Tuesday, 17 March 2009

बरूण जी ने जो भी कहा सही कहा

धर्मनिर्पेक्षता का खूनी चेहरा
o कौन नहीं जानता किस तरह इधर धर्मनिपेक्षता की आड़ में हिन्दुओं को आपस में लड़वाने के षड्यन्त्र रचे जाते रहे चुनाव होते रहे, धर्मनिर्पेक्षता की रक्षा के बहाने हिन्दू धर्म के मान-सम्मान मर्यादा को तार तार कर हिन्दुओं को बदनाम किया जाता रहा उधर कश्मीर घाटी में सैकुलर गद्दार सरकारों के बैनर तले हिन्दुओं को कुचला जाता रहा , हलाल किया जाता रहा ,भागने पर मजबूर किया जाता रहा , सेना की जिहादियों के विरूद्ध कार्यवाही को अल्पसंख्यकों की रक्षा के नाम पर रोका जाता रहा कार्यवाही करने वाले बहादुर जवानों को मानवाधिकार का सहारा लेकर कोर्ट , कचहरियों व जेलों के चक्कर काटने पर मजबूर किया जाता रहा , मस्जिदों मे छुपे आतंकवादियों को बकरे खिलाये जाते रहे ,भारत का गृहमन्त्री बन चुके कांग्रेसी जिहादी की आतंकवादी बेटी की चाल में फंसकर उग्रवादियों को छोड़ा जाता रहा ।
o हैरानी होती है ये सुनकर कि जब निर्दोष हिन्दुओं का खून बहाने वाले राक्षसों को सजा देने की बारी आए तो मानवाधिकारों की दुहाई और विस्थापित किए जा रहे मारे जा रहे निर्दोष हिन्दुओं के लिए कोई मानवाधिकार नहीं । ये फैसले की घड़ी है फैसला तो आप खुद कीजिए कि ऐसे कुतर्क देने वाला ये सेकुलर गिरोह हिन्दुविरोधी देशद्रोही नहीं तो और क्या है ?
o परिणाम सबके सामने है । अपने ही देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र कश्मीर घाटी से हिन्दुओं का सफाया । जिस कश्मीरधाटी से या तो हिन्दुओं को भगा दिया गया या फिर हलाल कर दिया गया उसी हिन्दुओं के खून से रंगी इस कश्मीर घाटी को अल्पसंख्यकों के ठेकेदार आज अमन भाईचारे और धर्मनिर्पेक्षता की मिसाल बनाकर प्रस्तुत करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं और हिन्दुओं के खून-पसीने की कमाई इन जिहादियों को अनुदान के रूप में देकर इन्हें हिन्दू को मार-काट कर भगाने के लिए दण्डित करने की जगह पुरस्कृत कर रहे हैं !
सिर्फ एक कश्मीरघाटी थोड़े ही है जरा आसाम व उतर-पूर्व के हालात देखो । सोचो जरा कि इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों ने जिहादी बंगलादेशी घुसपैठियों व धर्मांतरण के दलाल ईसाईयों के साथ मिलकर आसाम व उतर-पूर्व में क्या हालात पैदा कर दिए हैं ?
आओ जरा आसाम की बात करें। हम ज्यादा दूर नहीं जायेंगे बात है 1983 की जब बंगलादेशी घुसपैठियों की वजह से स्थानीय निवासियों को असुविधा का एहसास होने लगा उन्होंने आवाज उठानी शुरू की लेकिन दिल्ली में बैठे धर्मनिर्पेक्षता के ठेकेदारों ने देशभक्त असमियों का साथ देने के बजाए जिहादी घुसपैठियों का साथ दिया ।
15 अक्तूबर 1983 को ऐसा कानून(आई एम डी टी) बनाया जिसके अनुसार किसी भी घुसपैठी जिहादी को विदेशी साबित करने की जिम्मेवारी सरकार या सुरक्षाबलों से हटाकर आम भारतीय नागरिक पर डाल दी गई और साथ ही 25 मार्च 1971 से पहले आए घुसपैठियों को भारतीय नागरिक मान लिया गया बस यहीं से शुरू हुआ हिन्दुओं का उजड़ना और घुसपैठियों का हावी होना जो आज विकराल रूप धारण कर चुका है।
समस्या तब और गम्भीर हो गई जब स्थानीय मुसलमान इस देशद्रोही हिन्दुविरोधी गिरोह का घुसपैठ-समर्थक रूख देख कर इन मुस्लिम घुसपैठियों के समर्थन में आ गये । इस तरह आसाम में देशद्रोह की राजनीति का सूत्रपात हुआ जो आज हिन्दुओं के मान-सम्मान जानमाल का दुश्मन बन गया है ।
आपको ये जान कर हैरानी होगी कि 1983 से 2005 तक सिर्फ आसाम में 2,00,000 से अधिक विदेशियों की पहचान की गई लेकिन इस घुसपैठ समर्थक कानून की वजह से सिर्फ दस हजार को कानूनन विदेशी सिद्ध किया जा सका और इन 10,000 में से भी सिर्फ 1500 से कम घुसपैठियों को बांगलादेश वापिस भेजा जा सका ।
देशविरोधी इस कानून को अन्ततः माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 12 जुलाई 2005 को रद्द कर इस देशविरोधी सैकुलर गिरोह की असलियत जनता के सामने उजागर कर दी ।
आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस हिन्दुविरोधी विदेशी की गुलाम देशद्रोही सरकार व गिरोह ने मानीय न्यायालय के इस देशहित में दिए गये निर्णय का डटकर विरोध किया । माननीय न्यायालय ने इस घुसपैठ को देश पर आक्रमण माना और इस कानून को घुसपैठ रोकने के रास्ते में जानबूझ कर रूकावट पैदा करने के लिए बनाया गया बताकर इसे असंवैधानिक व विभाजनकारी माना । घुसपैठियों को देश के बाहर निकालने की जिम्मेवारी केन्द्र सरकार पर डाली ।
लेकिन दुर्भाग्य से आज केन्द्र में इसी देशद्रोही गिरोह की सरकार होने के कारण पिछले तीन वर्षों में एक भी विदेशी को देश से बाहर नहीं निकाला । निकालती भी कैसे क्योंकि जो सरकार खुद विदेशी की गुलाम हो वो भला विदेशियों को बाहर निकालेगी क्या ?
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि हम बंगलादेशी घुसपैठियों को निकालने की बात कर रहे हैं पर इस हिन्दुविरोधी देशद्रोही जिहाद व धर्मांतरण समर्थक इस गिरोह के एक सहयोगी कांग्रेस ने इन घुसपैठियों के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की दुहाई देकर इस्लाम के नाम पर जिहादी छात्र व राजनीतिक संगठन बनवाकर उनके साथ मिलकर चुनाव लड़कर सरकार बना ली।
अब ये जिहादी संगठन आये दिन बम्ब विस्फोट कर रहे हैं। हिन्दुओं पर हमले कर रहें हैं उन्हें जिन्दा जला रहे हैं। पाकिस्तान के झंडे फहरा रहे हैं ।हिन्दुओं को अपना घरबार छोड़कर भागने पर मजबूर कर रहे हैं सरकार निर्दोष हिन्दुओं के जानमाल की रक्षा करने के बजाए इन जिहादी संगठनों का साथ दे रही है । जिसके परिणाम स्वरूप आसाम में लाखों हिन्दू बेघर हो चुके हैं ।
कुल मिलाकर आसाम में बिल्कुल कश्मीर जैसे हालात बनते जा रहे हैं और इसमें कोई शंका नहीं रहनी चाहिये कि ये सबकुछ समय रहते रोका न गया तो वो वक्त दूर नहीं जब आसाम भी कश्मीर की तरह हिन्दुविहीन होकर जिहादियों के कब्जे में चला जाएगा ।
हमें हैरानी तो तब होती है जब देशभकत लोग हिन्दुओं पर हो रहे जुल्मों सितम के विरूद्ध आवाज उठाते हैं तो ये सैकुलर हिन्दुविरोधी उन्हें साप्रदायिक कहकर गाली निकालते हैं व इन कातिल जिहादियों को अल्पसंख्यक बताकर इनकी हिंसा व हमलों के शिकार हिन्दुओं को ही दोषी ठहरा देते हैं और इन जिहादियों के साथ मिलकर हिन्दुओं व उनके संगठनों पर हमला बोल देते हैं इस सबसे काम न चले तो हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू आतंकवाद का झूठ फैला देते हैं । अब आप ही बताओ स्वाभिमान, सम्मान व शाँति से जीने की चाह रखने वाला हिन्दू करे तो क्या करे ? कोई और हिन्दू देश भी तो नहीं कि वहां भाग जांयें !
अब ये फैसला हम हिन्दुओं पर छोड़ते हैं कि उन्हें मुस्लिमबहुल कश्मीर घाटी ,आसाम, ईसाई बहुल उत्तर-पूर्व या वांमपंथ से प्रेरित माओवाद व नस्लवाद प्रभावित क्षेत्रों जैसी धर्मनिर्पेक्षता चाहिए जो इस्लाम,ईसाईयत(नक्सलवाद) व वांमपंथ(माओवाद) के प्रचार प्रसार के लिए हिन्दुओं का खून बहाने में फक्र महसूस करती है या हिन्दुबहुल क्षेत्रों जैसा सर्वधर्म सम्भाव जहां 95% से अधिक हिन्दू आबादी होने के बावजूद आज तक हिन्दूधर्म के प्रचार-प्रसार के लिए हमला कर किसी भी मुस्लिम या ईसाई या वांमपंथी का खून नहीं बहाया गया !
o हमें घृणा है होती उन गद्दारों से जो एक काल्पनिक मस्जिदध्वंस, जिसमें सेकुलर नेताओं द्वारा हिन्दुओं का खून पानी की तरह बहाया गया,पर हिन्दुओं द्वारा एक भी मुसलमान नहीं मारा गया, के लिए तो छाती पीट-पीट कर रोते हैं पर कश्मीर घाटी में हलाल किए गये व आसाम में मारे जा रहे हजारों हिन्दुओं की मौत व तोड़े गए मन्दिरों पर एक आंसु तक नहीं बहाते उल्टा उनकी मौत पर रो रहे हिन्दूसंगठनों को सांप्रदायिक कहकर गाली निकालते हैं । आतंकवादी कहते हैं और लोकतंत्र के मन्दिर पर हमला करने वाले आतंकवादियों को बचाने के लिए मोमबती जलाओ अभियान चलाते हैं ।
o हमें घिन आती है उन बिके हुए दलालों से जो खुद को सैकुलर लेखक व मानवाधिकारवादी सामाजिक कार्यकर्ता प्रचारित करने के लिए अपने ऊपर जिहादियों व धर्मांतरण के ठेकेदारों द्वारा लगाई जाने वाली बोली की राशि बढ़वाने के लिए गुजरात में जिहादियों द्वारा हिन्दुओं को जिन्दा जलाकर लगाई गई आग में मारे गए सैंकड़ों मुसलमानों के विरोध में दर्जनों लेख लिख डालते हैं पर कश्मीर घाटी में मारे गए हजारों हिन्दुओं के कत्ल के विरोध में लिखने के लिए उनकी कलम की स्याही सूख जाती है।
हम बड़ी विनम्रता से माननीय सर्वोच्च न्यायालय से भी यह जानना चाहेंगे कि क्यों माननीय न्यायालय ने इन हिन्दुविरोधी जिहाद समर्थक देशद्रोहियों के कहने पर गुजरात के अधिकतर मामले गुजरात से बाहर इन हिन्दूविरोधियों द्वारा शासित राज्यों में स्थानांत्रित कर दिए ?
यही पैमाना कश्मीरघाटी व देश के अन्य हिस्सों में इन हिन्दुविरोधी धर्मनिर्पेक्षतावादियों की सरकारों के बैनर तले चल रहे हिन्दुओं के नरसंहार के लिए क्यों नहीं अपनाया गया जो आज भी जम्मू के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों सहित देश के कई अन्य हिस्सों में जारी है ?
जहां पर बड़े से बड़े नरसंहार के दोषियों को या तो निचली अदालतों ने जिहादसमर्थक सरकारों द्वारा अधूरे तथ्य पेश करने की वजह से, प्रमाण के अभाव में छोड़ दिया या फिर इन हिन्दुविरोधी सरकारों ने कानून बनवाकर या आत्मसमर्पण का सहारा लेकर छुड़वादिया । हद तो तब हो गई जब इन देशविरोधी जिहादियों को सुरक्षाबलों में भरती कर दिया गया ।
हम हिन्दू माननीय सर्वोच्चन्यायालय से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि आज तक इस तरह छोड़े गये हिन्दुओं के नरसंहारों के आरोपियों व दोषियों से सबन्धित सभी मामलों की जांच करवायी जाए ताकि इन नरसंहारों के परिणामस्वरूप हिन्दुओं के अन्दर पैदा हो रहे आक्रोश को समय रहते इन्साफ दिलवाकर दूर किया जा सके ।
आज इस हिन्दुविरोधी महौल में हिन्दुओं को भारतीय सेना के बाद अगर किसी से न्याय की उम्मीद है तो वो माननीय न्यायालय से है ।
आशा है माननीय सर्वोच्चन्यायालय अल्पसंख्यकवाद व धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर हिन्दुओं से किए जा रहे भेदभाव व अत्याचारों का सुओ मोटो नोटिस लेकर इस भेदवाद को खत्म कर हिन्दुविरोधी सरकारों द्वारा गृहयुद्ध की ओर धकेले जा रहे देश के कदमों को रोककर मानवता की आधार स्तम्भ भारतीय संस्कृति- बोले तो-हिन्दू संस्कृति को बचाने में अपना अमूल्य योगदान देकर असंख्य प्राणों की रक्षा करने में समर्थ होगा ।
o हां तो हम बात कर रहे थे कश्मीरघाटी में जिहादियों द्वरा हिन्दुओं पर ढाये गये अत्याचारों के बारे में लेकिन परस्थितिवश न्याय की आशा की एक किरण माननीय न्यायालय का समरण हो आया ।
o आज भी जम्मू व देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग पाँच लाख हिन्दू अपना घरबार छोड़ कर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं ।उनके बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मर रहे है । अपने बच्चों को जिन्दा रखने की उम्मीद में विस्थापित हिन्दू अपने बच्चों को बेचने पर मजबूर हैं ।
जाओ जरा उनसे पूछो धर्मनिर्पेक्षता की राजनीति करने वाले मानव हैं या दानव। इन दानवों के पास मक्कामदीना की यात्रा के लिए प्रतिमुसलमान 50000 रूपये व जेरूशलम की यात्रा के प्रति ईसाई 80000 रूपये देने के लिए तो हैं पर अपने ही देश में विस्थापित हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं । काश ये समझ पाते सर्वधर्मसम्भाव के मूलमन्त्र को !
o जिस गुलाम सरकार में शामिल दरिंदों की नींद हिथरो हवाई अड्डे पर बम्ब विस्फोट के आरोप में पकड़े गये जिहादी को मिल रही यातनाओं की वजह से उड़ जाती है। उन्हें अपने ही देश में दर दर भटक रहे इन हिन्दुओं का दर्द क्यों नहीं दिखाई देता ?
नींद उड़ना तो दूर यहां तो इन हिन्दुओं के दर्द को जन-जन तक पहुँचाने की कोशिश में लगे हिन्दूसंगठनों को ये सरकार आतंकवादी कहती है, सांप्रदायिक कहती है व हिन्दूरक्षा की विचारधारा का समर्थन करने वाले साधु सन्तों यहां तक कि देशभक्त सैनिकों को जेलों में डालकर उससे भी बुरी यातनांएं देती है ,जो यांतनाऐं एक जिहादी को मिलने पर इनकी नींद उड़ जाती है।
o क्यों इनको समझ नहीं आता कि घर से उजड़ने का दर्द क्या होता है ? क्यों इनको समझ नहीं आता कि ये यातनांयें ये हिन्दू किसी पर हमला करने की वजह से नहीं बल्कि अपने ही हमवतन गद्दारों के धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में रचे गये हिन्दुविरोधी षड्यन्त्रों की वजह से झेल रहे हैं ?
ये धर्मनिर्पेक्षता नहीं गद्दारी है देशद्रोह है हिन्दूविरोध है शैतानीयत है। नहीं चाहिए हिन्दुओं को ऐसी धर्मनिर्पेक्षता जो हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ कर व हिन्दुओं का खून बहाकर फलतीफूलती है । आज इसी वजह से जागरूक हिन्दू इस धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में छुपे हिन्दूविरोधियों को पहचान कर अपनी मातृभूमि भारत से इनकी सोच का नामोनिशान मिटाकर इस देश को धर्मनिर्पेक्षता द्वारा दिए गये इन जख्मों से मुक्त करने की कसम उठाने पर मजबूर हैं।

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