर इसे यथार्थ में बदलने का मन बना लिया उस दिन न हिन्दुओं पर हमला करने वाले बचेंगे न हमलों का समर्थन करने वाले बचेंगे ।
हिन्दू मुस्लिम जिहादियों के हर हमले को सहन कर रहे हैं अपने हिन्दू भाईयों को अपने सामने कत्ल होता देख रहे हैं। फिर भी इन्सानित व मानवता की रक्षा की खातिर खामोश हैं पुलिस प्रशासन सरकार से न्याय की उम्मीद लगाये बैठे हैं ।
दूध पीते बच्चों तक को इन जिहादियों ने आज 21बीं शताब्दी में हिन्दुबहुल भारत में हलाल कर दिया। सब तमाशा देखते रहे हिन्दू को ही बदनाम करते रहे और हिन्दू फिर भी खामोश रहा । अल्पसंख्यकवाद के नाम पर ईसाईयों व मुसलमानों के बच्चों को विशेषाधिकार देकर हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रख दिया फिर हिन्दू खामोश रहा । सेना में हिन्दुओं की अधिक संख्या पर सवाल उठा दिया गया फिर भी हिन्दू खामोश रहा । हिन्दुओं के लगभग हर सन्त को बदनाम करने का दुस्साहस किया फिर भी हिन्दू खामोश रहा । अन्त में हिन्दू धर्म के आधार स्तम्भ भगवान राम के अस्तित्व को नकार दिया फिर भी हिन्दू खामोश रहा । ये सब कुछ सहने के बाद हिन्दू को दुनिया भर में आतंकवादी कहकर बदनाम कर दिया हिन्दू फिर भी खामोश रहा ।
लेकिन अब हिन्दू खामोश नहीं बैठने वाला । अब उसने इन हमलों से खुद निपटने का मन बना लिया है अब वो समझ गया है कि ये वो ही मुस्लिम जिहादी हमला है जिसका सामना हिन्दुओं ने सैंकड़ों वर्षों तक किया है। इस आतंकवादी हमले का सामना हमें कृष्ण देवराय, रानी दुर्गावती, बन्दा सिंह बहादुर जैसे महान योद्धाओं की तरह ही करना पड़ेगा ।
इसके लिए हमें वो सब मार्ग अपनाने होंगे जो मुस्लिम आतंकवादी हिन्दुओं को मारने के लिए अपना रहे हैं ।
हमें महाराणा प्रताप व छत्रपति शिवाजी जैसे वीर योद्धाओं के उस सबक को फिर से याद करना होगा जिसके अनुसार मुस्लिम आतंकवाद को खत्म करने के लिए मुस्लिम जिहादियों को ढूंढ-ढूंढ कर उनके घर में घुस कर मारना होगा ।
हमें वीर योद्धा पृथ्वीराज राज द्वारा की गई गलती से मिले सबक को याद रखकर उस पर अमल करना होगा । अगर वीर योद्धा पृथ्वी राज कब्जे में आये उस मुस्लिम जिहादी राक्षस मुहमद गौरी को न छोड़ता तो हिन्दुओं को इतना नुकसान न उठाना पड़ता।
हिन्दुओं को गीता के इस उपदेश पर हर वक्त अमल करने की जरूरत है ।
धर्मों रक्षति रक्षितः
हम हर बार इन मुस्लिम जिहादी राक्षसों के प्रति दया दिखाने की बेवकूफी करते हैं और नुकसान उठाते हैं।
क्या आपको याद है कि जिस मुस्लिम जिहादी ने धन तेरस के दिन दिल्ली में बम्ब विस्फोट कर सैंकड़ों हिन्दुओं की जान ली । विस्फोट वाले स्थान पर बच्चों की सैंडलों के ढेर लग गए। उस स्थान पर चारों तरफ मानव के मांस के जलने की दुर्गंध फैल गई । वो मुस्लिम जिहादी एक बार पुलिस ने पकड़ कर सरकार के हवाले कर दिया था ।
उसे सैकुलर जिहाद समर्थक सरकार ने पढ़ालिखा निर्दोष बताकर छोड़ दिया था ।
एक बात तो साफ और स्पष्ट है कि सारा जिहाद समर्थक सेकुलर गिरोह अपनी इतनी बेवकुफीयों की वजह से इतने हिन्दुओं का कत्ल करवाने के बावजूद कुछ सीखने को तैयार नहीं है। न मुस्लिम आतंकवादियों की हर हरकत को जायज ठहराने वाले जावेद अखत्र, फारूकी, अब्दुल रहमान अंतुले जैसे आतंकवादियों को अलग थलग करने की किसी भी कोशिश का साथ देने को तैयार हैं ।
तो फिर कानून से इस समस्या का समाधान कैसे निकल सकता है क्योंकि अगर ये गिरोह सरकार में है तो खुद मुस्लिम जिहादियों के विरूद्ध कार्यवाही करेगा नहीं और अगर करना भी चाहेगा तो इसके मुस्लिम जिहादियों के समर्थक सहयोगी करने नहीं देंगे ।
अगर ये जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गठवन्धन विपक्ष में है तो सरकार को आतंकवादियों के विरूद्ध कठोर व निर्णायक कार्यवाही करने नहीं देगा । आतंकवादियों के विरूद्ध कार्यवाही को मुसलमानों के विरूद्ध कार्यवाही करार देकर अपल्पसंख्यकों पर हमला बताकर मुसलमानों को भड़कायेगा । सारी दुनिया में हिन्दुओं व भारत को मुस्लिम विरोधी बताकर बदनाम करेगा ।
अब इन सब हालात में सिर्फ तीन समाधान के रास्ते बचते हैं।
पहला सब शान्तिप्रिय देशभक्त लोग अपने छोटे-छोटे निजी स्वार्थ भुलाकर मिलकर सिर्फ एक बार इस तरह वोट करें कि आने वाले चुनावों में भाजपा को दो तिहाई बहुमत देकर इस आतंकवाद समर्थक गिरोह के सब सहयोगियों के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त करवायें ताकि ये देशद्रोही सेकुलर गिरोह विपक्ष में बैठने के भी काबिल न रहे और अगर रहे तो इतनी कम संख्या में कि ये सरकार द्वारा किये जा रहे किसी भी आतंकवाद विरोधी काम में टांग न अड़ा सकें ।
अगर इसके बाद भी भाजपा इस समस्या का हल न कर पाये तो भाजपा अपने आप सेना को बुलाकर अपने राष्ट्रवादी होने का प्रमाण देकर देश की बागडोर सेना के हाथ में सौंप दे । अगर भाजपा न खुद आतंकवादियों के विरूध निर्णायक कार्यवाही करे न सता सेना को सौंपे तो जनता उसका भी आने वाले चुनाव में सेकुलर गिरोह की तरह सफाया कर किसी ज्यादा देशभक्त विकल्प को सता में लाए।
दूसरा सेना शासन अपने आप अपने हाथ में लेकर सब जिहादियों व उनके समर्थकों का सफाया अपने तरीके से करे । सब देशभक्त संगठन खुले दिल से सेना की इस कार्यवाही का सहयोग करें ।
तीसरा अगर इन में से कुछ भी न हो पाय तो फिर हर देशभक्त हिन्दू -परिवार गुरू तेगबहादुर जी के परिवार के मार्ग पर चलकर उन की शिक्षाओं को अमल में लाते हुए धर्म की रक्षा की खातिर लामबंद हो जाए और कसम उठाये कि जब तक इन मुस्लिम जिहादी राक्षसों,वांमपंथी आतंकवादियों व धर्मांतरण के ठेकेदारों का इस अखण्ड भारत से नामोनिशान न मिट जाए तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे चाहे इसके लिए कितने भी बलिदान क्यों न देने पड़ें ।
हम ये दावे के साथ कह सकते हैं कि पहला और दूसरा समाधान सब हिन्दुओं बोले तो हिन्दू सिख बौध जैन मुसलमान ईसाई सब शान्तिप्रय देशभक्त देशवासियों के हित में है । इसलिए सब देशभक्त लोगों को मिलकर इस हल को कामयाब बनाने का अडिग निर्णय कर समस्या का समाधान निकाल लेना चाहिये ।
पर देश की परस्थितियों व इस देशद्रोही सेकुलर गिरोह की फूट डालो और राज करो के षड्यन्त्रों को देखते हुए इस समस्या का लोकतान्त्रिक हल असम्भव ही दिखता है क्योंकि आज मुसलमान इस सेकुलर गिरोह के दुशप्रचार से प्रभावित होकर हर हाल में उस दल को एक साथ वोट डालता है जो उसे सबसे ज्यादा हिन्दुविरोधी-देशविरोधी दिखता है ।
ईसाई ईसाईयत को आगे बढ़ाने वालों व धर्मांतरण की पैरवी करने वालों को वोट डालता है ।
बस एक हिन्दू है जिसका एक बढ़ा हिस्सा आज भी मुसलमानों व ईसाईयों द्वारा अपनाइ जा रही हिन्दुविरोधी वोट डालो नीति को नहीं समझ पा रहा है और अपने खून के प्यासे इस सेकुलर गिरोह को वोट डालकर अपने बच्चों का भविष्य खुद तवाह कर रहा है।
हिन्दू इस देशविरोधी-हिन्दुविरोधी नीति को धर्मनिर्पेक्षता मानकर हिन्दूविरोधियों को वोट डालकर अपनी बरबादी को खुद अपने नजदीक बुला रहा है । हिन्दू की स्थिति विलकुल उस कबूतर की तरह है जो बिल्ली को अपनी तरफ आता देखकर आंखे बंद कर यह मानने लग पड़ता है कि खतरा टल गया और बिल्ली बड़े आराम से उसका सिकार करने में सफल हो जाती है ।
सारे आखण्ड भारत में चुन-चुन कर बहाया गया व बहाया जा रहा हिन्दुओं का खून चीख-चीख कर कह रहा है कि इन मुस्लिम जिहादियों व उनके सहयोगी इस देशबिरोधी सैकुलर गिरोह का हर हमला सुनियोजित ढंग से हिन्दुओं को मार-काट कर, उनकी सभ्यता संस्कृति को तबाह कर अपने देश भारत से हिन्दुओं का नमो-निसान मिटाकर सारे देश को मुस्लिम जिहादी राक्षसों व धर्मांतरण के ठेकेदारों के हवाले करने के लिए किया जा रहा है । परन्तु हिन्दू की बन्द आंख है कि खुलती ही नहीं ।
अगर सिर्फ एक बार हिन्दू इन धर्मनिर्पेक्षता के चोले में छुपे हिन्दूविरोधियों की असलियत को समझ जाए तो अपने आप इन सब गद्दारों का नामोनिशान मिट जाएगा पर दिल्ली के चुनाव परिणाम ने दिखा दिया कि हिन्दुओं का बढ़ा वर्ग अभी भी इन देशद्रोहियों की असलियत को नहीं पहचान पाया है ।उसने फिर उस दल को वोट कर दिया जिसने पोटा हटाकर व अफजल को फांसी न देकर मुस्लिम जिहादियों का हौसला बढ़ाकर शहीदों के बलिदान का अपमान कर हजारों हिन्दुओं को कत्ल करवा दिया जबकि सब मुसलमानों ने मिलकर मुस्लिम आतंकवादियों का समर्थन करने वाले सेकुलर गिरोह को बोट डाला ।
अतः सैनिक शासन ही इन दो में से ज्यादा सम्भव दिखता है वो भी कम से कम 20-25 वर्ष तक ।
अगर सेना अपने आप को देश की सीमांओं की रक्षा तक सीमित रखती है तो हिन्दूक्राँति ही सारी समस्या का एकमात्र सरल हल है जिसकी देश को नितांत आवश्यकता है।
हिन्दूक्राँति तभी सम्भव है जब सब देशभक्त हिन्दू संगठन एक साथ आकर, आतंकवादियों को समाप्त करने की प्रक्रिया से सबन्धित छोटे-मोटे मतभेद भुलाकर, अपने-अपने अहम भुलाकर गद्दार मिटाओ अभियान चलाकर इन देशद्रोहियों को मिटाकर भारत को इस कोढ़ से मुक्त करवायें। इस अभियान में जो भी साथ आता है उसे साथ लेकर, जो बिरोध या हमला करता है उसे मिटाकर आगे बढ़ने की जरूरत है ।
क्योंकि समाधान तो तभी सम्भव है जब हिन्दुओं का खून बहाने वालों को उनके सही मुकाम पर पहुँचाया जाए व सदियों से इतने जुल्म सहने वाले हजारों वर्षों तक अपने हिन्दू राष्ट्र की रक्षा के लिए खून बहाने वाले हिन्दुओं के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए उन्हें उनके सपनों का राम राज्य बोले तो हिन्दूराष्ट्र भारत सदियों से काबिज होकर बैठे आक्राँताओं से मुक्त मिले ।
हिन्दुओं को क्यों अपने शत्रु और मित्र की समझ नहीं हो पा रही ?
क्यों हिन्दू आतमघाती रास्ते पर आगे बढ़ रहा है ?
क्यों उसको समझ नहीं आता कि जयचन्द की इस हिन्दुविरोधी मुस्लिमपरस्त सोच ने हिन्दुओं को अपूर्णीय क्षति पहुँचाई है ?
जिहादी आतंकवाद व धर्मांतरण समर्थक ये सैकुलर सोच हिन्दुओं की कातिल है ।
वैसे भी ये आत्मघाती सोच सैंकड़ों वर्षों की गुलामी का परिणाम है अब हमें अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए इस आत्मघाती गुलामी की सोच से बाहर निकलना है। न केवल खुद को बचाना है बल्कि इस देशविरोधी सैकुलर गिरोह के सहयोग से मुस्लिम जिहादियों के हाथों कत्ल हो रहे अपने हिन्दू भाईयों भी को बचाना है। इनकी रक्षा में ही हमारी रक्षा है क्योंकि जिस तरह आज बो मारे जा रहे हैं अगर आज हम संगठित होकर एक साथ मिलकर इन मुस्लिम जिहादियों से न टकराये तो बो दिन दूर नहीं जब उसी तरह हम भी इन राक्षसों द्वारा इन धर्मनिर्पेक्षताबादी जयचन्दों के सहयोग से मारे जायेंगे ।
अगर अब भी आपको लगता है कि हिन्दुओं का कत्ल नहीं हो रहा है, ये हमले मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर नहीं किये जा रहे, हिन्दुओं का नमो-निसान मिटाने के लिए मुसलमानों द्वारा हिन्दू-मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान नहीं चलाया जा रहा । क्योंकि ये देशद्रोही जिहाद समर्थक सैकुलर गिरोह आपको इस सच्चाई से दूर रखने के लिए हिन्दुविरोधी मीडिया का सहारा लेकर यही तो प्रचारित करवाता है ।
तो जरा ये कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को मार काट कर भगाने के लिए चलाए गय सफल अभियान के बाद मुसलमानों द्वारा जम्मू के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चलाए जा रहे हिन्दू मिटाओ-हिन्दू भगाओ अभियान के दौरान हलाल किये जा रहे हिन्दुओं का विबरण देखो और खुद सोचो कि किस तरह मुस्लिम जिहादियों ने हिन्दुओं का कत्लेआम इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों का सरंक्षण पाकर बेरोक टोक किया जो आज भी जारी है !
अलकायदा की स्थापना 1985 में होने के बाद कश्मीर में अल्लाह टायगरस नामक जिहादी संगठन ने 1986 आते-आते वहां की मुस्लिमपरस्त जिहादी आतंकवाद समर्थक सैकुलर सरकार के रहमोकर्म व सहयोग से अपने आपको इतना ताकतवर बना लिया कि ये हिन्दुओं के विरूद्ध खुलेआम जहर उगलने लगा ।
जिसके परिणांस्वरूप हिन्दुओं पर पहला हमला 1986 मे अन्नतनाग में हुआ । दिसम्बर 1989 में जोगिन्दर नाथ जी का नाम अन्य तीन अध्यापकों के साथ नोटिस बोर्ड पर चिपकाकर उसे घाटी छोड़ने की धमकी दी गई । ये तीनों राधाकृष्ण स्कूल मे पढ़ाते थे । धमकाने का सिलसिला तब तक जारी रहा जब तक जून 1989 में जोगिन्दर जी वहां से भाग नहीं गए ।
हमें यहां पर यह ध्यान में रखना होगा कि हिन्दु मिटाओ हिन्दु भगाओ अभियान चलाने से पहले 1984-86 के वीच में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुस्लिम जिहादीयों को भारतीय कश्मीर में वसाया गया और घाटी में जनसंख्या संतुलन मुस्लिम जिहादियों के पक्ष में वनाकर हिन्दुओं पर हमले शुरू करवाय गए। ये सब पाकिस्तान के इसारे पर इस सेकुलर गिरोह की सरकारों ने किया।
2 फरवरी 1990 को सतीश टिक्कु जी जोकि एक समाजिक कार्यकर्ता व आम लोगों का नेता था, को जिहादियों ने शहीद कर दिया ।
23 फरवरी को अशोक जी, जो कृषि विभाग में कर्मचारी थे, की टाँगो में गोली मारकर उन्हें घंटों तड़पाकर बाद में सिर में गोली मारकर उनका कत्ल कर दिया गया ।
एक सपताह बाद इन मुस्लिम जिहादियों द्वारा नवीन सपरु का कत्ल कर दिया गया ।
27 फरवरी को तेज किशन को इन जिहादियों ने घर से उठा लिया और तरह-तरह की यातनांयें देने के बाद उसका कत्ल कर उसे बड़गाम में पेड़ पर लटका दिया ।
19 मार्च को इखवान-अल-मुसलमीन नामक संगठन के जिहादियों ने बी के गंजु जी जो टैलीकाम इंजनियर का काम करते थे, को घर में घुस कर पड़ोसी मुसलमानों की सहायता से मारा ।
उसके बाद राज्य सूचना विभाग में सहायक उपदेशक पी एन हांडा का कत्ल किया गया ।
70 वर्षीय स्वरानन्द और उनके 27 वर्षीय बेटे बीरेन्दर को मुस्लिम जिहादी घर से उठाकर अपने कैंप में ले गए । वहां उनकी पहले आंखे निकाली गईं ,अंगुलियां काटी गईं फिर उनकी हत्या कर दी गई ।
मई में बारामुला में सतीन्दर कुमार और स्वरूपनाथ को यातनांयें देने के बाद कत्ल कर दिया गया ।
भुसन लाल कौल का आंखे निकालने के बाद जिहादियों द्वारा कत्ल कर दिया गया ।
के एल गंजु जो सोपोर कृषि विश्वविद्याल्य में प्रध्यापक का काम करते थे ,को उनके घर से पत्नी व भतीजे सहित उठाकर झेलम नदी के किनारे एक मस्जिद में ले जाया गया । वहां पर गंजु जी का यातनांयें देने के बाद कत्ल कर दिया गया । भतीजे को नितम्बों में गोली मारकर झेलम में फैंक दिया गया । पत्नी का बलात्कार करने के बाद कत्ल कर दिया गया ।
सरलाभट्ट जी जो श्रीनगर में सेर ए कश्मीर चिकित्सा कालेज में नर्स थी जेकेएलएफ के जिहादियों ने हासटल से उठाकर कई बार बलात्कार करने बाद कत्ल कर दिया । क्योंकि उसे मुस्लिम जिहादियों और वहां काम करने वाले डाक्टरों के बीच के सम्बन्धों का पता चल चुका था ।
मई में सोपियां श्रीनगर में बृजलाल उनकी पत्नी रत्ना व बहन सुनीता को मुस्लिम जिहादियों ने अगवा कर लिया । बृज लाल जी को कत्ल कर दिया गया । महिलाओं का बलात्कार करने के बाद उन्हें जीप के पीछे बाँध कर प्रताड़ित करने के बाद उनका कत्ल कर दिया गया ।
मुस्लिम जिहादियों द्वारा प्रशासन में बैठे अपने आतंकवादी साथीयों के सहयोग से हिन्दुओं पर अत्याचारें का सिलसिला बेरोकटोक जारी था जिसमें जान-माल के साथ-साथ हिन्दुओं की मां-बहन–बेटी भी सुरक्षित नहीं थी । जून आते-आते सैंकड़ों हिन्दुओं का कत्ल किया जा चुका था ।
दर्जनों महिलाओं की इजत को तार-तार किया जा चुका था । मस्जिदों व उर्दु प्रैस के माध्यम से मुस्लिम जिहाद का प्रचार-प्रसार जोरों पर था । ये जिहाद कश्मीर के साथ-साथ डोडा में भी पांव पसार चुका था। हिन्दुओं में प्रशासन व जिहादी आतंकवादियों के बीच गठजोड़ से दहशत फैल चुकी थी । प्रशासन का ध्यान हिन्दुओं की रक्षा के बजाए मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर किये जा रहे अत्याचारों व हिन्दुओं के नरसंहारों को छुपाने पर ज्यादा था । परिणामस्वरूप कश्मीर घाटी से हिन्दुओं का पलायन शुरू हो चुका था । जून तक 50,000 से अधिक हिन्दू परिवार घाटी छोड़ कर जम्मू व देश के अन्य हिस्सों में शरण लेने को मजबूर हो चुके थे ।
पहली अगस्त 1993 को जम्मू में डोडा के भदरबाह क्षेत्र के सारथल में बस रोकर उसमें से हिन्दुओं को छांट कर 17 हिन्दुओं का मुस्लिम जिहादियों द्वारा नरसंहार किया गया ।
14 अगस्त 1993 को किस्तबाड़ डोडा जिले में मुस्लिम जिहादियों ने बस रोककर उसमें से हिन्दुओं को अलग कर 15 हिन्दुओं का कत्ल कर दिया व हिन्दुओं के साथ सफर कर रहे मुसलमानों को जाने दिया।
5 जनवरी 1996 में डोडा के बारसला गांव में पड़ोसी मुस्लिम जिहादियों द्वारा 16 हिन्दुओं का कत्ल कर दिया गया
12 जनवरी 1996 डोडा के भदरबाह में मुसलमानों द्वारा 12 हिन्दुओं का कत्ल
6 मई 1996 डोडा के सुम्बर रामबन तहसील में 17 हिन्दुओं का मुस्लिम जिहादियों द्वारा कत्ल
7-8 जून को डोडा के कलमाड़ी गांव में मुसलमानों द्वारा 9 हिन्दुओं का कत्ल
1997
25 जनवरी को डोडा जिला के सम्बर क्षेत्र में मुसलमानों द्वारा 17 हिन्दुओं का कत्ल
26 जनवरी को बनधामा श्रीनगर में 25 हिन्दुओं का कत्ल मुस्लिम जिहादियों द्वारा किया गया ।
21 मार्च 1997 को श्रीनगर के दक्षिण में 20 किलोमीटर दूर संग्रामपुर में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 7 हिन्दुओं को घर से निकाल कर कत्ल कर दिया गया
7 अप्रैल को संग्रामपुर में 7 हिन्दुओं का कत्ल
15 जून को गूल से रामबन जा रही बस से मुस्लिम जिहादियों द्वारा 3 हिन्दू यात्रियों को उतार कर गोली मार दी गई ।
24 जून को जम्मू के रजौरी के स्वारी में 8 हिन्दुओं का कत्ल मुसलमानों द्वारा
24 सितम्बर को स्वारी में ही 7 हिन्दुओं का कत्ल पड़ोसी मुस्लिम भाईयों द्वारा
आगे बढ़ने से पहले हम आपको ये बताना जरूरी समझते हैं कि जो भी हिन्दू मारे गए या मारे जा रहे हैं उन्हें मारने वाले सबके सब विदेशी नहीं हैं। इन्हें मारने वाले स्थानीय मुसलमान ही हैं क्योंकि पाकिस्तान से आये मुसलमान 1-2-3 तीन की संख्या में छुपते-छुपाते स्वचालित हथियारों से हिन्दुओं का कत्ल तो कर सकते हैं परन्तु 15-20-40-50 की संख्या में मिलकर हिन्दुओं को हलाल करना,कत्ल से पहले अंगुलियां काटना, उनकी मां-बहन बेटी की इज्जत से खिलवाड़ करना उनके गुप्तांगो पर प्रहार करना,कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना ,आंख निकालना,नाखुन खींचना, बाल नोचना,जिन्दा जलाना,चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं के दूध पिलाने वाले अंगो से,गाड़ी के पीछे बांधकर घसीटते हुए तड़पा-तड़पा कर मारना । ये सब ऐसे कार्य हैं जो स्थानीय मुसलमानों व सरकार के सहयोग व भागीदारी के बिना सम्भव ही नहीं हो सकते हैं । क्योंकि अगर स्थानीय मुसलमान व सरकार इस सब में शामिल न होते तो किसी विदेशी मुस्लिम जिहादी को रहने व छुपने का ठिकाना न मिलता।
ये बात बिल्कुल सपष्ट है कि हिन्दुओं को कत्ल करने में न केवल जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों का सहयोग व भागीदारी रही है बल्कि देश के केरल जैसे अन्य राज्यों के मुसलमानों ने भी इस हिन्दू मिटाओ-हिन्दू भगाओ अभियान में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया है स्थानीय सहयोग की पुष्टि इन जिहादी हमलों में जिन्दा बचे हिन्दुओं व बाकी देश के मुसलमानों के सहयोग की पुष्टि सुरक्षा बलों द्वारा की गई है । सरकारी सहयोग की पुष्टि करने के हजारों प्रमाण मौजूद हैं ।
अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी पाकिस्तानी मुस्लिम जिहादी से शादी कर लेती है तो उस पाकिस्तानी को जम्मू कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है परन्तु अगर जम्मू-कश्मीर की वही लड़की भारत के किसी नागरिक से शादी करती है तो उसकी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता समाप्त हो जाती है ।
हिन्दुओं के कत्ल के आरोपियों को दोषी सिद्ध करने के लिए सरकार अदालत में जरूरी साक्ष्य पेश नहीं करती है। निचली अदालतों द्वारा छोड़े गए दोषियों के विरूद्ध उच्च न्यायालय में अपील तक नहीं की जाती है। ये सब उसी सैकुलर गिरोह व सेकुलर गिरोह की सरकारों द्वारा किया जाता है जो गुजरात के उच्च न्यायालय द्वारा दिय गये हर फैसले को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देकर महाराष्ट्र स्थानान्त्रित करवाता है।
कहीं जम्मू-कश्मीर में देशभक्त लोगों की सरकार न बन जाये इसके लिये गद्दारों से भरी पड़ी कश्मीर घाटी में विधानसभा सीटों की संख्या देशभक्तों से भरे पड़े जम्मू से अधिक है जबकि कश्मीर घाटी में आबादी और क्षेत्रफल जम्मू से कम है ।
सरकार सुरक्षा बलों द्वारा मारे गये मुस्लिम जिहादियों के परिवारों को आर्थिक सहायता देकर उन्हें हिन्दू मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान को चलाये रखने के लिए प्रेरित करती है ।………
कुल मिलाकर मुस्लिम जिहादियों द्वारा चलाए जा रहे हिन्दू मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान की सफलता के पीछे जम्मू-कश्मीर की देशविरोधी सैकुलर सरकारों का योगदान पाकिस्तान से कहीं ज्यादा है क्योंकि पाकिस्तान की स्थापना का आधार ही मुस्लिम जिहाद है अतः मुस्लिम जिहादी आतंकवाद को आगे बढ़ाना उसकी विदेश नीति का प्रमुख हिस्सा होना उस इस्लाम की विस्तारवादी नीति का ही अंग है जिसका हमला भारत 638 ई. से झेलता आ रहा है ।
भारत के नागरिकों के जान-माल की रक्षा करना भारत सरकार का दायित्व है न कि पाकिस्तान का । वैसे भी पाकिस्तान बनवाने वाला यही देशद्रोही सैकुलर गिरोह है जिसने सैंकड़ों वर्षों तक मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर ढाये गये असंख्य जुल्मों से कोई सबक न लेते हुए 1947 में मुसलमानों के लिये अलग देश बनवा देने के बावजूद मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने के बजाए भारत में रख लिया। वो ही मुसलमान आज मुस्लिम जिहादियों को हर तरह का समर्थन व सहयोग देकर आज हिन्दुओं का नामोनिशान मिटाने पर तुले हुए हैं।
1998
25 जनवरी शाम को दो दर्जन मुसलमान श्रीनगर से 30 कि मी दूर गांव वनधामा में आय चाय पी और आधी रात के बाद गांव में 23 हिन्दुओं का कत्ल कर चले गए । सिर्फ विनोद कुमार बच पाया । जिसने अपने मां बहनों रिश्तेदारों को आंसुओं से भरी आंखों से देखा । वहां चारों तरफ खून ही खून बिखरा पड़ा था ।
17 अप्रैल को उधमपुर के प्रानकोट व धाकीकोट मे मुस्लिम जिहादियों द्वारा 29 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । जिसके बाद इन गांव के लगभग 1000 लोग घर से भाग कर अस्थाई शिवरों में रहने लगे ।
18 अप्रैल को सुरनकोट पुँछ में मुसलमानों द्वारा 5 हिन्दुओं का कत्ल
6 मई को ग्राम रक्षा स्मिति के 11 सदस्यों का कत्ल
19 जून को डोडा के छपनारी में 25 हिन्दुओं का कत्ल मुस्लिम जिहादियों द्वारा शादी समारोह पर हमला कर किया गया ।
27 जून को डोडा के किस्तबाड़ में 20 हिन्दुओं का कत्ल
27 जुलाई को सवाचलित हथियारों से लैस मुस्लिम जिहादियों ने थकारी व सरवान गांव में 16 हिन्दुओं का कत्ल किया ।
8 अगस्त को हिमाचल प्रदेश में चम्बा और डोडा की सीमा पर कालाबन में मुसलमानों द्वारा 35 हिन्दुओं का कत्ल
1999
13 फरवरी को उधमपुर में मुसलमानों द्वारा 5 हिन्दुओं का कत्ल
19 फरवरी को मुसलमानों की इसी गैंग ने रजौरी में 19 व उधमपुर में 4 हिन्दुओं का कत्ल
24 जून को मुस्लिम जिहादियों द्वारा अन्नतनाग के सान्थु गांव में 12 बिहारी हिन्दू मजदूरों का कत्ल
1 जुलाई को मेन्धार पुँछ में 9 हिन्दुओं का मुसलमानों द्वारा कत्ल
15 जुलाई को डोडा के थाथरी गांव में मुसलमानों द्वारा 15 हिन्दुओं का कत्ल
19 जुलाई को डोडा के लायता में 15 हिन्दुओं का मुसलमानों द्वारा कत्ल
2000
28 फरवरी को अन्नतनाग में काजीकुणड के पास 5 हिन्दू चालकों का मुसलमानों द्वारा कत्ल
28 फरवरी को इसी जगह पर 5 सिख चालकों का इन्हीं मुसलमानो द्वारा कत्ल
20 मार्च को जम्मू के छटीसिंहपुरा गाँव में मुसलमानों द्वारा 35 सिखों का कत्ल किया गया । यहां 40-50 जिहादियों ने एक साथ मिलकर सिखों पर हमला कर पुरूषों को अलग कर गोली मार दी ।
1अगस्त को पहलगांव में अमरनाथयात्रियों सहित सहित 31 हिन्दुओं का मुसल्मि आतंकवादियों द्वारा कत्ल कर दिया गया ।
1अगस्त को ही अन्नतनाग के ही काजीकुण्ड और अछाबल में 27 हिन्दू मजदूरों का कत्ल ।
2 अगस्त को कुपबाड़ा में मुसलमानों द्वारा 7 हिन्दुओं का कत्ल
इसी दिन डोडा में 12 हिन्दुओं का कत्ल
इसी दिन डोडा के मरबाह में 8 हिन्दुओं का कत्ल
24 नवम्बर को किस्तबाड़ में 5 हिन्दुओं का कत्ल
2001
3 फरवरी को 8 सिखों का कत्ल माहजूरनगर श्रीनगर में मुसलमानों द्वारा किया गया ।
11 फरवरी को रजौरी के कोट चरबाल में 15 गुजरों का कत्ल किया गया जिसमें छोटे-छोटे बच्चों का भी कत्ल कर दिया गया ।इनका अपराध यह था कि ये जिहादियों के कहे अनुसार हिन्दुओं के शत्रु नहीं बने ।
मार्च 17 को अथोली डोडा में 8 हिन्दुओं का कत्ल मुसलमानों द्वारा किया गया ।
मई 9-10 को डोडा के पदर किस्तबाड़ में 8 हिन्दुओं को गला काट कर मुसलमानों द्वारा हलाल कर दिया गया । सब के सब शव क्षत विक्षत थे ।
21 जुलाई को बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा पर हमले में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 13 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । इस हमले मे 15 हिन्दू घायल हुए । जिहादियों ने शेषनाग में बारूदी शुंरगों से विस्फोट कर सैनिकों को गोलीबारी में उलझाकर पवित्र गुफा पर हमला कर भोले नाथ के भक्तों का कत्ल किया ।
21 जुलाई को किस्तबड़ डोडा में 20 हिन्दुओं को मुसलमानों द्वारा मारा गया
22 जुलाई को डोडा के चिरगी व तागूड में 15 हिन्दुओं को उनके घरों से निकाल कर मुसलमानों ने कत्ल किया
4 अगस्त को डोडा के सरोतीदार में मुसलमानों द्वारा 15 हिन्दुओं का कत्ल किया गया ।
6 अगस्त को स्वचालित हथियारों से लैस तीन मुस्लिम जिहादियों ने जम्मू रेलवेस्टेशन पर हमलाकर 11 लोगों का कत्ल कर दिया व 20 इस हमले में घायल हुए ।
2002
1 जनवरी को पूँछ के मगनार गाँव में 6 हिन्दुओं का कत्ल किया गया
7 जनवरी को जम्मू के रामसूर क्षेत्र में 17 व बनिहाल के सोनवे-पोगल क्षेत्र में 6 हिन्दुओं का कत्ल किया गया
17 फरवरी को रजौरी के भामवल-नेरल गाँव में मुसलमानों द्वारा 8 हिन्दुओं का कत्ल किया गया ।
14 मई को जम्मू-पठानकोट राजमार्ग पर कालुचक में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 33 सैनिकों व सैनिकों के परिवारों के लोगों का कत्ल किया गया जिसमें 6 बस यात्री भी शामिल थे ।
13 जुलाई को राजीव नगर(क्वासीम नगर) जम्मू में 28 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । मरने वालों में 3 साल का बच्चा भी था ।
30 जुलाई को जिहादियों ने अमरनाथ यात्रियों को वापिस ला रही कैब को अन्नतनाग में ग्रेनेड हमले से उड़ा दिया ।
6 अगस्त को पहलगांव के पास ननवाव में जिहादियों द्वारा भारी सुरक्षा व्यवस्था में चल रहे आधार शिविर मे अमरनाथ यात्रियों पर हमला कर 9 हिन्दुओं को कत्ल किया गया व 33 को घायल कर दिया ।
29 अगस्त को डोडा और रजौरी में 10 हिन्दुओं का कत्ल किया गया।
24 नवम्बर को जम्मू में ऐतिहासिक रघुनाथ मन्दिर पर हमला कर 14 हिन्दुओं का कत्ल किया गया व 53 हिन्दू इस हमले मे घायल हुए
19 दिसम्बर को जिहादियों ने रजौरी के थानामण्डी क्षेत्र मे तीन लड़कियों को बुरका नहीं पहनने की वजह से गोली मार दी ।बुरका पहनाने पर ये मुस्लिम जेहादी इसलिए भी ज्यादा जोर देते हैं क्योंकि बुरके को ये आतंकवादी सुरक्षावलों को चकमा देकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए उपयोग करते हैं।
2003
24 मार्च को सोपियां के पास नदीमार्ग गांव में मुस्लिम जिहादियों द्वार 24 हिन्दुओं का कत्ल कर दिया गया ।
7 जुलाई को नौसेरा में 5 हिन्दुओं का कत्ल किया गया ।
2004
5 अप्रैल को अन्नतनाग जिले के पहलाम में 7 हिन्दुओं का कत्ल कर दिया गया ।
12 जून को पहलगाम में ही 5 हिन्दूयात्रियों का कत्ल इन मुस्लिम जिहादियों द्वारा किया गया ।
2006
30 अप्रैल को डोडा के पंजदोबी गाँव में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 19 हिन्दुओं का कत्ल
1मई को उधमपुर के बसन्तपुर क्षेत्र में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 13 हिन्दुओं का कत्ल ।
23 मई को श्रीनगर में ग्रेनेड हमले में 7 हिन्दू यात्रियों का कत्ल
25 मई को श्रीनगर में ही 3 हिन्दू यात्रियों का ग्रेनेड हमला कर कत्ल किया गया
फिर 31 मई को ही ग्रेनेड हमला कर 21 हिन्दू घायल किय गए
12 जून को फिर ग्रेनेड फैंक कर 1 यात्री का कत्ल किया गया व 31 घायल किये गए ।
12 जून को ही मुस्लिम जिहादियों द्वारा अन्नतनाग में 8 हिन्दू मजदूरों का कत्ल किया गया व 5 घायल किये गए ।
21 जून को गंदरबल श्रीनगर में मुस्लिम जिहादियों ने ग्रेनेड हमला कर 5 अमरनाथ यात्रियों को घायल किया ।
11 जुलाई को श्रीनगर में ही अमरनाथ तीर्थ यात्रियों को निशाना बनाकर किये गए श्रृंखलाबद्ध ग्रेनेड हमलें में 8 लोग मारे गए व 41 घायल हुए ।
12 जुलाई को 7 हिन्दू तीर्थ यात्री श्रीनहर ग्रेनेड हमलों में घायल किये गए ।
हिन्दुओं पर किस हद तक अपने भारत में ज्यादतियां हुई हैं उन्हें भावुक ढंग से लिख पाना हमारे जैसे गणित के विद्यार्थी के लिए सम्भव नहीं । हमारे लिये यह भी सम्भव नहीं कि हम हिन्दुओं पर हुए हर अत्याचार का पूरा ब्यौरा जुटा सकें लेकिन फिर भी जो थोड़े से आंकड़ें हम प्राप्त कर सके वो आपके सामने रखकर हमने आपको सिर्फ यह समझाने का प्रयत्न किया है कि ये जो मुस्लिम जिहादियों और धर्मनिर्पेक्षतावादियों का गिरोह है वो धरमनिर्पेक्षता के बहाने हिन्दुओं को तबाह और बरबाद करने में जुटा है।
इस गिरोह से जुड़े एक-एक व्यक्ति के हाथ देशभक्त हिन्दुओं के खून से रंगे हुए हैं ये गिरोह हर उस व्यक्ति का शत्रु है जो भारतीय संस्कृति को अपनी संस्कृति समझता है जो देश को अपनी मां समझता है जो देश में जाति क्षेत्र संप्रदाय विहीन कानून व्यवस्था का समर्थन करता है जो देश में मानव मुल्यों का समर्थन करता है कुल मिलाकर ये राक्षसी गिरोह हर उस भारतीय का शत्रु है जो देशभक्त है ।
इस गिरोह को न सच्चे हिन्दू की चिन्ता है ,न सच्चे मुसलमान की, न सच्चे सिख ईसाई बौध या जैन की इसे चिन्ता है ,तो सिर्फ जयचन्दों, जिहादियों व धर्मांतरण के ठेकेदारों की जिनके टुकड़ों व वोटों के आधार पर इस देशद्रोही गिरोह की राजनीति आगे बढ़ती है इस गिरोह का एक ही उदेशय है जो ये पंक्तियां स्पष्ट करती हैं
न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
तु इन्सान की औलाद है
सैकुलर शैतान बनेगा
इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों का बढ़पन देखो कितने प्यार से अपने पाले हुए मुस्लिम जिहादियों के हाथों मारे गए हिन्दुओं का दाहसंस्कार करने की इजाजत हिन्दुओं को दे देते हैं वो भी तब अगर गलती से उस क्षेत्र में जिहादियों से कोई हिन्दू बच जाए तो ।
कौन कहता है इनमें और राक्षस औरंगजेब में कोई फर्क नहीं फर्क है ये धर्मनिर्पेक्षता के ठेकेदार हिन्दुओं को खुद नहीं मारते सिर्फ मारने वाले मुस्लिम जिहादियों के अनुकूल बाताबरण बनाते हैं, उनको अपना भाई कहर उनका हौसला बढ़ाते हैं, उनको कहीं सजा न हो जाए इसलिए पोटा जैसे सख्त कानून हटाते हैं, सजा हो भी जाए तो सिर्फ फाईल ही तो दबाते हैं सारे देश के हिन्दुओं से इन मुस्लिम जिहादियों की करतूतों को छुपाने के लिए जिहादियों का कोई धर्म नहीं होता ऐसा फरमाते हैं कोई न माने तो अपनी बात पर यकीन दिलवाने के लिए 10-11 हिन्दुओं को जबरदस्ती जेल में डाल कर हिन्दू-आतंकवादी हिन्दू-आतंकवादी चिल्लाते हैं कहीं हिन्दू छूट न जाँयें इसलिए जबरदस्ती मकोका भी लगाते हैं ।
धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में हिन्दुओं के खून से लत-पथ अपने जिहाद व धर्मांतरण समर्थक चेहरे को छुपाते हैं। मुस्लिम व ईसाई देशों से पैसा और समर्थन हासिल करने के लिए राष्ट्रबाद-सर्बधर्म सम्भाव से प्रेरित हिन्दुओं व उनके संगठनों को अक्सर सांप्रदायिक व आंतकबादी कहकर उनपर हमला बोलते हैं। हिन्दू संगठनों द्वारा हिन्दुओं पर हो रहे हमलों का बिरोध करने पर ये देशद्रोही गिरोह प्रतिबंध की मांग उठाकर, दबाब बनाकर अपने हिन्दू मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान को आगे बढ़ाता है ।
जागो हिन्दू पहचानों इन देश के गद्दारों को, हिन्दुओं के कातिलों को मुस्लिम जिहादियों और धर्मांतरण के ठेकेदारों को । देखो भाई जो कुछ आपने ऊपर के पन्नों में पढ़ा और देखा वो सब आपके साथ न हो इसका अभी से प्रबन्ध कर लो संगठित हो जाओ किसी भी देशभक्त संगठन से जुड़ जाओ कोई अच्छा नहीं लगता है तो नया संगठन बनाओ वरना बहुत देर हो जाएगी ।
कहा भी गया है घर में आग लगने पर कुआं खोदने का क्या लाभ
काम मुशकिल है असम्भव नहीं। सिर्फ जरूरत है तो जिहादियों और उनके ठेकेदारों को पहचाने की । वो किस संप्रदाय, दल या क्षेत्र से है ये सब भूल जाओ सिर्फ इतना ख्याल रखो कि जो भी इन मुस्लिम जिहादियों-आंतकवादियों-कातिलों को बचाता है, बचाने की कोशिश करता है, बचाने के बहाने बनाता है ,हिन्दुओं के कत्ल को जायज ठहराता है वो ही सब हिन्दुओं का कातिल है और कातिल को जिन्दा छोड़ना मानवता का अपमान है ।
उठो हमारे प्यारे लाचार हिन्दूओ छोड़ो ये सब झूठी शांति के दिलासे और संगठित होकर टूट पड़ों इस जिहादी राक्षस पर वरना ये जिहादी राक्षस हर हिन्दूघर को तबाह और बर्बाद कर देगा ।
तड़प-तड़प कर अपमानित होकर निहत्था होकर मरने से बेहतर है एक बार सिर उठाकर संगठित होकर शत्रु से दो-दो हाथ कर लेना वरना जरा सोचो उन बच्चों के बारे में जिन बच्चों ने अपने मां-बाप को अपने सामने कत्ल होते देखा उन भाईयों के बारे में जिन्होंने इन जिहादियों के हाथों अपनी बहन को अपमानित होते देखा सोचो उस पति के बारे मे जिसने अपनी पत्नी का इन जिहादियों के हाथों बलात्कार के बाद कत्ल होते देखा
सोचो उन माता-पिता के बारे में जिनके सामने उनके दूध पीते बच्चे इन जिहादियों ने हलाल कर डाले
और सोचो मुस्लिम जिहादियों के भाईयों इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों के इस सेकुलर गिरोह के बारे में जिसने इन कातिल जिहादियों को बचाने के लिए सब नियम कमजोर कर डाले ।
Monday, 30 March 2009
Tuesday, 17 March 2009
बरूण जी ने जो भी कहा सही कहा
धर्मनिर्पेक्षता का खूनी चेहरा
o कौन नहीं जानता किस तरह इधर धर्मनिपेक्षता की आड़ में हिन्दुओं को आपस में लड़वाने के षड्यन्त्र रचे जाते रहे चुनाव होते रहे, धर्मनिर्पेक्षता की रक्षा के बहाने हिन्दू धर्म के मान-सम्मान मर्यादा को तार तार कर हिन्दुओं को बदनाम किया जाता रहा उधर कश्मीर घाटी में सैकुलर गद्दार सरकारों के बैनर तले हिन्दुओं को कुचला जाता रहा , हलाल किया जाता रहा ,भागने पर मजबूर किया जाता रहा , सेना की जिहादियों के विरूद्ध कार्यवाही को अल्पसंख्यकों की रक्षा के नाम पर रोका जाता रहा कार्यवाही करने वाले बहादुर जवानों को मानवाधिकार का सहारा लेकर कोर्ट , कचहरियों व जेलों के चक्कर काटने पर मजबूर किया जाता रहा , मस्जिदों मे छुपे आतंकवादियों को बकरे खिलाये जाते रहे ,भारत का गृहमन्त्री बन चुके कांग्रेसी जिहादी की आतंकवादी बेटी की चाल में फंसकर उग्रवादियों को छोड़ा जाता रहा ।
o हैरानी होती है ये सुनकर कि जब निर्दोष हिन्दुओं का खून बहाने वाले राक्षसों को सजा देने की बारी आए तो मानवाधिकारों की दुहाई और विस्थापित किए जा रहे मारे जा रहे निर्दोष हिन्दुओं के लिए कोई मानवाधिकार नहीं । ये फैसले की घड़ी है फैसला तो आप खुद कीजिए कि ऐसे कुतर्क देने वाला ये सेकुलर गिरोह हिन्दुविरोधी देशद्रोही नहीं तो और क्या है ?
o परिणाम सबके सामने है । अपने ही देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र कश्मीर घाटी से हिन्दुओं का सफाया । जिस कश्मीरधाटी से या तो हिन्दुओं को भगा दिया गया या फिर हलाल कर दिया गया उसी हिन्दुओं के खून से रंगी इस कश्मीर घाटी को अल्पसंख्यकों के ठेकेदार आज अमन भाईचारे और धर्मनिर्पेक्षता की मिसाल बनाकर प्रस्तुत करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं और हिन्दुओं के खून-पसीने की कमाई इन जिहादियों को अनुदान के रूप में देकर इन्हें हिन्दू को मार-काट कर भगाने के लिए दण्डित करने की जगह पुरस्कृत कर रहे हैं !
सिर्फ एक कश्मीरघाटी थोड़े ही है जरा आसाम व उतर-पूर्व के हालात देखो । सोचो जरा कि इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों ने जिहादी बंगलादेशी घुसपैठियों व धर्मांतरण के दलाल ईसाईयों के साथ मिलकर आसाम व उतर-पूर्व में क्या हालात पैदा कर दिए हैं ?
आओ जरा आसाम की बात करें। हम ज्यादा दूर नहीं जायेंगे बात है 1983 की जब बंगलादेशी घुसपैठियों की वजह से स्थानीय निवासियों को असुविधा का एहसास होने लगा उन्होंने आवाज उठानी शुरू की लेकिन दिल्ली में बैठे धर्मनिर्पेक्षता के ठेकेदारों ने देशभक्त असमियों का साथ देने के बजाए जिहादी घुसपैठियों का साथ दिया ।
15 अक्तूबर 1983 को ऐसा कानून(आई एम डी टी) बनाया जिसके अनुसार किसी भी घुसपैठी जिहादी को विदेशी साबित करने की जिम्मेवारी सरकार या सुरक्षाबलों से हटाकर आम भारतीय नागरिक पर डाल दी गई और साथ ही 25 मार्च 1971 से पहले आए घुसपैठियों को भारतीय नागरिक मान लिया गया बस यहीं से शुरू हुआ हिन्दुओं का उजड़ना और घुसपैठियों का हावी होना जो आज विकराल रूप धारण कर चुका है।
समस्या तब और गम्भीर हो गई जब स्थानीय मुसलमान इस देशद्रोही हिन्दुविरोधी गिरोह का घुसपैठ-समर्थक रूख देख कर इन मुस्लिम घुसपैठियों के समर्थन में आ गये । इस तरह आसाम में देशद्रोह की राजनीति का सूत्रपात हुआ जो आज हिन्दुओं के मान-सम्मान जानमाल का दुश्मन बन गया है ।
आपको ये जान कर हैरानी होगी कि 1983 से 2005 तक सिर्फ आसाम में 2,00,000 से अधिक विदेशियों की पहचान की गई लेकिन इस घुसपैठ समर्थक कानून की वजह से सिर्फ दस हजार को कानूनन विदेशी सिद्ध किया जा सका और इन 10,000 में से भी सिर्फ 1500 से कम घुसपैठियों को बांगलादेश वापिस भेजा जा सका ।
देशविरोधी इस कानून को अन्ततः माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 12 जुलाई 2005 को रद्द कर इस देशविरोधी सैकुलर गिरोह की असलियत जनता के सामने उजागर कर दी ।
आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस हिन्दुविरोधी विदेशी की गुलाम देशद्रोही सरकार व गिरोह ने मानीय न्यायालय के इस देशहित में दिए गये निर्णय का डटकर विरोध किया । माननीय न्यायालय ने इस घुसपैठ को देश पर आक्रमण माना और इस कानून को घुसपैठ रोकने के रास्ते में जानबूझ कर रूकावट पैदा करने के लिए बनाया गया बताकर इसे असंवैधानिक व विभाजनकारी माना । घुसपैठियों को देश के बाहर निकालने की जिम्मेवारी केन्द्र सरकार पर डाली ।
लेकिन दुर्भाग्य से आज केन्द्र में इसी देशद्रोही गिरोह की सरकार होने के कारण पिछले तीन वर्षों में एक भी विदेशी को देश से बाहर नहीं निकाला । निकालती भी कैसे क्योंकि जो सरकार खुद विदेशी की गुलाम हो वो भला विदेशियों को बाहर निकालेगी क्या ?
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि हम बंगलादेशी घुसपैठियों को निकालने की बात कर रहे हैं पर इस हिन्दुविरोधी देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक इस गिरोह के एक सहयोगी कांग्रेस ने इन घुसपैठियों के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की दुहाई देकर इस्लाम के नाम पर जिहादी छात्र व राजनीतिक संगठन बनवाकर उनके साथ मिलकर चुनाव लड़कर सरकार बना ली।
अब ये जिहादी संगठन आये दिन बम्ब विस्फोट कर रहे हैं। हिन्दुओं पर हमले कर रहें हैं उन्हें जिन्दा जला रहे हैं। पाकिस्तान के झंडे फहरा रहे हैं ।हिन्दुओं को अपना घरबार छोड़कर भागने पर मजबूर कर रहे हैं सरकार निर्दोष हिन्दुओं के जानमाल की रक्षा करने के बजाए इन जिहादी संगठनों का साथ दे रही है । जिसके परिणाम स्वरूप आसाम में लाखों हिन्दू बेघर हो चुके हैं ।
कुल मिलाकर आसाम में बिल्कुल कश्मीर जैसे हालात बनते जा रहे हैं और इसमें कोई शंका नहीं रहनी चाहिये कि ये सबकुछ समय रहते रोका न गया तो वो वक्त दूर नहीं जब आसाम भी कश्मीर की तरह हिन्दुविहीन होकर जिहादियों के कब्जे में चला जाएगा ।
हमें हैरानी तो तब होती है जब देशभकत लोग हिन्दुओं पर हो रहे जुल्मों सितम के विरूद्ध आवाज उठाते हैं तो ये सैकुलर हिन्दुविरोधी उन्हें साप्रदायिक कहकर गाली निकालते हैं व इन कातिल जिहादियों को अल्पसंख्यक बताकर इनकी हिंसा व हमलों के शिकार हिन्दुओं को ही दोषी ठहरा देते हैं और इन जिहादियों के साथ मिलकर हिन्दुओं व उनके संगठनों पर हमला बोल देते हैं इस सबसे काम न चले तो हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू आतंकवाद का झूठ फैला देते हैं । अब आप ही बताओ स्वाभिमान, सम्मान व शाँति से जीने की चाह रखने वाला हिन्दू करे तो क्या करे ? कोई और हिन्दू देश भी तो नहीं कि वहां भाग जांयें !
अब ये फैसला हम हिन्दुओं पर छोड़ते हैं कि उन्हें मुस्लिमबहुल कश्मीर घाटी ,आसाम, ईसाई बहुल उत्तर-पूर्व या वांमपंथ से प्रेरित माओवाद व नस्लवाद प्रभावित क्षेत्रों जैसी धर्मनिर्पेक्षता चाहिए जो इस्लाम,ईसाईयत(नक्सलवाद) व वांमपंथ(माओवाद) के प्रचार प्रसार के लिए हिन्दुओं का खून बहाने में फक्र महसूस करती है या हिन्दुबहुल क्षेत्रों जैसा सर्वधर्म सम्भाव जहां 95% से अधिक हिन्दू आबादी होने के बावजूद आज तक हिन्दूधर्म के प्रचार-प्रसार के लिए हमला कर किसी भी मुस्लिम या ईसाई या वांमपंथी का खून नहीं बहाया गया !
o हमें घृणा है होती उन गद्दारों से जो एक काल्पनिक मस्जिदध्वंस, जिसमें सेकुलर नेताओं द्वारा हिन्दुओं का खून पानी की तरह बहाया गया,पर हिन्दुओं द्वारा एक भी मुसलमान नहीं मारा गया, के लिए तो छाती पीट-पीट कर रोते हैं पर कश्मीर घाटी में हलाल किए गये व आसाम में मारे जा रहे हजारों हिन्दुओं की मौत व तोड़े गए मन्दिरों पर एक आंसु तक नहीं बहाते उल्टा उनकी मौत पर रो रहे हिन्दूसंगठनों को सांप्रदायिक कहकर गाली निकालते हैं । आतंकवादी कहते हैं और लोकतंत्र के मन्दिर पर हमला करने वाले आतंकवादियों को बचाने के लिए मोमबती जलाओ अभियान चलाते हैं ।
o हमें घिन आती है उन बिके हुए दलालों से जो खुद को सैकुलर लेखक व मानवाधिकारवादी सामाजिक कार्यकर्ता प्रचारित करने के लिए अपने ऊपर जिहादियों व धर्मांतरण के ठेकेदारों द्वारा लगाई जाने वाली बोली की राशि बढ़वाने के लिए गुजरात में जिहादियों द्वारा हिन्दुओं को जिन्दा जलाकर लगाई गई आग में मारे गए सैंकड़ों मुसलमानों के विरोध में दर्जनों लेख लिख डालते हैं पर कश्मीर घाटी में मारे गए हजारों हिन्दुओं के कत्ल के विरोध में लिखने के लिए उनकी कलम की स्याही सूख जाती है।
हम बड़ी विनम्रता से माननीय सर्वोच्च न्यायालय से भी यह जानना चाहेंगे कि क्यों माननीय न्यायालय ने इन हिन्दुविरोधी जिहाद समर्थक देशद्रोहियों के कहने पर गुजरात के अधिकतर मामले गुजरात से बाहर इन हिन्दूविरोधियों द्वारा शासित राज्यों में स्थानांत्रित कर दिए ?
यही पैमाना कश्मीरघाटी व देश के अन्य हिस्सों में इन हिन्दुविरोधी धर्मनिर्पेक्षतावादियों की सरकारों के बैनर तले चल रहे हिन्दुओं के नरसंहार के लिए क्यों नहीं अपनाया गया जो आज भी जम्मू के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों सहित देश के कई अन्य हिस्सों में जारी है ?
जहां पर बड़े से बड़े नरसंहार के दोषियों को या तो निचली अदालतों ने जिहादसमर्थक सरकारों द्वारा अधूरे तथ्य पेश करने की वजह से, प्रमाण के अभाव में छोड़ दिया या फिर इन हिन्दुविरोधी सरकारों ने कानून बनवाकर या आत्मसमर्पण का सहारा लेकर छुड़वादिया । हद तो तब हो गई जब इन देशविरोधी जिहादियों को सुरक्षाबलों में भरती कर दिया गया ।
हम हिन्दू माननीय सर्वोच्चन्यायालय से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि आज तक इस तरह छोड़े गये हिन्दुओं के नरसंहारों के आरोपियों व दोषियों से सबन्धित सभी मामलों की जांच करवायी जाए ताकि इन नरसंहारों के परिणामस्वरूप हिन्दुओं के अन्दर पैदा हो रहे आक्रोश को समय रहते इन्साफ दिलवाकर दूर किया जा सके ।
आज इस हिन्दुविरोधी महौल में हिन्दुओं को भारतीय सेना के बाद अगर किसी से न्याय की उम्मीद है तो वो माननीय न्यायालय से है ।
आशा है माननीय सर्वोच्चन्यायालय अल्पसंख्यकवाद व धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर हिन्दुओं से किए जा रहे भेदभाव व अत्याचारों का सुओ मोटो नोटिस लेकर इस भेदवाद को खत्म कर हिन्दुविरोधी सरकारों द्वारा गृहयुद्ध की ओर धकेले जा रहे देश के कदमों को रोककर मानवता की आधार स्तम्भ भारतीय संस्कृति- बोले तो-हिन्दू संस्कृति को बचाने में अपना अमूल्य योगदान देकर असंख्य प्राणों की रक्षा करने में समर्थ होगा ।
o हां तो हम बात कर रहे थे कश्मीरघाटी में जिहादियों द्वरा हिन्दुओं पर ढाये गये अत्याचारों के बारे में लेकिन परस्थितिवश न्याय की आशा की एक किरण माननीय न्यायालय का समरण हो आया ।
o आज भी जम्मू व देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग पाँच लाख हिन्दू अपना घरबार छोड़ कर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं ।उनके बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मर रहे है । अपने बच्चों को जिन्दा रखने की उम्मीद में विस्थापित हिन्दू अपने बच्चों को बेचने पर मजबूर हैं ।
जाओ जरा उनसे पूछो धर्मनिर्पेक्षता की राजनीति करने वाले मानव हैं या दानव। इन दानवों के पास मक्कामदीना की यात्रा के लिए प्रतिमुसलमान 50000 रूपये व जेरूशलम की यात्रा के प्रति ईसाई 80000 रूपये देने के लिए तो हैं पर अपने ही देश में विस्थापित हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं । काश ये समझ पाते सर्वधर्मसम्भाव के मूलमन्त्र को !
o जिस गुलाम सरकार में शामिल दरिंदों की नींद हिथरो हवाई अड्डे पर बम्ब विस्फोट के आरोप में पकड़े गये जिहादी को मिल रही यातनाओं की वजह से उड़ जाती है। उन्हें अपने ही देश में दर दर भटक रहे इन हिन्दुओं का दर्द क्यों नहीं दिखाई देता ?
नींद उड़ना तो दूर यहां तो इन हिन्दुओं के दर्द को जन-जन तक पहुँचाने की कोशिश में लगे हिन्दूसंगठनों को ये सरकार आतंकवादी कहती है, सांप्रदायिक कहती है व हिन्दूरक्षा की विचारधारा का समर्थन करने वाले साधु सन्तों यहां तक कि देशभक्त सैनिकों को जेलों में डालकर उससे भी बुरी यातनांएं देती है ,जो यांतनाऐं एक जिहादी को मिलने पर इनकी नींद उड़ जाती है।
o क्यों इनको समझ नहीं आता कि घर से उजड़ने का दर्द क्या होता है ? क्यों इनको समझ नहीं आता कि ये यातनांयें ये हिन्दू किसी पर हमला करने की वजह से नहीं बल्कि अपने ही हमवतन गद्दारों के धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में रचे गये हिन्दुविरोधी षड्यन्त्रों की वजह से झेल रहे हैं ?
ये धर्मनिर्पेक्षता नहीं गद्दारी है देशद्रोह है हिन्दूविरोध है शैतानीयत है। नहीं चाहिए हिन्दुओं को ऐसी धर्मनिर्पेक्षता जो हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ कर व हिन्दुओं का खून बहाकर फलतीफूलती है । आज इसी वजह से जागरूक हिन्दू इस धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में छुपे हिन्दूविरोधियों को पहचान कर अपनी मातृभूमि भारत से इनकी सोच का नामोनिशान मिटाकर इस देश को धर्मनिर्पेक्षता द्वारा दिए गये इन जख्मों से मुक्त करने की कसम उठाने पर मजबूर हैं।
o कौन नहीं जानता किस तरह इधर धर्मनिपेक्षता की आड़ में हिन्दुओं को आपस में लड़वाने के षड्यन्त्र रचे जाते रहे चुनाव होते रहे, धर्मनिर्पेक्षता की रक्षा के बहाने हिन्दू धर्म के मान-सम्मान मर्यादा को तार तार कर हिन्दुओं को बदनाम किया जाता रहा उधर कश्मीर घाटी में सैकुलर गद्दार सरकारों के बैनर तले हिन्दुओं को कुचला जाता रहा , हलाल किया जाता रहा ,भागने पर मजबूर किया जाता रहा , सेना की जिहादियों के विरूद्ध कार्यवाही को अल्पसंख्यकों की रक्षा के नाम पर रोका जाता रहा कार्यवाही करने वाले बहादुर जवानों को मानवाधिकार का सहारा लेकर कोर्ट , कचहरियों व जेलों के चक्कर काटने पर मजबूर किया जाता रहा , मस्जिदों मे छुपे आतंकवादियों को बकरे खिलाये जाते रहे ,भारत का गृहमन्त्री बन चुके कांग्रेसी जिहादी की आतंकवादी बेटी की चाल में फंसकर उग्रवादियों को छोड़ा जाता रहा ।
o हैरानी होती है ये सुनकर कि जब निर्दोष हिन्दुओं का खून बहाने वाले राक्षसों को सजा देने की बारी आए तो मानवाधिकारों की दुहाई और विस्थापित किए जा रहे मारे जा रहे निर्दोष हिन्दुओं के लिए कोई मानवाधिकार नहीं । ये फैसले की घड़ी है फैसला तो आप खुद कीजिए कि ऐसे कुतर्क देने वाला ये सेकुलर गिरोह हिन्दुविरोधी देशद्रोही नहीं तो और क्या है ?
o परिणाम सबके सामने है । अपने ही देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र कश्मीर घाटी से हिन्दुओं का सफाया । जिस कश्मीरधाटी से या तो हिन्दुओं को भगा दिया गया या फिर हलाल कर दिया गया उसी हिन्दुओं के खून से रंगी इस कश्मीर घाटी को अल्पसंख्यकों के ठेकेदार आज अमन भाईचारे और धर्मनिर्पेक्षता की मिसाल बनाकर प्रस्तुत करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं और हिन्दुओं के खून-पसीने की कमाई इन जिहादियों को अनुदान के रूप में देकर इन्हें हिन्दू को मार-काट कर भगाने के लिए दण्डित करने की जगह पुरस्कृत कर रहे हैं !
सिर्फ एक कश्मीरघाटी थोड़े ही है जरा आसाम व उतर-पूर्व के हालात देखो । सोचो जरा कि इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों ने जिहादी बंगलादेशी घुसपैठियों व धर्मांतरण के दलाल ईसाईयों के साथ मिलकर आसाम व उतर-पूर्व में क्या हालात पैदा कर दिए हैं ?
आओ जरा आसाम की बात करें। हम ज्यादा दूर नहीं जायेंगे बात है 1983 की जब बंगलादेशी घुसपैठियों की वजह से स्थानीय निवासियों को असुविधा का एहसास होने लगा उन्होंने आवाज उठानी शुरू की लेकिन दिल्ली में बैठे धर्मनिर्पेक्षता के ठेकेदारों ने देशभक्त असमियों का साथ देने के बजाए जिहादी घुसपैठियों का साथ दिया ।
15 अक्तूबर 1983 को ऐसा कानून(आई एम डी टी) बनाया जिसके अनुसार किसी भी घुसपैठी जिहादी को विदेशी साबित करने की जिम्मेवारी सरकार या सुरक्षाबलों से हटाकर आम भारतीय नागरिक पर डाल दी गई और साथ ही 25 मार्च 1971 से पहले आए घुसपैठियों को भारतीय नागरिक मान लिया गया बस यहीं से शुरू हुआ हिन्दुओं का उजड़ना और घुसपैठियों का हावी होना जो आज विकराल रूप धारण कर चुका है।
समस्या तब और गम्भीर हो गई जब स्थानीय मुसलमान इस देशद्रोही हिन्दुविरोधी गिरोह का घुसपैठ-समर्थक रूख देख कर इन मुस्लिम घुसपैठियों के समर्थन में आ गये । इस तरह आसाम में देशद्रोह की राजनीति का सूत्रपात हुआ जो आज हिन्दुओं के मान-सम्मान जानमाल का दुश्मन बन गया है ।
आपको ये जान कर हैरानी होगी कि 1983 से 2005 तक सिर्फ आसाम में 2,00,000 से अधिक विदेशियों की पहचान की गई लेकिन इस घुसपैठ समर्थक कानून की वजह से सिर्फ दस हजार को कानूनन विदेशी सिद्ध किया जा सका और इन 10,000 में से भी सिर्फ 1500 से कम घुसपैठियों को बांगलादेश वापिस भेजा जा सका ।
देशविरोधी इस कानून को अन्ततः माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 12 जुलाई 2005 को रद्द कर इस देशविरोधी सैकुलर गिरोह की असलियत जनता के सामने उजागर कर दी ।
आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस हिन्दुविरोधी विदेशी की गुलाम देशद्रोही सरकार व गिरोह ने मानीय न्यायालय के इस देशहित में दिए गये निर्णय का डटकर विरोध किया । माननीय न्यायालय ने इस घुसपैठ को देश पर आक्रमण माना और इस कानून को घुसपैठ रोकने के रास्ते में जानबूझ कर रूकावट पैदा करने के लिए बनाया गया बताकर इसे असंवैधानिक व विभाजनकारी माना । घुसपैठियों को देश के बाहर निकालने की जिम्मेवारी केन्द्र सरकार पर डाली ।
लेकिन दुर्भाग्य से आज केन्द्र में इसी देशद्रोही गिरोह की सरकार होने के कारण पिछले तीन वर्षों में एक भी विदेशी को देश से बाहर नहीं निकाला । निकालती भी कैसे क्योंकि जो सरकार खुद विदेशी की गुलाम हो वो भला विदेशियों को बाहर निकालेगी क्या ?
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि हम बंगलादेशी घुसपैठियों को निकालने की बात कर रहे हैं पर इस हिन्दुविरोधी देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक इस गिरोह के एक सहयोगी कांग्रेस ने इन घुसपैठियों के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की दुहाई देकर इस्लाम के नाम पर जिहादी छात्र व राजनीतिक संगठन बनवाकर उनके साथ मिलकर चुनाव लड़कर सरकार बना ली।
अब ये जिहादी संगठन आये दिन बम्ब विस्फोट कर रहे हैं। हिन्दुओं पर हमले कर रहें हैं उन्हें जिन्दा जला रहे हैं। पाकिस्तान के झंडे फहरा रहे हैं ।हिन्दुओं को अपना घरबार छोड़कर भागने पर मजबूर कर रहे हैं सरकार निर्दोष हिन्दुओं के जानमाल की रक्षा करने के बजाए इन जिहादी संगठनों का साथ दे रही है । जिसके परिणाम स्वरूप आसाम में लाखों हिन्दू बेघर हो चुके हैं ।
कुल मिलाकर आसाम में बिल्कुल कश्मीर जैसे हालात बनते जा रहे हैं और इसमें कोई शंका नहीं रहनी चाहिये कि ये सबकुछ समय रहते रोका न गया तो वो वक्त दूर नहीं जब आसाम भी कश्मीर की तरह हिन्दुविहीन होकर जिहादियों के कब्जे में चला जाएगा ।
हमें हैरानी तो तब होती है जब देशभकत लोग हिन्दुओं पर हो रहे जुल्मों सितम के विरूद्ध आवाज उठाते हैं तो ये सैकुलर हिन्दुविरोधी उन्हें साप्रदायिक कहकर गाली निकालते हैं व इन कातिल जिहादियों को अल्पसंख्यक बताकर इनकी हिंसा व हमलों के शिकार हिन्दुओं को ही दोषी ठहरा देते हैं और इन जिहादियों के साथ मिलकर हिन्दुओं व उनके संगठनों पर हमला बोल देते हैं इस सबसे काम न चले तो हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू आतंकवाद का झूठ फैला देते हैं । अब आप ही बताओ स्वाभिमान, सम्मान व शाँति से जीने की चाह रखने वाला हिन्दू करे तो क्या करे ? कोई और हिन्दू देश भी तो नहीं कि वहां भाग जांयें !
अब ये फैसला हम हिन्दुओं पर छोड़ते हैं कि उन्हें मुस्लिमबहुल कश्मीर घाटी ,आसाम, ईसाई बहुल उत्तर-पूर्व या वांमपंथ से प्रेरित माओवाद व नस्लवाद प्रभावित क्षेत्रों जैसी धर्मनिर्पेक्षता चाहिए जो इस्लाम,ईसाईयत(नक्सलवाद) व वांमपंथ(माओवाद) के प्रचार प्रसार के लिए हिन्दुओं का खून बहाने में फक्र महसूस करती है या हिन्दुबहुल क्षेत्रों जैसा सर्वधर्म सम्भाव जहां 95% से अधिक हिन्दू आबादी होने के बावजूद आज तक हिन्दूधर्म के प्रचार-प्रसार के लिए हमला कर किसी भी मुस्लिम या ईसाई या वांमपंथी का खून नहीं बहाया गया !
o हमें घृणा है होती उन गद्दारों से जो एक काल्पनिक मस्जिदध्वंस, जिसमें सेकुलर नेताओं द्वारा हिन्दुओं का खून पानी की तरह बहाया गया,पर हिन्दुओं द्वारा एक भी मुसलमान नहीं मारा गया, के लिए तो छाती पीट-पीट कर रोते हैं पर कश्मीर घाटी में हलाल किए गये व आसाम में मारे जा रहे हजारों हिन्दुओं की मौत व तोड़े गए मन्दिरों पर एक आंसु तक नहीं बहाते उल्टा उनकी मौत पर रो रहे हिन्दूसंगठनों को सांप्रदायिक कहकर गाली निकालते हैं । आतंकवादी कहते हैं और लोकतंत्र के मन्दिर पर हमला करने वाले आतंकवादियों को बचाने के लिए मोमबती जलाओ अभियान चलाते हैं ।
o हमें घिन आती है उन बिके हुए दलालों से जो खुद को सैकुलर लेखक व मानवाधिकारवादी सामाजिक कार्यकर्ता प्रचारित करने के लिए अपने ऊपर जिहादियों व धर्मांतरण के ठेकेदारों द्वारा लगाई जाने वाली बोली की राशि बढ़वाने के लिए गुजरात में जिहादियों द्वारा हिन्दुओं को जिन्दा जलाकर लगाई गई आग में मारे गए सैंकड़ों मुसलमानों के विरोध में दर्जनों लेख लिख डालते हैं पर कश्मीर घाटी में मारे गए हजारों हिन्दुओं के कत्ल के विरोध में लिखने के लिए उनकी कलम की स्याही सूख जाती है।
हम बड़ी विनम्रता से माननीय सर्वोच्च न्यायालय से भी यह जानना चाहेंगे कि क्यों माननीय न्यायालय ने इन हिन्दुविरोधी जिहाद समर्थक देशद्रोहियों के कहने पर गुजरात के अधिकतर मामले गुजरात से बाहर इन हिन्दूविरोधियों द्वारा शासित राज्यों में स्थानांत्रित कर दिए ?
यही पैमाना कश्मीरघाटी व देश के अन्य हिस्सों में इन हिन्दुविरोधी धर्मनिर्पेक्षतावादियों की सरकारों के बैनर तले चल रहे हिन्दुओं के नरसंहार के लिए क्यों नहीं अपनाया गया जो आज भी जम्मू के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों सहित देश के कई अन्य हिस्सों में जारी है ?
जहां पर बड़े से बड़े नरसंहार के दोषियों को या तो निचली अदालतों ने जिहादसमर्थक सरकारों द्वारा अधूरे तथ्य पेश करने की वजह से, प्रमाण के अभाव में छोड़ दिया या फिर इन हिन्दुविरोधी सरकारों ने कानून बनवाकर या आत्मसमर्पण का सहारा लेकर छुड़वादिया । हद तो तब हो गई जब इन देशविरोधी जिहादियों को सुरक्षाबलों में भरती कर दिया गया ।
हम हिन्दू माननीय सर्वोच्चन्यायालय से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि आज तक इस तरह छोड़े गये हिन्दुओं के नरसंहारों के आरोपियों व दोषियों से सबन्धित सभी मामलों की जांच करवायी जाए ताकि इन नरसंहारों के परिणामस्वरूप हिन्दुओं के अन्दर पैदा हो रहे आक्रोश को समय रहते इन्साफ दिलवाकर दूर किया जा सके ।
आज इस हिन्दुविरोधी महौल में हिन्दुओं को भारतीय सेना के बाद अगर किसी से न्याय की उम्मीद है तो वो माननीय न्यायालय से है ।
आशा है माननीय सर्वोच्चन्यायालय अल्पसंख्यकवाद व धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर हिन्दुओं से किए जा रहे भेदभाव व अत्याचारों का सुओ मोटो नोटिस लेकर इस भेदवाद को खत्म कर हिन्दुविरोधी सरकारों द्वारा गृहयुद्ध की ओर धकेले जा रहे देश के कदमों को रोककर मानवता की आधार स्तम्भ भारतीय संस्कृति- बोले तो-हिन्दू संस्कृति को बचाने में अपना अमूल्य योगदान देकर असंख्य प्राणों की रक्षा करने में समर्थ होगा ।
o हां तो हम बात कर रहे थे कश्मीरघाटी में जिहादियों द्वरा हिन्दुओं पर ढाये गये अत्याचारों के बारे में लेकिन परस्थितिवश न्याय की आशा की एक किरण माननीय न्यायालय का समरण हो आया ।
o आज भी जम्मू व देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग पाँच लाख हिन्दू अपना घरबार छोड़ कर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं ।उनके बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मर रहे है । अपने बच्चों को जिन्दा रखने की उम्मीद में विस्थापित हिन्दू अपने बच्चों को बेचने पर मजबूर हैं ।
जाओ जरा उनसे पूछो धर्मनिर्पेक्षता की राजनीति करने वाले मानव हैं या दानव। इन दानवों के पास मक्कामदीना की यात्रा के लिए प्रतिमुसलमान 50000 रूपये व जेरूशलम की यात्रा के प्रति ईसाई 80000 रूपये देने के लिए तो हैं पर अपने ही देश में विस्थापित हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं । काश ये समझ पाते सर्वधर्मसम्भाव के मूलमन्त्र को !
o जिस गुलाम सरकार में शामिल दरिंदों की नींद हिथरो हवाई अड्डे पर बम्ब विस्फोट के आरोप में पकड़े गये जिहादी को मिल रही यातनाओं की वजह से उड़ जाती है। उन्हें अपने ही देश में दर दर भटक रहे इन हिन्दुओं का दर्द क्यों नहीं दिखाई देता ?
नींद उड़ना तो दूर यहां तो इन हिन्दुओं के दर्द को जन-जन तक पहुँचाने की कोशिश में लगे हिन्दूसंगठनों को ये सरकार आतंकवादी कहती है, सांप्रदायिक कहती है व हिन्दूरक्षा की विचारधारा का समर्थन करने वाले साधु सन्तों यहां तक कि देशभक्त सैनिकों को जेलों में डालकर उससे भी बुरी यातनांएं देती है ,जो यांतनाऐं एक जिहादी को मिलने पर इनकी नींद उड़ जाती है।
o क्यों इनको समझ नहीं आता कि घर से उजड़ने का दर्द क्या होता है ? क्यों इनको समझ नहीं आता कि ये यातनांयें ये हिन्दू किसी पर हमला करने की वजह से नहीं बल्कि अपने ही हमवतन गद्दारों के धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में रचे गये हिन्दुविरोधी षड्यन्त्रों की वजह से झेल रहे हैं ?
ये धर्मनिर्पेक्षता नहीं गद्दारी है देशद्रोह है हिन्दूविरोध है शैतानीयत है। नहीं चाहिए हिन्दुओं को ऐसी धर्मनिर्पेक्षता जो हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ कर व हिन्दुओं का खून बहाकर फलतीफूलती है । आज इसी वजह से जागरूक हिन्दू इस धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में छुपे हिन्दूविरोधियों को पहचान कर अपनी मातृभूमि भारत से इनकी सोच का नामोनिशान मिटाकर इस देश को धर्मनिर्पेक्षता द्वारा दिए गये इन जख्मों से मुक्त करने की कसम उठाने पर मजबूर हैं।
Tuesday, 10 March 2009
ये कैसी आधुनिकता ?
आज हम भारत में अपने चारों ओर जब नजर दौड़ाते हैं, तो एक संघर्ष हर तरफ नजर आता है। यह संघर्ष है राष्ट्रवादी बनाम सेकुलरवादी सोच का । इस संघर्ष के बारे में अपना पक्ष स्पष्ट करने से पहले हमें मानव और पशु के बीच का अन्तर अच्छी तरह से समझना होगा।
हमारे विचार में मानव और पशु के बीच सबसे बड़ा अन्तर यह है कि मानव समाज में रहता है और सामाजिक नियमों का पालन करता है जबकि पशु के लिए सामाजिक नियम कोई माइने नहीं रखते ।
क्योंकि मानव समाज में रहता है इसलिए सामाजिक नियमों का पालन करते हुए जीवन यापन करना मानव की सबसे बड़ी विशेषता है ।
प्रश्न पैदा होता है कि सामाजिक नियम क्या हैं ? ये नियम कौन बनाता है ? क्यों बनाता है?
सामाजिक नियम वह कानून हैं जो समाज अपने नागरिकों के सफल जीवनयापन के लिए स्वयं तय करता है। ये कानून मानव के लिए वे मूल्य निर्धारित करते हैं जो मानव को व्यवस्थित व मर्यादित जीवन जीने का स्वाभाविक वातावरण उपलब्ध करवाते हैं । ये सामाजिक नियम मनुष्य को शोषण से बचाते हुए सभ्य जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं। कोई भी समाज तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक वह व्यवस्थित न हो । वेशक इन सामाजिक नियमों का पालन करने के लिए मनुष्य को व्यक्तिगत आज़ादी त्याग कर समाज द्वारा निर्धारित अचार संहिता का पालन करना पड़ता है । कई बार तो यह अचार संहिता मानव के जीवन को इस हद तक प्रभावित करती है कि मानव इससे पलायन करने की कुचेष्ठा कर बैठता है । अगर ये कुचेष्ठा बड़े स्तर पर हो तो यह एक नई सामाजिक व्यवस्था को जन्म दे सकती है लेकिन इस नई व्यवस्था में भी नये सामाजिक नियम मानव जीवन को नियन्त्रित करते हैं । यहां बेशक पहले की तुलना में कम बन्धन होते हैं लेकिन इन बन्धनों के विना समाज नहीं बन सकता। क्योंकि बिना सामाजिक नियमों के चलने वाला समूह भीड़ तो बना सकता है पर समाज नहीं। समाज ही तो मानव को पशुओं से अलग करता है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि सामाजिक नियम मानव जीवन का वो गहना है जिसका त्याग करने पर मानव जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
अगर हम मानव इतिहास पर नजर दौड़ायें तो संसार में प्रमुख रूप से तीन समाजों का प्रभुत्व नजर आता है परन्तु ये तीनों समाज एक ही समाज से निकले हुए प्रतीत होते हैं। हिन्दु समाज संसार का प्राचीनतम व सभ्यतम् समाज है । इसाई समाज दूसरे व मुस्लिम समाज तीसरे नम्बर पर नजर आता है।
आज से लगभग 2000 वर्ष पहले न ईसाईयत थी न इस्लाम था सिर्फ हिन्दुत्व था । साधारण हिन्दु राजा विक्रमादित्य व अशोक महान लगभग 2050 वर्ष पहले हुए जबकि ईसाईयों के धार्मिक गुरू ईशु भी उस वक्त पैदा नहीं हुए थे । उस वक्त ईस्लाम के होने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता क्योंकि इस्लाम तो आज से लगभग 1500 वर्ष पहले अस्तित्व में आया । भगवान श्रीकृष्ण जी का अबतार आज से लगभग 5000 वर्ष पहले हुआ । भगवान श्री राम, ब्रहमा-विष्णु-महेश जी के अबतार के समय के बारे में पता लगाना वर्तमान मानव के बश की बात ही नहीं है।
श्रृष्टि के निर्माण से लेकर आज तक एक विचार जो निरंतर चलता आ रहा है उसी का नाम सनातन है। यही सनातन मानव जीवन को सुखद व द्वेशमुक्त करता रहता है। यही वो सनातन है जिसके अपने आंचल से निकली ईसाईयत व इसलाम ने ही सनातन को समाप्त करने के लिए अनगिनत प्रयास किए लेकिन इनका कोई प्रयास सनातन की सात्विक व परोपकारी प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप सफल न हो पाया। हजारों बर्षों के बर्बर हमलों व षडयन्त्रों के बाबजूद आज भी ऐसा प्रतीत होता है कि सनातन से निकले ईसाईयत व ईसलाम वापस सनातन में समाने को आतुर हैं ।
सनातन का ही सुसंगठित स्वरूप हिन्दुत्व है हिन्दुत्व ही आज भारत में सब लोगों को शांति और भाईचारे से जीने का रास्ता दिखा रहा है। ईसाईयत और ईसलाम की सम्राज्यबादी हमलाबर सोच के परिणामस्वरूप हिन्दुत्व का भी सैनिकीकरण करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है और कुछ हद तक हिन्दुत्व का सैनिकीकरण हो भी चुका है। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर व लेफ्टीनेंट कर्नल जैसे क्रांतिकारी इसी सैनिकीकरण की उपज हैं।
अगर ईसाईयत और ईस्लाम का भरतीय संस्कृति और सभ्यता पर हमला इसी तरह जारी रहा तो हो सकता है हिन्दुत्व को कुछ समय के लिए अपनी सर्वधर्मसम्भाव की प्रवृति से उस समय तक समझौता करना पड़े जब तक इन हमलाबारों का ऋषियों मुनियों की पुण्यभूमि भारत से समूल नाश न कर दिया जाए। बेशक उदारता व शांति ही हिन्दुत्व के आधारस्तम्भ हैं लेकिन जब हिन्दुत्व ही न बचेगा तो ये सब चीजें बेमानी हो जायेंगी। अतः सर्वधर्मसम्भाव, उदारता व शांति को बनाए रखने के लिए हिन्दुत्व का बचाब अत्यन्त आवश्यक है।
अपने इस उदेश्य की पूर्ति के लिए अगर कुछ समय तक हिन्दुत्व के इन आधार स्तम्भों से समझौता कर इन आक्रमणकारियों के हमलों का इन्हीं की भाषा में उतर देकर मानवता की रक्षा की खातिर हिन्दुत्व के सैनिकीकरण को बढ़ाबा देकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा की जा सके तो इस में बुराई भी क्या है ?
जो हिन्दु हिन्दुत्व के सैनिकीकरण की अबधारणा से सहमत नहीं हैं उन्हें जरा भारत के मानचित्र को सामने रखकर यह विचार करना चाहिए कि जिन हिस्सों में हिन्दुओं की जनसंख्या कम होती जा रही है वो हिस्से आतंकवाद,हिंसा और दंगों के शिकार क्यों हैं ? जहां हिन्दुओं की जनसंख्या निर्णायक स्थिति में है वहां कयों दंगा नहीं होता ? कयों हिंसा नहीं होती ? कयों सर्वधर्मसम्भाव वना रहता है ?क्यों मुसलमान परिवार नियोजन, वन्देमातरम् का विरोध करते हैं ? क्यों ईसाई हर तरह के विघटनकारी मार्ग अपनाकर धर्मांतरण पर जोर देते हैं ?
ये सब ऐसे प्रश्न हैं जिनका सरल और सपष्ट उतर यह है कि ईसायत और ईस्लाम राजनीतिक विचारधारायें हैं न कि धार्मिक । इन दोनों विचारधाराओं का एकमात्र मकसद अपनी राजनीतिक सोच का प्रचार-प्रसार है नकि मानवता की भलाई। अपनी विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए ये दोनों किसी भी हद तक गिर सकते है ।इस्लाम का प्रमुख हथियार है हिंसा और ईसाईयत का प्रमुख हथियार है छल कपट और हिंसा। दूसरी तरफ हिन्दुत्व एक जीबन पद्धति है जिसका प्रमुख हथियार है सरवधर्मसम्भाव। हिन्दुत्व का एकमात्र उदेश्य मानवजीबन को लोभ-लालच, राग-द्वेश, बाजारबाद से दूर रख कर आत्मबल के सहारे शुख-शांति, भाईचारे के मार्ग पर आगे बढ़ाना है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि हिन्दुत्व के प्रचार-प्रसार के लिए कभी किसी पर हमला नहीं किया गया पर ये भी उतना ही सत्य है कि जिसने भी मानव मूल्यों को खतरे मे डाला है उसको कभी बख्शा भी नहीं गया है चाहे बो किसी भी संप्रदाय से सबन्ध रखता हो।
आज भारत में ईसाई व मुसलिम आतंकवादियों की समर्थक सेकुलर सोच ने भारत के समक्ष एक नई चुनौती पैदा की है। ब्यापारबाद से प्रभावित इस सेकुलर सोच का एकमात्र उदेश्य मानव मुल्यों को नष्ट कर एक ऐसा समाज निर्मित करना है जो अचार व्यबहार में पशुतुल्य हो।
आओ जरा इस सेकुलर सोच के विचार का विशलेशण करें कि ये सेकुलरवादी जिस व्यवस्था की बकालत कर रहे हैं वो मानव जीवन को खतरे में डालती है या फिर मानव मुल्यों को बढ़ाबा देती है।
सेकुलर सोच को मानने बाले अपने आप को माडर्न कहते हैं।अपने माडर्न होने की सबसे बड़ी पहचान बताते हैं कम से कम कपड़े पहनना।इन्हें कपड़े न डालने में भी कोई बुराई नहीं दिखती। कुल मिलाकर ये कहते हैं कि जो जितने कम कपड़े पहनता है बो उतना अधिक माडर्न है। अब जरा बिचार करो कि क्या हमारे पशु कपड़े पहनते हैं ? नहीं न । हम कह सकते हैं कि अगर कपड़े न पहनना आधुनिकता है फिर तो हमारे पशु सबसे अधिक माडर्न है ! कुल मिलाकर ये सेकुलरताबादी मानव को पशु बनाने पर उतारू हैं क्योंकि समाज में कपड़े पहन कर विचरण करना मानव की पहचान है और नंगे रहना पशु की। ये सेकुलरतावादी जिस तरह नंगेपन को बढ़ाबा दे रहे हैं उससे से तो यही प्रतीत होता है कि इन्हें पशुतुल्य जीबन जीने में ज्यादा रूची है बजाय मानव जीबन जीने के ।
रह-रहकर एक विषय जो इन सेकुलरतावादियों ने बार-बार उठाया है वो है एक ही गोत्र या एक ही गांव में शादी की नई परंम्परा स्थापित करना। जो भी भारत से परिचित है वो ये अच्छी तरह जानता है कि भारत गांव में बसता है। गांव में बसने बाले भारत के अपने रिति-रिबाज है अपनी परम्परांयें हैं अधिकतर परम्परांयें वैज्ञानिक व तर्कसंगत है । इन्ही परम्परांओं में से एक परंम्परा है एक ही गांव या गोत्र में शादी न करने की। आज विज्ञान भी इस निषकर्श पर पहुंचा है कि मानव अपनी नजदीकी रिस्तेदारी में शादी न करे तो बच्चे स्वस्थ और बुद्धीमान पैदा होंगे । हमारे ऋषियों-मुनियों या यूं कह लो पूर्बजों ने भी सात पीड़ियों तक एक गोत्र में शादी न करने का नियम बनाया जो कि मानव जीबन के हित में है व तर्कसंगत है।अगर गांव बाले इस नियम को मानने पर जोर देते हैं तो इन सेकुलरताबादियों के पेट में दर्द कयों पड़ता है ? वैसे भी ये होते कौन हैं समाज द्वारा अपने सदस्यों की भलाई के लिए बनाय गए नियमों का विरोध करने बाले। वैसे भी लोकतन्त्र का तकाजा यही है कि जिसके साथ बहुमत है वही सत्य है।
इन सेकुलरतावादियों की जानकारी के लिए हम बता दें कि अधिकतर गांव में, गांव का हर लड़का गांव की हर लड़की को बहन की तरह मानता है। मां-बहन, बाप-बेटी के रिस्तों की बजह से ही गांव की कोई भी लड़की या महिला अपने आप को असुरक्षित महसूस नहीं करती है।आजादी से जीबन जीने में समर्थ होती है कहीं भी आ-जा सकती है खेल सकती है। हो सकता है ये भाई बहन की बात सेकुलरता बादियों को समझ न आये। बैसे भी अगर आप पशुओं के किसी गांव में चले जांयें ओर उन्हें ये बात समझायें तो उनको भी ये बात समझ नहीं आयेगी। क्योंकि ये भाई-बहन का रिस्ता सिर्फ मानव जीबन का अमुल्य गहना है न कि पशुओं के जीबन का ।
अभी हाल ही में पब संस्कृति की बात चली तो भी इस सेकुलर गिरोह ने ब्यभिचार और नशेबाजी के अड्डे बन चुके पबों का विरोध करने बालों का असंसदीय भाषा में विरोध किया। हम ये जानना चाहते हैं कि पबों में ऐसा क्या है जो उनका समर्थन किया जाये। कौन माता-पिता चांहेंगे कि उनके बच्चे नशा करें व शादी से पहले गैरों के साथ एसी जगहों पर जांयें जो कि ब्याभिचार के लिए बदनाम हो चुकी हैं।बैसे भी यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि भारत में इस पब संस्कृति के पांब पसार लेने के बाद भारत का हाल भी उस अमेरिका की तरह होगा जहां लगभग हर स्कूल के बाहर प्रसूती गृह की जरूरत पड़ती है। कौन नहीं जानता कि बच्चा गिराने की प्रक्रिया में सबसे ज्यादा नुकशान लड़की को ही उठाना पड़ता है। फिर पब संस्कृति के विरोधियों को महिलाविरोधी प्रचारित करना कहां तक ठीक है । लेकिन इन सेकुलरतावादियों की पशुतुल्य सोच इस बात को अच्छी तरह समझती है कि भारतीय संस्कृति को नष्ट किए बिना इनकी दुकान लम्बे समय तक नहीं चल सकती। आज ये तो एक प्रचलन सा बनता जा रहा है कि नबालिग व निर्धन लड़कीयों को बहला फुसलाकर प्यार का झांसा देकर अपनी बासना की पूर्ती करने के बाद सारी जिंदगी दर-दर की ठोकरें खाने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता है। कुल मिलाकर इस पब संस्कृति में अगर किसी का सबसे अधिक नुकशान है तो लड़कियों का । अतः महिलाओं की भलाई के लिए पब संस्कृति को जड़-मूल से समाप्त किया जाना अतयन्त आवश्यक है।इस संस्कृति का समर्थन सिर्फ वो लोग कर सकते हैं जो या तो ब्याभिचारी हैं या फिर नशेबाज। कौन नहीं जानता कि ये सेकुलरताबादी घर में अपनी पत्नी को प्रताड़ित करते हैं व पबों में जाकर गरीब लड़कीयों के शोषण की भूमिका त्यार करते हैं। कुल मिलाकर ये पब संस्कृति महिलाओं को कई तरह से नुकशान पहुंचाती है।
इसी सेकुलर सोच का गुलाम हर ब्यक्ति चाहता है कि उसकी महिला मित्र हो, जो हर जगह उसके साथ घूमे व विना शादी के उसकी बासना की पूर्ति करती रहे ।जरा इन सेकुलरताबादियों से पूछो कि क्या वो अपनी मां-बहन-बेटी-बहू या पत्नी को पुरूष मित्र के साथ वो सब करने की छूट देगें जो ये अपनी महिला मित्र के साथ करना चाहते हैं। सेकुलरता बादियों के बारे में तो बो ही बता सकते हैं पर अधिकतर भारतीय ऐसा करना तो दूर सोचना भी पाप मानते हैं। फिर महिला मित्र आयेगी कहां से क्योंकि कोई भी लड़की या महिला किसी न किसी की तो मां-बहन-बेटी-बहू या पत्नी होगी। कुल मिलाकर इस सोच का समर्थन सिर्फ पशुतुल्य जीबन के शौकीन ही कर सकते हैं मानवजीबन में विश्वास करने बाले भारतीय नहीं।
इन तथाकथकथित सेकुलरों को ये समझना चाहिए कि निजी जीबन में कौन क्या पहन रहा है इससे हमारा कोई बास्ता नहीं लेकिन जब समाज की बात आती है तो हर किसी को सामाजिक मर्यादायों का पालन करना चाहिए।जो सामाजिक मर्यादाओं का पालन नहीं कर सकते उन्हें उन देशों में चले जाना चाहिए जहां मानव मूल्यों की जगह पशु मूल्यों ने ले ली है।क्योंकि जिस तरह ये सेकुलर गिरोह लगातार मानव मूल्यों का विरोध कर पशु संस्कृति का निर्माण करने पर जोर दे रहा है वो आगे चल कर मानव जीवन को ही खतरे में डाल सकती है।
मानव जीवन की सबसे बड़ी खासियत है आने बाली पीड़ी को सभ्य संस्कार व अचार व्यवहार का पालन करने के लिए प्रेरित करना। बच्चों के लिए एक ऐसा बाताबरण देना जिसमें उनका चहुंमुखी विकास समभव हो सके। इस चहुंमुखी विकास का सबसे बड़ा अधार उपलब्ध करबाते हैं बच्चों के माता-पिता ।
ये सेकुलरतावादी जिस तरह से माता-पिता के अधिकारों पर बार-बार सवाल उठाकर बच्चों को माता-पिता पर विश्वास न करने के लिए उकसा रहे हैं । माता-पिता को बच्चों के शत्रु के रूप में प्रस्तुत करने का षडयन्त्र रच रहें। माता-पिता की छवी को लगातार खराब करने का दुस्साहस कर रहे हैं। इनका ये षडयन्त्र पूरे मानव जीबन को खतरे में डाल देगा।क्योंकि अगर बच्चों का माता-पिता के उपर ही भरोसा न रहेगा तो फिर बो किसी पर भी भरोसा नहीं करेंगे। परिणामस्वरूप बच्चे किसी की बात नहीं मानेंगे और अपना बंटाधार कर लेंगे।
भारतीय समाज में जिस विषय पर इन सेकुलरताबादियों ने सबसे बड़ा बखेड़ा खड़ा किया है वो है वासनापूर्ति करने के तरीकों पर भारतीय समाज द्वारा बनाय गए मर्यादित नियम।इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले प्रेम और ब्याभिचार में अन्तर करना परमावस्यक है।
प्यार मानव के लिए भगवान द्वारा दिया गया सबसे बड़ा बरदान है ।प्यार के विना किसी भी रिस्ते की कल्पना करना अस्मभव है। अगर हम ये कहें कि प्यार के विना मानव जीबन की कल्पना भी नहीं की जा सकती तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्यार ही वो सूत्र है जिसने सदियों से भारतीय समाज को मुस्लिमों और ईसाईयों के हिंसक हमलों के बाबजूद शांति के मार्ग से भटकने नहीं दिया है। ये प्यार और आस्था ही है जो आज भी हिन्दु समाज को भौतिकबाद व बजारू सोच से बचाकर सुखमय और प्रेममय जीबन जीने को प्रेरित कर रही है। भारतीय जीबन पद्धति में माता-पिता-पुत्र-पुत्री जैसे सब रिस्तों का अधार ही प्यार है।
सेकुलर सोच ने सैक्स को प्यार का नाम देकर प्यार के महत्व को जो ठेश पहुंचाई है उसे शब्दों में ब्यक्त करना अस्मभव नहीं तो कम से कम मुस्किल जरूर है।सैक्स विल्कुल ब्यक्तिगत विषय है लेकिन सेकुरतावादियों ने सैक्स का ही बजारीकरण कर दिया ।सैक्स को भारत में सैक्स के नाम से बेचना मुश्किल था इसलिए इन दुष्टों ने सैक्स को प्यार का नाम देकर बेचने का षडयन्त्र रचा ।परिणामस्वरूप ये सैक्स बेचने में तो कामयाब हो गए लेकिन इनके कुकर्मों ने अलौकिकता के प्रतीक प्रेम को बदनाम कर दिया।
अगर आप ध्यान से इन सेकुसरतावादियों के क्रियाकलाप को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये दुष्ट मनुष्य को विलकुल बैसे ही खुलमखुला सैक्स करते देखना चाहते हैं जैसे पशुओं को करते देखा जा सकता है मतलब कुलमिलाकर ये मनब को पशु बनाकर ही दम लेंगे। लेकिन हम दाबे के साथ कह सकते हैं कि भारतीय समाज एसी पशुप्रवृति की पैरवी करने बाले दुष्टों को न कभी स्वीकार करेगा न इनके षडयन्त्रों को सफल होने देगा।
ये सेकुलतावादी कहते हैं कि सैक्स करेंगे, लेकिन जिसके साथ सैक्स करेंगे जरूरी नहीं उसी से सादी भी की जाए।बस यही है समस्या की जड़ ।ये अपनी बासना की पूर्ति को प्यार का नाम देते हैं और जिससे ये प्यार करते हैं उसके साथ जीवन जीने से मना कर देते हैं। कौन नहीं जानता कि मानव जिससे प्यार करता है उसके साथ वो हरपल रहना चाहता है और जिसके साथ वो हर पल रहना चाहता है उसके साथ जीवन भर रहने में आपति क्यों ? अब आप खुद सोचो कि जो लोग प्यार करने का दावा कर रहे हैं क्या वो वाक्य ही प्यार कर रहे हैं या अपनी बासना की पूर्ति करने के लिए प्यार के नाम का सहारा ले रहे हैं !
अब आप सोचेंगे कि वो प्यार कर रहे हैं या सैक्स, हमें क्या समस्या है, हमें कोई समस्या नहीं। लेकिन समस्या तब हो रही है जब समाचार चैनलों पर समाचारों की जगह ब्यभिचार परोसा जा रहा है। कला और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के नाम पर चल रही फिल्मी दुनिया में भी जमकर पशुप्रवृति को परोसा जा रहा है। सामाजिक नियमों का पालन करने बालों के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया जा रहा है । पशु-तुल्य कर्म करने बालों और ऐसे कर्म का समर्थन करने बालों को आदर्श के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है।
एक साधारण सी बात यह है कि बच्चे का जन्म होने के बाद के 25 वर्ष तक बच्चे का शारीरिक व बौद्धिक विकाश होता है ये भारतीय जीवन दर्शन का आधारभूत पहलू रहा है अब तो विज्ञान ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि मानव के शारीरिक विकाश को 22 वर्ष लगते हैं ।जिन अंगो का विकाश 22 वर्ष की आयु में पूरा होता है उन्हें ताकतबर होने के लिए अगर अगले तीन वर्ष का समय और दे दिया जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुलमिलाकर भारतीय दर्शनशास्त्र व विज्ञान दोनों ही ये स्वीकार करते हैं कि 25 वर्ष की आयु तक मानव शरीर का विकाश पूरा होता है।मानव जीवन के पहले 25 वर्ष मानव को शारीरिक विकाश व ज्ञानार्जन के साथ-साथ अपनी सारी जिन्दगी सुखचैन से जीने के लिए दो वक्त की रोटी का प्रबन्ध करना होता है।
अब ये सेकुलर गिरोह क्या चाह रहा है कि बच्चा पढ़ाई-लिखाई शारीरिक विकाश व दो वक्त की रोटी का प्रबन्ध करने के प्रयत्न छोड़ कर इनके बताए रास्ते पर चलते हुए सिर्फ सैक्स पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित करे। अब इस मूर्खों के सेकुलर गिरोह को कौन समझाए कि अगर बच्चा 25 वर्ष तक सैक्स न भी करे तो भी अगले 25 वर्ष सैक्स करने के लिए काफी हैं लेकिन अगर इन 25 वर्षो में यदि वो पढ़ाई-लिखाई,प्रशिक्षण न करे तो अगले 25 बर्षों में ये सब सम्भव नहीं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि बच्चे को चाहिए कि वो शुरू के 25 वर्षों में सैक्स वगैरह के सब टांटे छोड़कर सिर्फ अपने कैरियर पर ध्यान केन्द्रित करे ताकि आने वाली जिन्दगी के 25 वर्षों में वो आन्नद से जी सके।रही बात इन सेकुलरतावादियों की तो ये सेकुलरतावादी पिछले जमाने के राक्षसों का आधुनिक नाम है इनसे सचेत रहना अतिआवश्यक है क्योंकि मानव को सदमार्ग से भटकाना ही इन राक्षसों का मूल उद्देश्य था है और रहेगा।
एक तरफ ये सेकुलरतावादी मानव को खुले सैक्स के सिए उकसा रहे हैं दूसरी तरफ लोगों द्वारा अपनी बहुमूल्य कमाई से टैक्स में दिए गय धन में से ऐडस रोकने के नाम पर अरबों रूपय खर्च कर रहे हैं ।अब इनको कौन समझाये कि लोगों को भारतीय जीवन मूल्य अपनाने के लिए प्रेरित करने व भारतीय जीवन मूल्यों का प्रचार-प्रसार ही सैक्स सबन्धी संक्रामक रोगों का सुक्ष्म, सरल व विश्वसनीय उपाय है। वैसे भी ऐडस जैसी वीमारी का विकास ही इन सेकुलरतावादियों द्वारा जानवरों से सैक्स करने के परिणामस्वरूप हुआ है।अरे मूर्खो मानवता को इतना भयानक रोग देने के बाद भी तुम लोग पागलों की तरह खुले सैक्स की बात कर रहे हो।
अभी ऐडस का कोई विश्वसनीय उपाय मानव ढूंढ नहीं पाया है और इन सेकुलरतावादियों ने ऐडस के खुले प्रसार के लिए होमोसैक्स की बात करना शुरू कर दिया है। हम मानते हैं कि होमोसैक्स मानसिक रोग है और ऐसे रोगियों को दवाई व मनोविज्ञानिक उचार की अत्यन्त आवश्यकता है ये कहते हैं कि होमोसैक्स सेकुलरता वादियों की जरूरत है व मनोविज्ञानिक वीमारी नहीं है।इनका कहना है कि होमोसैकस भी सैक्स की तरह ही प्राकृतिक है।हम इनको बताना चाहते हैं कि सैक्स का मूल उद्देश्य प्रजनन है जिसका एकमात्र रास्ता है पति-पत्नी के बीच सैक्स सबन्ध । अगर होमोसैक्स प्राकृतिक है तो ये सेकुलरताबादी होमोसैक्स से बच्चा पैदा करके दिखा दें हम भी मान लेंगे कि जो ये मूर्ख कह रहे हैं वो सत्य है।परन्तु सच्चाई यही है कि होमोसैक्स मनोवैज्ञानिक विमारी है इसके रोगियों को उपचार उपलब्ध करवाकर प्राकृतिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करना ही हमारा कर्तब्य है न कि होमोसैक्स का समर्थन कर उसे बढ़ाबा देना।
बास्तब में सेकुलरताबादी गिरोह हर वक्त अपना सारा ध्यान मानवमूल्यों को तोड़ने पर इसलिए भी केन्द्रित करते हैं क्योंकि ये मनोरोगों के शिकार हो चुके हैं ।जब इनका सामना आम सभ्य इनसान से होता है तो इनके अन्दर हीन भावना पैदा होती है। इस हीन भाबना से मुक्ति पाने के लिए ये सारे समाज को ही कटघरे में खड़ा करने का असम्भव प्रयास करते हैं। अपनी मनोवैज्ञानिक विमारियों का प्रचार-प्रसार कर अपने जैसे मानसिक रोगियों की संख्याबढ़ाकर अपने नये शिकार तयार करते हैं कुलमिलाकर हम कहसकते हैं कि सेकुलरताबादी वो दुष्ट हैं जिनका शरीर देखने में तो मानव जैसा दिखता है पर इनका दिमाग राक्षसों की तरह काम करता है ।क्योंकि वेसमझ से वेसमझ व्यक्ति भी इस बात को अच्छी तरह जानता है कि कहीं अज्ञानबश या धोखे से भी हम किसी बुरी आदत का शिकार हो जांयें तो हमें इस वुरी आदत को अपने आप समाप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए ।अगर हम इस बुरी आदत को समाप्त न भी कर पांयें ते हमें कम से कम इसका प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहिए।
भारत गांवों में बसता है यहां हर जगह पुलिस उपलब्ध करबाना किसी के बस की बात नहीं।अभी तो इन सेकुलरताबादियों का असर कुछ गिने-चुने सहरी क्षेत्रों में ही हुआ है जहां से हर रोज बालात्कार ,छेड़-छाड़,आत्महत्या व सैक्स के लिए घरबार,मां-बाप,पति-पत्नी सब छोड़कर भागने के समाचार आम बात हो गई है। ये सेकुलर सोच अभी कुछ क्षेत्रों तक सीमित होने के बाबजूद न जाने कितने घर उजाड़ चुकी है कितने कत्ल करवा चुकी है कितने ही बच्चों को तवाह और बर्वाद कर चुकी है लाखों बच्चे इस सेकुलर सोच का शिकार होकर नशे के आदी होकर अपने निजी जीवन व परिवार की खुशियों को आग लगा चुके हैं। कुछ पल के लिए कल्पना करो कि ये सेकुलर सोच अगर सारे भारत में फैल जाए तो हिंसा, नसा और ब्याभिचार किस हद तक बढ़ जायेगा। परिणामस्वरूप न मानव बचेगा न मानव जीवन, चारों तरफ सिर्फ राक्षस नजर आयेंगे। हर तरफ हिंसा का बोलबाला होगा ।मां-बहन-बेटी नाम का कोई रिस्ता न बचेगा।हर गली, हर मुहल्ला , हर घर वेश्यवृति का अड्डा नजर आयगा।जिस तरह हम आज गली, मुहले,चौराहे पर कुतों को सैक्स करते देखते हैं इसी तरह ये सेकुलरताबादी हर गली मुहले चौराहे पर खुलम-खुला सैक्स करते नजर आयेंगे। पाठशालाओं में मानव मूल्यों की जगह सैक्स के शूत्र पढ़ाये जायेंगे।अध्यापक इन शूत्रों के परैक्टीकल करबाते हुए ब्यस्त नजर आयेंगे। न कोई माता नकोई पिता नकोई बच्चा न कोई धर्म सब एक समान एक जैसे सब के सब धर्मनिर्पेक्ष बोले तो राक्षस। जब शरीर सैक्स करने में असमर्थ होगा तो ये नशा कर सैक्स करने की कोशिश करेंगे ।धीरे-धीरे ये नशे के आदी हो जायेंगे ।नशे के लिए पैसा जुटाने के लिए एक दूसरे का खून करेंगे।मां-बहन-बेटी को बेचेंगे।सब रिस्ते टूटेंगे। जब नशे के बाबजूद ये नपुंसक हो जायेंगे तो फिर ये अपने सहयोगी पर तेजाब डालकर उसे जलाते नजर आयेंगे।अंत में ये जिन्दगी से हताश होकर आत्महत्या का मार्ग अपनायेंगे।
हम तो बस इतना ही कहेंगे कि इन सैकुलतावादियों को रोकना अत्यन्त आवश्यक है।अगर इन्हें आज न रोका गया तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा क्योंकि ये किसी भी रूप में तालिवानों से अधिक खतरनाक हैं और तालिबान का ही बदला हुआ स्वरूप हैं। अभी इनकी ताकत कम है इसलिए ये फिल्मों,धाराबाहिकों ,समाचारपत्रों व समाचार चैनलों के माध्यम से अपनी सोच का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।कल यदि इनकी शंख्या बढ़ गयी तो यो लोग सभ्य समाज को तहस-नहस कर देंगे।
सेकुलरतावादियों की इस पाश्विक सोच का सबसे बुरा असर गरीबों व निम्न मध्य बर्ग के बच्चों पर पड़ रहा है।ये बच्चे ऐसे परिबारों से सबन्ध रखते हैं जो दो बक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं। इन सेकुलरताबादियों के दुस्प्रचार का शिकार होकर ये बच्चे अपनी आजीविका का प्रबन्ध करने के प्रयत्न करने के बजाय सैक्स के लिए दर-दर की ठोकरें खाते नजर आते हैं।
सेकुलरताबादियों की ये भ्रमित सोच न इन बच्चों का ध्यान पढ़ाई में लगने देती है न किसी काम धन्धे में।न इन बच्चों को अपने मां-बाप की समाजिक स्थिति की चिन्ता होती है न आर्थिक स्थिति की। क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों को बुरी आदतों से दूर रखने के लिए डांट-फटकार से लेकर पिटाई तक हर तरह के प्रयत्न करते हैं इसलिए इन बच्चों को सेकुलरताबादियों के बताए अनुसार अपने शत्रु नजर आते हैं।
ये बच्चे इस दुस्प्रचार का शिकार होकर अपने माता-पिता से दूर होते चले जाते हैं।ये बच्चे जाने-अनजाने नशा माफियों के चुंगल में फंस जाते हैं क्योंकि ये नशामाफिया इन बच्चों को न केबल नशा उपलब्ध करबाता है बल्कि सेकुलरताबादी विचारों का प्रयोग कर ये समझाने में भी कामयाब हो जाता है कि नशा और ब्यभिचार ही जिन्दगी के असली मायने हैं।
जब तक इन बच्चों को ये समझ आता है कि ये आधुनिकता के चक्कर में पढ़कर अपना जीबन तबाह कर रहे हैं तब तक इन बच्चों के पास बचाने के लिए बचा ही कुछ नहीं होता है।लड़कियां कोठे पर पहुंचाई जा चुकी होती हैं व लड़के नशेबाज बन चुके होते हैं कमोबेश मजबूरी में यही इनकी नियती बन जाती है।
फिर ये बच्चे कभी सरकार को कोशते नजर आते हैं तो कभी समाज तो कभी माता-पिता को। परन्तु बास्तब में अपनी बरबादी के लिए ये बच्चे खुद ही जिम्मेबार होते हैं क्योंकि सीधे या टैलीविजन व पत्रिकाओं के माध्यम से सेकुलरताबादियों की फूड़ सोच को अपनाकर अपनी जिन्दगी का बेड़ागर्क ये बच्चे अपने आप करते हैं।
आगे चलकर यही बच्चे सेकुलरताबादी,नक्सलबादी व माओबादी बनते हैं । यही बच्चे इन सेकुलरताबादियों का थिंकटैंक बनते हैं । यही बच्चे फिर समाचार चैनलों में बैठकर माता-पिता जैसे पबित्र रिस्तों को बदनाम करते नजर आते हैं।अब आप खुद समझ सकते हैं कि क्यों ये सेकुलरताबादी हर वक्त देश-समाज,मां-बाप व भारतीय संस्कृति को कोशते नजर आते हैं।
हमारे विचार में मानव और पशु के बीच सबसे बड़ा अन्तर यह है कि मानव समाज में रहता है और सामाजिक नियमों का पालन करता है जबकि पशु के लिए सामाजिक नियम कोई माइने नहीं रखते ।
क्योंकि मानव समाज में रहता है इसलिए सामाजिक नियमों का पालन करते हुए जीवन यापन करना मानव की सबसे बड़ी विशेषता है ।
प्रश्न पैदा होता है कि सामाजिक नियम क्या हैं ? ये नियम कौन बनाता है ? क्यों बनाता है?
सामाजिक नियम वह कानून हैं जो समाज अपने नागरिकों के सफल जीवनयापन के लिए स्वयं तय करता है। ये कानून मानव के लिए वे मूल्य निर्धारित करते हैं जो मानव को व्यवस्थित व मर्यादित जीवन जीने का स्वाभाविक वातावरण उपलब्ध करवाते हैं । ये सामाजिक नियम मनुष्य को शोषण से बचाते हुए सभ्य जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं। कोई भी समाज तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक वह व्यवस्थित न हो । वेशक इन सामाजिक नियमों का पालन करने के लिए मनुष्य को व्यक्तिगत आज़ादी त्याग कर समाज द्वारा निर्धारित अचार संहिता का पालन करना पड़ता है । कई बार तो यह अचार संहिता मानव के जीवन को इस हद तक प्रभावित करती है कि मानव इससे पलायन करने की कुचेष्ठा कर बैठता है । अगर ये कुचेष्ठा बड़े स्तर पर हो तो यह एक नई सामाजिक व्यवस्था को जन्म दे सकती है लेकिन इस नई व्यवस्था में भी नये सामाजिक नियम मानव जीवन को नियन्त्रित करते हैं । यहां बेशक पहले की तुलना में कम बन्धन होते हैं लेकिन इन बन्धनों के विना समाज नहीं बन सकता। क्योंकि बिना सामाजिक नियमों के चलने वाला समूह भीड़ तो बना सकता है पर समाज नहीं। समाज ही तो मानव को पशुओं से अलग करता है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि सामाजिक नियम मानव जीवन का वो गहना है जिसका त्याग करने पर मानव जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
अगर हम मानव इतिहास पर नजर दौड़ायें तो संसार में प्रमुख रूप से तीन समाजों का प्रभुत्व नजर आता है परन्तु ये तीनों समाज एक ही समाज से निकले हुए प्रतीत होते हैं। हिन्दु समाज संसार का प्राचीनतम व सभ्यतम् समाज है । इसाई समाज दूसरे व मुस्लिम समाज तीसरे नम्बर पर नजर आता है।
आज से लगभग 2000 वर्ष पहले न ईसाईयत थी न इस्लाम था सिर्फ हिन्दुत्व था । साधारण हिन्दु राजा विक्रमादित्य व अशोक महान लगभग 2050 वर्ष पहले हुए जबकि ईसाईयों के धार्मिक गुरू ईशु भी उस वक्त पैदा नहीं हुए थे । उस वक्त ईस्लाम के होने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता क्योंकि इस्लाम तो आज से लगभग 1500 वर्ष पहले अस्तित्व में आया । भगवान श्रीकृष्ण जी का अबतार आज से लगभग 5000 वर्ष पहले हुआ । भगवान श्री राम, ब्रहमा-विष्णु-महेश जी के अबतार के समय के बारे में पता लगाना वर्तमान मानव के बश की बात ही नहीं है।
श्रृष्टि के निर्माण से लेकर आज तक एक विचार जो निरंतर चलता आ रहा है उसी का नाम सनातन है। यही सनातन मानव जीवन को सुखद व द्वेशमुक्त करता रहता है। यही वो सनातन है जिसके अपने आंचल से निकली ईसाईयत व इसलाम ने ही सनातन को समाप्त करने के लिए अनगिनत प्रयास किए लेकिन इनका कोई प्रयास सनातन की सात्विक व परोपकारी प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप सफल न हो पाया। हजारों बर्षों के बर्बर हमलों व षडयन्त्रों के बाबजूद आज भी ऐसा प्रतीत होता है कि सनातन से निकले ईसाईयत व ईसलाम वापस सनातन में समाने को आतुर हैं ।
सनातन का ही सुसंगठित स्वरूप हिन्दुत्व है हिन्दुत्व ही आज भारत में सब लोगों को शांति और भाईचारे से जीने का रास्ता दिखा रहा है। ईसाईयत और ईसलाम की सम्राज्यबादी हमलाबर सोच के परिणामस्वरूप हिन्दुत्व का भी सैनिकीकरण करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है और कुछ हद तक हिन्दुत्व का सैनिकीकरण हो भी चुका है। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर व लेफ्टीनेंट कर्नल जैसे क्रांतिकारी इसी सैनिकीकरण की उपज हैं।
अगर ईसाईयत और ईस्लाम का भरतीय संस्कृति और सभ्यता पर हमला इसी तरह जारी रहा तो हो सकता है हिन्दुत्व को कुछ समय के लिए अपनी सर्वधर्मसम्भाव की प्रवृति से उस समय तक समझौता करना पड़े जब तक इन हमलाबारों का ऋषियों मुनियों की पुण्यभूमि भारत से समूल नाश न कर दिया जाए। बेशक उदारता व शांति ही हिन्दुत्व के आधारस्तम्भ हैं लेकिन जब हिन्दुत्व ही न बचेगा तो ये सब चीजें बेमानी हो जायेंगी। अतः सर्वधर्मसम्भाव, उदारता व शांति को बनाए रखने के लिए हिन्दुत्व का बचाब अत्यन्त आवश्यक है।
अपने इस उदेश्य की पूर्ति के लिए अगर कुछ समय तक हिन्दुत्व के इन आधार स्तम्भों से समझौता कर इन आक्रमणकारियों के हमलों का इन्हीं की भाषा में उतर देकर मानवता की रक्षा की खातिर हिन्दुत्व के सैनिकीकरण को बढ़ाबा देकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा की जा सके तो इस में बुराई भी क्या है ?
जो हिन्दु हिन्दुत्व के सैनिकीकरण की अबधारणा से सहमत नहीं हैं उन्हें जरा भारत के मानचित्र को सामने रखकर यह विचार करना चाहिए कि जिन हिस्सों में हिन्दुओं की जनसंख्या कम होती जा रही है वो हिस्से आतंकवाद,हिंसा और दंगों के शिकार क्यों हैं ? जहां हिन्दुओं की जनसंख्या निर्णायक स्थिति में है वहां कयों दंगा नहीं होता ? कयों हिंसा नहीं होती ? कयों सर्वधर्मसम्भाव वना रहता है ?क्यों मुसलमान परिवार नियोजन, वन्देमातरम् का विरोध करते हैं ? क्यों ईसाई हर तरह के विघटनकारी मार्ग अपनाकर धर्मांतरण पर जोर देते हैं ?
ये सब ऐसे प्रश्न हैं जिनका सरल और सपष्ट उतर यह है कि ईसायत और ईस्लाम राजनीतिक विचारधारायें हैं न कि धार्मिक । इन दोनों विचारधाराओं का एकमात्र मकसद अपनी राजनीतिक सोच का प्रचार-प्रसार है नकि मानवता की भलाई। अपनी विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए ये दोनों किसी भी हद तक गिर सकते है ।इस्लाम का प्रमुख हथियार है हिंसा और ईसाईयत का प्रमुख हथियार है छल कपट और हिंसा। दूसरी तरफ हिन्दुत्व एक जीबन पद्धति है जिसका प्रमुख हथियार है सरवधर्मसम्भाव। हिन्दुत्व का एकमात्र उदेश्य मानवजीबन को लोभ-लालच, राग-द्वेश, बाजारबाद से दूर रख कर आत्मबल के सहारे शुख-शांति, भाईचारे के मार्ग पर आगे बढ़ाना है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि हिन्दुत्व के प्रचार-प्रसार के लिए कभी किसी पर हमला नहीं किया गया पर ये भी उतना ही सत्य है कि जिसने भी मानव मूल्यों को खतरे मे डाला है उसको कभी बख्शा भी नहीं गया है चाहे बो किसी भी संप्रदाय से सबन्ध रखता हो।
आज भारत में ईसाई व मुसलिम आतंकवादियों की समर्थक सेकुलर सोच ने भारत के समक्ष एक नई चुनौती पैदा की है। ब्यापारबाद से प्रभावित इस सेकुलर सोच का एकमात्र उदेश्य मानव मुल्यों को नष्ट कर एक ऐसा समाज निर्मित करना है जो अचार व्यबहार में पशुतुल्य हो।
आओ जरा इस सेकुलर सोच के विचार का विशलेशण करें कि ये सेकुलरवादी जिस व्यवस्था की बकालत कर रहे हैं वो मानव जीवन को खतरे में डालती है या फिर मानव मुल्यों को बढ़ाबा देती है।
सेकुलर सोच को मानने बाले अपने आप को माडर्न कहते हैं।अपने माडर्न होने की सबसे बड़ी पहचान बताते हैं कम से कम कपड़े पहनना।इन्हें कपड़े न डालने में भी कोई बुराई नहीं दिखती। कुल मिलाकर ये कहते हैं कि जो जितने कम कपड़े पहनता है बो उतना अधिक माडर्न है। अब जरा बिचार करो कि क्या हमारे पशु कपड़े पहनते हैं ? नहीं न । हम कह सकते हैं कि अगर कपड़े न पहनना आधुनिकता है फिर तो हमारे पशु सबसे अधिक माडर्न है ! कुल मिलाकर ये सेकुलरताबादी मानव को पशु बनाने पर उतारू हैं क्योंकि समाज में कपड़े पहन कर विचरण करना मानव की पहचान है और नंगे रहना पशु की। ये सेकुलरतावादी जिस तरह नंगेपन को बढ़ाबा दे रहे हैं उससे से तो यही प्रतीत होता है कि इन्हें पशुतुल्य जीबन जीने में ज्यादा रूची है बजाय मानव जीबन जीने के ।
रह-रहकर एक विषय जो इन सेकुलरतावादियों ने बार-बार उठाया है वो है एक ही गोत्र या एक ही गांव में शादी की नई परंम्परा स्थापित करना। जो भी भारत से परिचित है वो ये अच्छी तरह जानता है कि भारत गांव में बसता है। गांव में बसने बाले भारत के अपने रिति-रिबाज है अपनी परम्परांयें हैं अधिकतर परम्परांयें वैज्ञानिक व तर्कसंगत है । इन्ही परम्परांओं में से एक परंम्परा है एक ही गांव या गोत्र में शादी न करने की। आज विज्ञान भी इस निषकर्श पर पहुंचा है कि मानव अपनी नजदीकी रिस्तेदारी में शादी न करे तो बच्चे स्वस्थ और बुद्धीमान पैदा होंगे । हमारे ऋषियों-मुनियों या यूं कह लो पूर्बजों ने भी सात पीड़ियों तक एक गोत्र में शादी न करने का नियम बनाया जो कि मानव जीबन के हित में है व तर्कसंगत है।अगर गांव बाले इस नियम को मानने पर जोर देते हैं तो इन सेकुलरताबादियों के पेट में दर्द कयों पड़ता है ? वैसे भी ये होते कौन हैं समाज द्वारा अपने सदस्यों की भलाई के लिए बनाय गए नियमों का विरोध करने बाले। वैसे भी लोकतन्त्र का तकाजा यही है कि जिसके साथ बहुमत है वही सत्य है।
इन सेकुलरतावादियों की जानकारी के लिए हम बता दें कि अधिकतर गांव में, गांव का हर लड़का गांव की हर लड़की को बहन की तरह मानता है। मां-बहन, बाप-बेटी के रिस्तों की बजह से ही गांव की कोई भी लड़की या महिला अपने आप को असुरक्षित महसूस नहीं करती है।आजादी से जीबन जीने में समर्थ होती है कहीं भी आ-जा सकती है खेल सकती है। हो सकता है ये भाई बहन की बात सेकुलरता बादियों को समझ न आये। बैसे भी अगर आप पशुओं के किसी गांव में चले जांयें ओर उन्हें ये बात समझायें तो उनको भी ये बात समझ नहीं आयेगी। क्योंकि ये भाई-बहन का रिस्ता सिर्फ मानव जीबन का अमुल्य गहना है न कि पशुओं के जीबन का ।
अभी हाल ही में पब संस्कृति की बात चली तो भी इस सेकुलर गिरोह ने ब्यभिचार और नशेबाजी के अड्डे बन चुके पबों का विरोध करने बालों का असंसदीय भाषा में विरोध किया। हम ये जानना चाहते हैं कि पबों में ऐसा क्या है जो उनका समर्थन किया जाये। कौन माता-पिता चांहेंगे कि उनके बच्चे नशा करें व शादी से पहले गैरों के साथ एसी जगहों पर जांयें जो कि ब्याभिचार के लिए बदनाम हो चुकी हैं।बैसे भी यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि भारत में इस पब संस्कृति के पांब पसार लेने के बाद भारत का हाल भी उस अमेरिका की तरह होगा जहां लगभग हर स्कूल के बाहर प्रसूती गृह की जरूरत पड़ती है। कौन नहीं जानता कि बच्चा गिराने की प्रक्रिया में सबसे ज्यादा नुकशान लड़की को ही उठाना पड़ता है। फिर पब संस्कृति के विरोधियों को महिलाविरोधी प्रचारित करना कहां तक ठीक है । लेकिन इन सेकुलरतावादियों की पशुतुल्य सोच इस बात को अच्छी तरह समझती है कि भारतीय संस्कृति को नष्ट किए बिना इनकी दुकान लम्बे समय तक नहीं चल सकती। आज ये तो एक प्रचलन सा बनता जा रहा है कि नबालिग व निर्धन लड़कीयों को बहला फुसलाकर प्यार का झांसा देकर अपनी बासना की पूर्ती करने के बाद सारी जिंदगी दर-दर की ठोकरें खाने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता है। कुल मिलाकर इस पब संस्कृति में अगर किसी का सबसे अधिक नुकशान है तो लड़कियों का । अतः महिलाओं की भलाई के लिए पब संस्कृति को जड़-मूल से समाप्त किया जाना अतयन्त आवश्यक है।इस संस्कृति का समर्थन सिर्फ वो लोग कर सकते हैं जो या तो ब्याभिचारी हैं या फिर नशेबाज। कौन नहीं जानता कि ये सेकुलरताबादी घर में अपनी पत्नी को प्रताड़ित करते हैं व पबों में जाकर गरीब लड़कीयों के शोषण की भूमिका त्यार करते हैं। कुल मिलाकर ये पब संस्कृति महिलाओं को कई तरह से नुकशान पहुंचाती है।
इसी सेकुलर सोच का गुलाम हर ब्यक्ति चाहता है कि उसकी महिला मित्र हो, जो हर जगह उसके साथ घूमे व विना शादी के उसकी बासना की पूर्ति करती रहे ।जरा इन सेकुलरताबादियों से पूछो कि क्या वो अपनी मां-बहन-बेटी-बहू या पत्नी को पुरूष मित्र के साथ वो सब करने की छूट देगें जो ये अपनी महिला मित्र के साथ करना चाहते हैं। सेकुलरता बादियों के बारे में तो बो ही बता सकते हैं पर अधिकतर भारतीय ऐसा करना तो दूर सोचना भी पाप मानते हैं। फिर महिला मित्र आयेगी कहां से क्योंकि कोई भी लड़की या महिला किसी न किसी की तो मां-बहन-बेटी-बहू या पत्नी होगी। कुल मिलाकर इस सोच का समर्थन सिर्फ पशुतुल्य जीबन के शौकीन ही कर सकते हैं मानवजीबन में विश्वास करने बाले भारतीय नहीं।
इन तथाकथकथित सेकुलरों को ये समझना चाहिए कि निजी जीबन में कौन क्या पहन रहा है इससे हमारा कोई बास्ता नहीं लेकिन जब समाज की बात आती है तो हर किसी को सामाजिक मर्यादायों का पालन करना चाहिए।जो सामाजिक मर्यादाओं का पालन नहीं कर सकते उन्हें उन देशों में चले जाना चाहिए जहां मानव मूल्यों की जगह पशु मूल्यों ने ले ली है।क्योंकि जिस तरह ये सेकुलर गिरोह लगातार मानव मूल्यों का विरोध कर पशु संस्कृति का निर्माण करने पर जोर दे रहा है वो आगे चल कर मानव जीवन को ही खतरे में डाल सकती है।
मानव जीवन की सबसे बड़ी खासियत है आने बाली पीड़ी को सभ्य संस्कार व अचार व्यवहार का पालन करने के लिए प्रेरित करना। बच्चों के लिए एक ऐसा बाताबरण देना जिसमें उनका चहुंमुखी विकास समभव हो सके। इस चहुंमुखी विकास का सबसे बड़ा अधार उपलब्ध करबाते हैं बच्चों के माता-पिता ।
ये सेकुलरतावादी जिस तरह से माता-पिता के अधिकारों पर बार-बार सवाल उठाकर बच्चों को माता-पिता पर विश्वास न करने के लिए उकसा रहे हैं । माता-पिता को बच्चों के शत्रु के रूप में प्रस्तुत करने का षडयन्त्र रच रहें। माता-पिता की छवी को लगातार खराब करने का दुस्साहस कर रहे हैं। इनका ये षडयन्त्र पूरे मानव जीबन को खतरे में डाल देगा।क्योंकि अगर बच्चों का माता-पिता के उपर ही भरोसा न रहेगा तो फिर बो किसी पर भी भरोसा नहीं करेंगे। परिणामस्वरूप बच्चे किसी की बात नहीं मानेंगे और अपना बंटाधार कर लेंगे।
भारतीय समाज में जिस विषय पर इन सेकुलरताबादियों ने सबसे बड़ा बखेड़ा खड़ा किया है वो है वासनापूर्ति करने के तरीकों पर भारतीय समाज द्वारा बनाय गए मर्यादित नियम।इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले प्रेम और ब्याभिचार में अन्तर करना परमावस्यक है।
प्यार मानव के लिए भगवान द्वारा दिया गया सबसे बड़ा बरदान है ।प्यार के विना किसी भी रिस्ते की कल्पना करना अस्मभव है। अगर हम ये कहें कि प्यार के विना मानव जीबन की कल्पना भी नहीं की जा सकती तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्यार ही वो सूत्र है जिसने सदियों से भारतीय समाज को मुस्लिमों और ईसाईयों के हिंसक हमलों के बाबजूद शांति के मार्ग से भटकने नहीं दिया है। ये प्यार और आस्था ही है जो आज भी हिन्दु समाज को भौतिकबाद व बजारू सोच से बचाकर सुखमय और प्रेममय जीबन जीने को प्रेरित कर रही है। भारतीय जीबन पद्धति में माता-पिता-पुत्र-पुत्री जैसे सब रिस्तों का अधार ही प्यार है।
सेकुलर सोच ने सैक्स को प्यार का नाम देकर प्यार के महत्व को जो ठेश पहुंचाई है उसे शब्दों में ब्यक्त करना अस्मभव नहीं तो कम से कम मुस्किल जरूर है।सैक्स विल्कुल ब्यक्तिगत विषय है लेकिन सेकुरतावादियों ने सैक्स का ही बजारीकरण कर दिया ।सैक्स को भारत में सैक्स के नाम से बेचना मुश्किल था इसलिए इन दुष्टों ने सैक्स को प्यार का नाम देकर बेचने का षडयन्त्र रचा ।परिणामस्वरूप ये सैक्स बेचने में तो कामयाब हो गए लेकिन इनके कुकर्मों ने अलौकिकता के प्रतीक प्रेम को बदनाम कर दिया।
अगर आप ध्यान से इन सेकुसरतावादियों के क्रियाकलाप को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये दुष्ट मनुष्य को विलकुल बैसे ही खुलमखुला सैक्स करते देखना चाहते हैं जैसे पशुओं को करते देखा जा सकता है मतलब कुलमिलाकर ये मनब को पशु बनाकर ही दम लेंगे। लेकिन हम दाबे के साथ कह सकते हैं कि भारतीय समाज एसी पशुप्रवृति की पैरवी करने बाले दुष्टों को न कभी स्वीकार करेगा न इनके षडयन्त्रों को सफल होने देगा।
ये सेकुलतावादी कहते हैं कि सैक्स करेंगे, लेकिन जिसके साथ सैक्स करेंगे जरूरी नहीं उसी से सादी भी की जाए।बस यही है समस्या की जड़ ।ये अपनी बासना की पूर्ति को प्यार का नाम देते हैं और जिससे ये प्यार करते हैं उसके साथ जीवन जीने से मना कर देते हैं। कौन नहीं जानता कि मानव जिससे प्यार करता है उसके साथ वो हरपल रहना चाहता है और जिसके साथ वो हर पल रहना चाहता है उसके साथ जीवन भर रहने में आपति क्यों ? अब आप खुद सोचो कि जो लोग प्यार करने का दावा कर रहे हैं क्या वो वाक्य ही प्यार कर रहे हैं या अपनी बासना की पूर्ति करने के लिए प्यार के नाम का सहारा ले रहे हैं !
अब आप सोचेंगे कि वो प्यार कर रहे हैं या सैक्स, हमें क्या समस्या है, हमें कोई समस्या नहीं। लेकिन समस्या तब हो रही है जब समाचार चैनलों पर समाचारों की जगह ब्यभिचार परोसा जा रहा है। कला और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के नाम पर चल रही फिल्मी दुनिया में भी जमकर पशुप्रवृति को परोसा जा रहा है। सामाजिक नियमों का पालन करने बालों के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया जा रहा है । पशु-तुल्य कर्म करने बालों और ऐसे कर्म का समर्थन करने बालों को आदर्श के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है।
एक साधारण सी बात यह है कि बच्चे का जन्म होने के बाद के 25 वर्ष तक बच्चे का शारीरिक व बौद्धिक विकाश होता है ये भारतीय जीवन दर्शन का आधारभूत पहलू रहा है अब तो विज्ञान ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि मानव के शारीरिक विकाश को 22 वर्ष लगते हैं ।जिन अंगो का विकाश 22 वर्ष की आयु में पूरा होता है उन्हें ताकतबर होने के लिए अगर अगले तीन वर्ष का समय और दे दिया जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुलमिलाकर भारतीय दर्शनशास्त्र व विज्ञान दोनों ही ये स्वीकार करते हैं कि 25 वर्ष की आयु तक मानव शरीर का विकाश पूरा होता है।मानव जीवन के पहले 25 वर्ष मानव को शारीरिक विकाश व ज्ञानार्जन के साथ-साथ अपनी सारी जिन्दगी सुखचैन से जीने के लिए दो वक्त की रोटी का प्रबन्ध करना होता है।
अब ये सेकुलर गिरोह क्या चाह रहा है कि बच्चा पढ़ाई-लिखाई शारीरिक विकाश व दो वक्त की रोटी का प्रबन्ध करने के प्रयत्न छोड़ कर इनके बताए रास्ते पर चलते हुए सिर्फ सैक्स पर अपना सारा ध्यान केन्द्रित करे। अब इस मूर्खों के सेकुलर गिरोह को कौन समझाए कि अगर बच्चा 25 वर्ष तक सैक्स न भी करे तो भी अगले 25 वर्ष सैक्स करने के लिए काफी हैं लेकिन अगर इन 25 वर्षो में यदि वो पढ़ाई-लिखाई,प्रशिक्षण न करे तो अगले 25 बर्षों में ये सब सम्भव नहीं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि बच्चे को चाहिए कि वो शुरू के 25 वर्षों में सैक्स वगैरह के सब टांटे छोड़कर सिर्फ अपने कैरियर पर ध्यान केन्द्रित करे ताकि आने वाली जिन्दगी के 25 वर्षों में वो आन्नद से जी सके।रही बात इन सेकुलरतावादियों की तो ये सेकुलरतावादी पिछले जमाने के राक्षसों का आधुनिक नाम है इनसे सचेत रहना अतिआवश्यक है क्योंकि मानव को सदमार्ग से भटकाना ही इन राक्षसों का मूल उद्देश्य था है और रहेगा।
एक तरफ ये सेकुलरतावादी मानव को खुले सैक्स के सिए उकसा रहे हैं दूसरी तरफ लोगों द्वारा अपनी बहुमूल्य कमाई से टैक्स में दिए गय धन में से ऐडस रोकने के नाम पर अरबों रूपय खर्च कर रहे हैं ।अब इनको कौन समझाये कि लोगों को भारतीय जीवन मूल्य अपनाने के लिए प्रेरित करने व भारतीय जीवन मूल्यों का प्रचार-प्रसार ही सैक्स सबन्धी संक्रामक रोगों का सुक्ष्म, सरल व विश्वसनीय उपाय है। वैसे भी ऐडस जैसी वीमारी का विकास ही इन सेकुलरतावादियों द्वारा जानवरों से सैक्स करने के परिणामस्वरूप हुआ है।अरे मूर्खो मानवता को इतना भयानक रोग देने के बाद भी तुम लोग पागलों की तरह खुले सैक्स की बात कर रहे हो।
अभी ऐडस का कोई विश्वसनीय उपाय मानव ढूंढ नहीं पाया है और इन सेकुलरतावादियों ने ऐडस के खुले प्रसार के लिए होमोसैक्स की बात करना शुरू कर दिया है। हम मानते हैं कि होमोसैक्स मानसिक रोग है और ऐसे रोगियों को दवाई व मनोविज्ञानिक उचार की अत्यन्त आवश्यकता है ये कहते हैं कि होमोसैक्स सेकुलरता वादियों की जरूरत है व मनोविज्ञानिक वीमारी नहीं है।इनका कहना है कि होमोसैकस भी सैक्स की तरह ही प्राकृतिक है।हम इनको बताना चाहते हैं कि सैक्स का मूल उद्देश्य प्रजनन है जिसका एकमात्र रास्ता है पति-पत्नी के बीच सैक्स सबन्ध । अगर होमोसैक्स प्राकृतिक है तो ये सेकुलरताबादी होमोसैक्स से बच्चा पैदा करके दिखा दें हम भी मान लेंगे कि जो ये मूर्ख कह रहे हैं वो सत्य है।परन्तु सच्चाई यही है कि होमोसैक्स मनोवैज्ञानिक विमारी है इसके रोगियों को उपचार उपलब्ध करवाकर प्राकृतिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करना ही हमारा कर्तब्य है न कि होमोसैक्स का समर्थन कर उसे बढ़ाबा देना।
बास्तब में सेकुलरताबादी गिरोह हर वक्त अपना सारा ध्यान मानवमूल्यों को तोड़ने पर इसलिए भी केन्द्रित करते हैं क्योंकि ये मनोरोगों के शिकार हो चुके हैं ।जब इनका सामना आम सभ्य इनसान से होता है तो इनके अन्दर हीन भावना पैदा होती है। इस हीन भाबना से मुक्ति पाने के लिए ये सारे समाज को ही कटघरे में खड़ा करने का असम्भव प्रयास करते हैं। अपनी मनोवैज्ञानिक विमारियों का प्रचार-प्रसार कर अपने जैसे मानसिक रोगियों की संख्याबढ़ाकर अपने नये शिकार तयार करते हैं कुलमिलाकर हम कहसकते हैं कि सेकुलरताबादी वो दुष्ट हैं जिनका शरीर देखने में तो मानव जैसा दिखता है पर इनका दिमाग राक्षसों की तरह काम करता है ।क्योंकि वेसमझ से वेसमझ व्यक्ति भी इस बात को अच्छी तरह जानता है कि कहीं अज्ञानबश या धोखे से भी हम किसी बुरी आदत का शिकार हो जांयें तो हमें इस वुरी आदत को अपने आप समाप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए ।अगर हम इस बुरी आदत को समाप्त न भी कर पांयें ते हमें कम से कम इसका प्रचार-प्रसार नहीं करना चाहिए।
भारत गांवों में बसता है यहां हर जगह पुलिस उपलब्ध करबाना किसी के बस की बात नहीं।अभी तो इन सेकुलरताबादियों का असर कुछ गिने-चुने सहरी क्षेत्रों में ही हुआ है जहां से हर रोज बालात्कार ,छेड़-छाड़,आत्महत्या व सैक्स के लिए घरबार,मां-बाप,पति-पत्नी सब छोड़कर भागने के समाचार आम बात हो गई है। ये सेकुलर सोच अभी कुछ क्षेत्रों तक सीमित होने के बाबजूद न जाने कितने घर उजाड़ चुकी है कितने कत्ल करवा चुकी है कितने ही बच्चों को तवाह और बर्वाद कर चुकी है लाखों बच्चे इस सेकुलर सोच का शिकार होकर नशे के आदी होकर अपने निजी जीवन व परिवार की खुशियों को आग लगा चुके हैं। कुछ पल के लिए कल्पना करो कि ये सेकुलर सोच अगर सारे भारत में फैल जाए तो हिंसा, नसा और ब्याभिचार किस हद तक बढ़ जायेगा। परिणामस्वरूप न मानव बचेगा न मानव जीवन, चारों तरफ सिर्फ राक्षस नजर आयेंगे। हर तरफ हिंसा का बोलबाला होगा ।मां-बहन-बेटी नाम का कोई रिस्ता न बचेगा।हर गली, हर मुहल्ला , हर घर वेश्यवृति का अड्डा नजर आयगा।जिस तरह हम आज गली, मुहले,चौराहे पर कुतों को सैक्स करते देखते हैं इसी तरह ये सेकुलरताबादी हर गली मुहले चौराहे पर खुलम-खुला सैक्स करते नजर आयेंगे। पाठशालाओं में मानव मूल्यों की जगह सैक्स के शूत्र पढ़ाये जायेंगे।अध्यापक इन शूत्रों के परैक्टीकल करबाते हुए ब्यस्त नजर आयेंगे। न कोई माता नकोई पिता नकोई बच्चा न कोई धर्म सब एक समान एक जैसे सब के सब धर्मनिर्पेक्ष बोले तो राक्षस। जब शरीर सैक्स करने में असमर्थ होगा तो ये नशा कर सैक्स करने की कोशिश करेंगे ।धीरे-धीरे ये नशे के आदी हो जायेंगे ।नशे के लिए पैसा जुटाने के लिए एक दूसरे का खून करेंगे।मां-बहन-बेटी को बेचेंगे।सब रिस्ते टूटेंगे। जब नशे के बाबजूद ये नपुंसक हो जायेंगे तो फिर ये अपने सहयोगी पर तेजाब डालकर उसे जलाते नजर आयेंगे।अंत में ये जिन्दगी से हताश होकर आत्महत्या का मार्ग अपनायेंगे।
हम तो बस इतना ही कहेंगे कि इन सैकुलतावादियों को रोकना अत्यन्त आवश्यक है।अगर इन्हें आज न रोका गया तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा क्योंकि ये किसी भी रूप में तालिवानों से अधिक खतरनाक हैं और तालिबान का ही बदला हुआ स्वरूप हैं। अभी इनकी ताकत कम है इसलिए ये फिल्मों,धाराबाहिकों ,समाचारपत्रों व समाचार चैनलों के माध्यम से अपनी सोच का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।कल यदि इनकी शंख्या बढ़ गयी तो यो लोग सभ्य समाज को तहस-नहस कर देंगे।
सेकुलरतावादियों की इस पाश्विक सोच का सबसे बुरा असर गरीबों व निम्न मध्य बर्ग के बच्चों पर पड़ रहा है।ये बच्चे ऐसे परिबारों से सबन्ध रखते हैं जो दो बक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं। इन सेकुलरताबादियों के दुस्प्रचार का शिकार होकर ये बच्चे अपनी आजीविका का प्रबन्ध करने के प्रयत्न करने के बजाय सैक्स के लिए दर-दर की ठोकरें खाते नजर आते हैं।
सेकुलरताबादियों की ये भ्रमित सोच न इन बच्चों का ध्यान पढ़ाई में लगने देती है न किसी काम धन्धे में।न इन बच्चों को अपने मां-बाप की समाजिक स्थिति की चिन्ता होती है न आर्थिक स्थिति की। क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों को बुरी आदतों से दूर रखने के लिए डांट-फटकार से लेकर पिटाई तक हर तरह के प्रयत्न करते हैं इसलिए इन बच्चों को सेकुलरताबादियों के बताए अनुसार अपने शत्रु नजर आते हैं।
ये बच्चे इस दुस्प्रचार का शिकार होकर अपने माता-पिता से दूर होते चले जाते हैं।ये बच्चे जाने-अनजाने नशा माफियों के चुंगल में फंस जाते हैं क्योंकि ये नशामाफिया इन बच्चों को न केबल नशा उपलब्ध करबाता है बल्कि सेकुलरताबादी विचारों का प्रयोग कर ये समझाने में भी कामयाब हो जाता है कि नशा और ब्यभिचार ही जिन्दगी के असली मायने हैं।
जब तक इन बच्चों को ये समझ आता है कि ये आधुनिकता के चक्कर में पढ़कर अपना जीबन तबाह कर रहे हैं तब तक इन बच्चों के पास बचाने के लिए बचा ही कुछ नहीं होता है।लड़कियां कोठे पर पहुंचाई जा चुकी होती हैं व लड़के नशेबाज बन चुके होते हैं कमोबेश मजबूरी में यही इनकी नियती बन जाती है।
फिर ये बच्चे कभी सरकार को कोशते नजर आते हैं तो कभी समाज तो कभी माता-पिता को। परन्तु बास्तब में अपनी बरबादी के लिए ये बच्चे खुद ही जिम्मेबार होते हैं क्योंकि सीधे या टैलीविजन व पत्रिकाओं के माध्यम से सेकुलरताबादियों की फूड़ सोच को अपनाकर अपनी जिन्दगी का बेड़ागर्क ये बच्चे अपने आप करते हैं।
आगे चलकर यही बच्चे सेकुलरताबादी,नक्सलबादी व माओबादी बनते हैं । यही बच्चे इन सेकुलरताबादियों का थिंकटैंक बनते हैं । यही बच्चे फिर समाचार चैनलों में बैठकर माता-पिता जैसे पबित्र रिस्तों को बदनाम करते नजर आते हैं।अब आप खुद समझ सकते हैं कि क्यों ये सेकुलरताबादी हर वक्त देश-समाज,मां-बाप व भारतीय संस्कृति को कोशते नजर आते हैं।
Tuesday, 3 March 2009
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