बिनशकाले बिपरीत बुद्धि
CBI द्वारा कवात्रोची को क्लीन चिट देना एंटोनियो माइनो मारियो उर्फ सोनिया गांधी के देशविरोधी अपराधों की बेशर्मी की इंतहां है।
हमने पहले भी लिखा था आज फिर लिख रहे हैं कि मनमोहन सिंह गुलाम प्रधानमंत्री हैं व सारी की सारी सरकार देशविरोधी -हिन्दुविरोधी इटालियन इसाइ एंटोनियो माइनो मारियो की गुलाम है ।
बोफोर्स दलाली कांड एंटोनियो माइनो मारियो व इसके इटालियन मित्र कवात्रोची के भारत विरोधी षडयन्त्र का परिणाम था। बदनाम किया गया बेचारे राजीब गांधी जी को।
इस दलाली कांड में जो भी हुआ उसमें सोनिया गांधी हर तरह से दोषी है।कहते भी हैं कि चोर चोरी करने के बाद कोइ न कोइ प्रमाम छोड़ ही जाता है और यही सब इस बोफोर्स कांड में भी हुआ।
इस डकैती में एंचोनिया के सामिल होने का सपष्ट प्रमाण है एंटोनियो के कहने पर गुलाम सरकार द्वारा जनवरी 2006 में कवात्रोची के विदेशों में जमा पैसे को छुड़बाना।
सोनिया गांधी के इस चोरी में सामिल होने का दूसरा प्रमाण है कवात्रोची को क्लीनचिट देकर सरकार जाने से पहले मामले को हमेसा के लिए दबा देने का असफल प्रयत्न ।
सोनिया का गुलाम मनमोहन सरकार हार रही है इसका भी ये सपष्ट संकेत है
सोनिया गांधी ने भारत में चोरी से कमाया पैसा बिदेसों में जमाकर रखा है इसका सबसे बड़ा प्रमाण है प्रखर देशभक्त स्वामी रामदेब जी द्वारा बिदेशी बैंकों जमा काले धन को बापिस लाने के अभियान का कांग्रेस व विदेशी टुकड़ों पर पलने बाले उसके सहयोगी मीडिया द्वारा बिरोध करना।
भारत के एकमात्र बेदाग प्रधानमंत्रीपद के दाबेदार लालकृष्ण जी अडबाणी द्वारा सरकार बनाने के बाद 100 दिनों के भीतर बिदेशी बैंकों में जमा कालेधन को भारत लाने की घोषणा के बाद कांग्रेस द्वारा अडबाणी जी पर बोला गया चौतरफा हमला इस बात का चौथा प्रमाण है कि कांग्रेस की आका किस हद तक कालेधन की बात सुनकर घबरा गइ है।
राजीब गांधी जी की हत्या में समिलित होने की संदिगध डी एम के के साथ मिलकर सोनिया गांधी द्वारा सरकार बनाना इस बात का पांचमा प्रमाण है कि राजीब जी की हत्या में कवात्रोची के साथ-साथ सोनिया गांधी भी सामिल थी। इस बात की पुष्टी पिछलेदिनों हो चुकी है।
आपको याद होना चाहिए कि जिस तरह बोफोर्स कांड मे राजीब गांधी जी को बदनाम किया गया ठीक इसी तरह अनाज के बदले तेल घोटाले मेभी पैसा सोनिया गांधी ने खाया और बदनाम किया नटबर सिंह जी को।
अधिक जानकारी के लिए आप मेरा ब्लाग पड़ें देस में कैसे-कैसे देशविरोधी-हिन्दुविरोधी ष्डयन्त्र हो रहे हैं आपको सब पता चल जायगा।
सोनिया गांधी के इस कारनामे के बाद हम तो यही कहेंगे विनाशकाले विपरीत बुद्धि।
जागो हिन्दु जागो।
इस डकैत की गुलाम सरकार के बाकी कारनामें भी देखो जरा
v इस सैकुलर गिरोह ने तो मानो निर्दोष शान्तिप्रिय हिन्दुओं को आतंकवादी घटनाओं में झूठा फंसाकर आतंकवादी सिद्ध करने की कसम उठा रखी हो और उठांए भी क्यों न एक तरफ शहीद मोहनचन्द शर्मा जी के बलिदान का अपमान करने के मुद्दे पर अभी देशभक्त हिन्दुओं का गुस्सा शान्त भी नहीं हुआ था कि राजठाकरे के माध्यम से हिन्दुओं को क्षेत्रवाद के आधार पर लड़ाकर फूट डालो और राज करो की साजिश का पर्दाफाश हो गया। ऊपर से पिछले कई दशकों से बोले जा रहे इस झूठ का कलंक कि हिन्दू आतंकवादी हैं जब पिछले पाँच सालों के षड्यन्त्रों के बावजूद कोई हिन्दू आतंकवादी न मिला तो मरता क्या न करता इसलिए हताशा में एक निर्दोष राष्ट्रभक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को ए .टी .एस पर दबाव बनाकर डलबा दिया जेल में यह भी न सोचा कि देशद्रोही हिन्दुविरोधी जिहाद समर्थक गिरोह की सरकार द्वारा निर्दोष राष्ट्रभक्त हिन्दुओं को जेल में डालकर ‘हिन्दू आतंकवादी हैं , ‘हिन्दू आतंकवादी हैं , प्रचारित करने से कोई उस पर भरोसा करने वाला नहीं क्योंकि सब जानते हैं कि जिहादी आतंकवादियों को अपना भाई बताने वाली सरकार, उनको सजा से बचाने के लिए पोटा हटाने वाली सरकार, सेना व पुलिस के बहादुर जवानों द्वारा मारे गए जिहादी आतंकवादियों के परिवारों को मुआबजा देने वाली सरकार, माननीय सर्वोच्च न्यायालय से फाँसी की सजा प्राप्त जिहादी आतंकवादी मुहम्मद अफजल को फाँसी न देकर दो वर्ष से उसे बचाकर रखने वाली सरकार ,प्रतिशोध में बेबकूफ बने हिन्दू राहुल राज को एक पल में आनॅ द स्पाट गोली मारकर फाँसी देने वाली सरकार, क्वात्रोची जैसे देशविरोधी लुटेरे एन्टोनियो माइनो मारियो के एजेंट के लंदन बैंक में देशभक्त सरकार द्वरा जब्त करवाए गए वोफोर्स काँड दलाली के पैसे को कानूनमन्त्री भेज कर छुड़वाने वाली सरकार, आसाम में बंगलादेशी घुसपैठियों के साथ मिलकर सरकार बनाकर जिहादी आतंकवादियों द्वारा हिन्दुओं को मरवाने व बेघर करवाने वाली सरकार, इन हत्यारे बंगलादेशी घुसपैठिए जिहादी आतंकवादियों को बांगलादेश वापिस भेजने के लिए माननीय सर्वोच्चन्यायालय के आदेशों को न मानने व ऐसे सभी कानूनों को तोड़ने वाली सरकार, जिहादी आतंकवादियों को कानून बनवाकर जेलों से छुड़वाने वाली सरकार , जिहादी आतंकवादियों को अपने प्राणों की बाजी लगाकर पकड़ने या मारने वाले सेना व पुलिस के बहादुर जवानों को जेलों में डलवाने वाली सरकार,शहीद मोहन चन्द शर्मा जी जैसे देशभक्तों के बलिदान का अपमान करने वाली सरकार देशभक्तों को अपमानित करने के लिए कोई भी षड्यन्त्र रच सकती है, किसी भी हद तक गिर सकती है ।
v निर्दोष राष्ट्रभक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर जी को जेल में डालना इसी षड्यन्त्र का एक हिस्सा है इससे पहले भी यह सरकार राष्ट्रभक्त सन्त परम पूजनीय स्वामी रामदेव जी को अपमानित करने के लिए कई षड्यन्त्र रचकर मुंह की खाकर अपनी फजीहत करवा चुकी है । निर्दोष राष्ट्रभक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर जी के मामले में भी सरकार के षड्यन्त्र का यही हश्र होने वाला है । वैसे भी जरा आप निष्पक्ष होकर सोचो कि जो सरकार हिन्दूविरोधियों को खुश करने के लिए भगवान राम जी के अस्तित्व को ही नकार सकती हो वो भला भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए क्या नहीं कर सकती है बोले तो ,कुछ भी कर सकती है ये तो सेना, राष्ट्रभक्त हिन्दुओं व उनके संगठनों का डर है जो इस देशद्रोही हिन्दुविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह को अपने नापाक कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर देता है वरना आज तक तो यह देशद्रोही हिन्दुविरोधी गिरोह जिहाद व धर्मांतरण समर्थकों के साथ मिलकर सारे भारत से भारतीय संस्कृति बोले तो हिन्दू संस्कृति का नामोनिशान उसी तरह मिटा देता जिस तरह कश्मीरघाटी,उत्तरपूर्व के कई क्षेत्रों से मिटाया व देश के कई अन्य हिस्सों में यह हिन्दू मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान जोर-शोर से चल रहा है पर यह वहीं सम्भव हो पा रहा है जहां हिन्दू संगठन बिल्कुल कमजोर हैं और हिन्दू संगठन वहां पर कमजोर हैं जहां पर राष्ट्रभक्त कम संख्या में हैं अतः सारे भारत में राष्ट्रभक्तों की संख्या बढ़ाकर व देशद्रोही हिन्दुविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थकों की संख्या घटाकर भारतीय सेना के हाथ मज़बूत कर भारतीय संस्कृति को बचाकर विश्वगुरू भारत का पुनःनिर्माण करने के लिए हिन्दूक्रांती देश की जरूरत है शौक नहीं ।
Tuesday, 28 April 2009
Saturday, 25 April 2009
जागो हिन्दु जागो बरूण तो एक बहाना है असल मकसद तो हिन्दुओं को डरा धमका कर मिटाना है
जो कांग्रेस हिन्दुओं के कातिल गद्दार मुसलिम जिहादी आतंकबादी मुहम्मद अफजल को फांसी से बचा रही है बो ही कांग्रेस हिन्दुह्रदय सम्राट बरूण गांधी को मारने के लिए षडयन्त्र रच रही है। हिन्दुओं को कांग्रेस की गद्दारी व हिन्दुविरोध का और क्या प्रमाण चाहिए
हिन्दुविरोध-- कांग्रेस की पुरानी आदत
कांग्रेस में ऐसे देशभक्त हिन्दू कार्यकर्ताओं की बहुत बढ़ी संख्या है, जो असंगठित हैं व एक दूसरे में विश्वाश की कमी की वजह से, इन देशद्रोहियों की जुंडली के देशविरोधी-हिन्दुविरोधी षड़यन्त्रों का मुंहतोड़ जबाब देने में अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं इसलिए खामोश हैं।
उन्हें अपनी चुपी तोड़ते हुए एक दूसरे पर विश्वास करते हुए संगठित होकर इस देशद्रोहियों की जुंडली को बेनकाब कर अपदस्थ करना होगा और देशभक्त लोगों को कांग्रेस के शीर्ष पदों पर बिठाकर कांग्रेस के देशविरोधी-हिन्दुविरोधी जिहादी आतंकवाद व धर्मांतरण समर्थक कदमों को रोककर देशभक्ति की राह पर चलाना होगा ।
नहीं तो हिन्दुस्थान की जनता ये मानने पर मजबूर हो जाएगी कि हरेक कांग्रेसी देशविरोधी-हिन्दुविरोधी जिहादी आतंकवाद व धर्मांतरण समर्थक है और देश मे आए दिन बम्ब विस्फोटों में मारे जाने वाले निर्दोष हिन्दुओं, सैनिकों, अर्धसैनिक बलों व पुलिस के जवानों के कत्ल के लिए जिम्मेवार है।
परिणाम स्वरूप ये सब मिलकर कांग्रेसियों के खून के प्यासे हो सकते हैं क्योंकि अब कांग्रेस के पाप का घड़ा भर चुका है । भगवान राम-जो करोड़ों हिन्दूस्थानियों के आस्था विश्वाश और श्रद्धा के केन्द्र हैं-के अस्तित्व को नकारना व सनातन में विश्वाश करने वाले शांतिप्रिय हिन्दुओं व सैनिकों को आतंकवादी कहकर जेलों में डालकर बदनाम करना-इस पाप के घड़े में समाने वाले अपराध नहीं हैं।
· वैसे भी कांग्रेस की स्थापना एक विदेशी अंग्रेज ए ओ हयूम(जो ब्यापार के बहाने भारत आकर धोखा देकर देश को गुलाम बनाने बाली ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकारी था) ने 1885 में विदेशियों के राज को भारत में लम्बे समय तक बनाए रखने के लिए अंग्रेजी शासकों के सहयोग से की थी । तब इसका मूल उदेश्य था क्रांतिकारियों की आवाज को जनसाधारण तक पहुंचने से रोकना और ये भ्रम फैलाना कि जनता का प्रतिनिधत्व कांग्रेस करती है न कि क्रांतिकारी।
· इसकी स्थापना का कारण बना 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम जिससे अंग्रेजों के अन्दर दहशत फैल गई ।
· आओ ! जरा नमन करें, शहीद मंगलपांडे, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ,शहीद तांत्य टोपे, शहीद नाना साहिब जैसे अनगिनत शहीदों को जो राष्ट्र की खातिर बलिदान हुए।
· कांग्रेस की स्थापना के बाद कुछ समय तक अंग्रेजी शासकों को किसी अंदोलन का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन धीरे- धीरे क्रांतिकारियों ने कांग्रेस को अपना मंच बना लिया । शहीद भगत सिंह , शहीद राजगुरू, शहीद सुखदेव, शहीद चन्दरशेखर आजाद, शहीद बाल गंगाधर तिलक , शहीद लाला लाजपतराय, शहीद विपन चन्द्र पाल जैसे असंख्य क्रांतिकारी कांग्रेस से जुड़े और देश के लिए बलिदान हुए ।
पर मोहन दास जी व नेहरू जी के नेतृत्व में कांग्रेस का एक ग्रुप क्रांतिकारियों को कभी गले न लगा पाया । वरना क्या वजह थी कि नेताजी सुभाषचन्द्र वोस (जिन्होने 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पट्टाभीसीतारमैइया जी को हराया जिनका समर्थन मोहन दास जी कर रहे थे) को कांग्रेस छोड कर आजाद हिन्द सेना बनानी पड़ी ।
· शहीद भक्तसिंह जैसे प्रखर राष्ट्रवादी देशभक्त के बचाव में यह ग्रुप खुलकर सामने नहीं आया उल्टा उनको गुमराह क्राँतिकारी कहकर उनके देश की खातिर किए गए बलिदान को अपमानित करने का दुःसाहस किया । यह ग्रुप या तो अपने आप को बचाने में लगा रहा या फिर मुस्लिमों के तुष्टीकरण में लगा रहा ।
मोहन दास जी व नेहरू जी ने मुस्लिमों को प्रसन्न करने के लिए उनकी हर उचित-अनुचित, छोटी-बड़ी मांग को यह सोच कर माना, कि इनके लिए त्याग करने पर इनके अन्दर भी राष्ट्र के लिए प्यार जागेगा और ये भी हिन्दुओं की तरह शान्ति से जीना सीख जायेंगे ।
परन्तु हुआ उल्टा मोहन दास जी व नेहरू जी ने मुस्लिमों को प्रसन्न करने का जितना ज्यादा प्रयत्न किया वे उतने ज्यादा अशान्त होते चले गये ।
परिणाम हुआ धर्म के नाम पर देश का विभाजन । मुसलमानों के लिए पाकिस्तान व हिन्दुओं के लिए वर्तमान भारत । सरदार बल्लभभाई पटेल व वीर साबरकर जी ने कई बार इनके गलत निर्णयों का विरोध किया लेकिन इन पर तो धर्मनिर्पेक्षता-बोले तो-मुस्लिम तुष्टिकरण का ऐसा भूत सबार था जिसने देश को तबाह कर दिया।
उधर देश का धर्म के आधार पर विभाजन स्वीकार कर लिया । अंग्रेजों को लिख कर दे दिया कि नेताजी सुभाष चन्द्रवोस जैसा घोर राष्ट्रवादी क्राँतिकारी जब भी हिन्दुस्थान आएगा तो उसे उन दुष्ट- डकैत साम्राज्यबादियों के हवाले कर दिया जाएगा, जिन्होंने 300 वर्ष तक इस देश का लहू पानी की तरह बहाया व देशछोड़ते वक्त अपने लिए काम करने वाले को कुर्सी पर बिठाया । इधर लोगों को यह कहकर बरगलाना शुरू कर दिया कि देश आजाद करवा दिया । आज तक लोगों को यह नहीं बताया कि अगर पाकिस्तान की ओर से हस्ताक्षर सैकुलर पुराने काँग्रेसी मुहम्मदअली जिन्ना ने किए थे तो भारत की ओर से सैकुलर काँग्रेसी ज्वाहरलाल नेहरू ने किए थे या किसी और ने ?
उधर मुसलमानों ने हिन्दुओं का कत्लेआम शुरू कर रखा था इधर मोहन दास जी व नेहरू जी हिन्दुओं को यह कहकर बरगलाने में लगे हुए थे कि वो हमारे भाई हैं जो हिन्दुओं का कत्लेआम कर रहे हैं , हिन्दुओं की माँ बहनों की इज्जत पर हमला कर रहे हैं इसलिए आप कायर और नपुंसक बनकर हमारी तरह तमाशा देखो, जिस तरह क्रांतिकारी देश के लिए शहीद होते रहे देश छोड़ते रहे और हम अपने अंग्रेज भाईयों से सबन्ध अच्छे बनाए रखने के लिए तमाशबीन बने रहे ब क्रांतिकारियों को भला बुरा कहते रहे।
1947 में धर्म के आधार पर विभाजन स्वीकार कर मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान बनवा देने के बाद भी इन दोनों ने हिन्दुओं के हितों की रक्षा करने के बजाए हिन्दुओं के नाक में दम करने के लिए उन अलगावबादियों के वंशजों को देश में रख लिया जो देश विभाजन की असली जड़ थे व अपने हिन्दुविरोधी-देशविरोधी होने का परिचय दिया।
आज हिन्दू जानना चाहता है कि अगर हिन्दू-मुस्लिम एक साथ रह सकते थे तो देश का विभाजन क्यों करबाया गया ? और नहीं रह सकते थे तो उन्हें देश में क्यों रखा गया ?
वे कितने दूरदर्शी थे इसका पता आज आए दिन देश के विभिन्न हिन्दुबहुल क्षेत्रों में होने वाले बम्बविस्फोटों व मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में होने वाले दंगों से पता चलता है। काश ! उन्होंने बकिंम चन्द्र चटर्जी जी द्वारा लिखित उपन्यास आनंदमठ पढ़ा होता(सैकुलर गिरोह में सामिल हिन्दुओं को ये उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए) तो शायद वो ये गलती न करते और भारत के सर्बमान्य नेता होते और आज हिन्दू इस तरह न मारे जाते।
हम इस बात को यहां स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम निजी तौर पर मोहन दास जी की आर्थिक सोच व उनकी सादगी के कट्टर समर्थक हैं जिसमें उन्होंने स्वदेशी की खुलकर बकालत की । पर क्या नेहरू जी को यह सोच पसन्द थी ? नहीं न । कुर्सी की दौड़ में ईसाईयत की शिक्षा प्राप्त नेहरू जी मांउटबैटन की यारी व कुर्सी की दौड़ में इनसानित और देशभक्ति छोड़कर वो सब कर बैठे जो देशद्रोही गद्दार मुस्लिम जिहादियों और सम्राज्यबादी ईसाईयों के हित में व हिन्दुस्थान और हिन्दुओं के विरोध में था ।
कई बार मन यह सोचने पर मजबूर होता है कि मोहन दास जी के नाम जितनी भी बदनामियां हैं उन सबके सूत्रधार नेहरू जी थे । जिन हालात में मोहन दास जी के शरीर को खत्म किया गया उसके सूत्रधार भी कहीं न कहीं नेहरू जी ही थे क्योंकि नेहरू जी प्रधानमन्त्री थे, गांधी जी सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी थी और उनके खत्म होने का सबसे ज्यादा फायदा नेहरू परिवार ने ही उठाया। जिसके मोहन दास जी कटर विरोधी थे क्योंकि उन्होंने तो देश विभाजन के बाद ही कांग्रेस को समाप्त करने का आग्रह किया था जिसके नेहरू जी विरूद्ध थे अब जरा सोचो मोहन दास जी को किसने खत्म करवाया ?
क्या आपको याद है कि जब 1948 में पाकिस्तानी सेना ने कबाइली जिहादियों के वेश में भारत पर हमला किया तब भी नेहरू जी की भूमिका भारत विरोधी ही रही। यह वही नेहरू जी हैं जो पटेल जी के लाख समझाने के बावजूद, इस हमले का मुकाबला कर मुस्लिम जिहादी आक्रांताओं को मार भगाने के बजाए संयुक्तराष्ट्र में ले गए ।
यह वही नेहरू जी हैं जिन्होंने संयुक्तराष्ट्र की बैठक में पटेल जी के रोकने के बाबजूद, पाकिस्तान द्वारा कब्जे में लिए गए जम्मू-कश्मीर के हिस्से को बार-बार आजाद कश्मीर कहा जिसका खामियाजा भारत आज तक भुक्त रहा है। अब आप ही बताइए कि आज जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों द्वारा मारे गये या मारे जा रहे निर्दोष हिन्दुओं व शहीद हो रहे सैनिकों के कत्ल के लिए कांग्रेस व नेहरू जी को जिम्मेवार क्यों न ठहराया जाए ?
यह वही नेहरू जी हैं जिन्होंने हिन्दुविरोधीयों को खुश करने के लिए कहा था ‘ मैं दुर्घटनावश हिन्दू हूँ ’।
आपको यह जान कर हैरानी होगी कि पचास के दशक में आयुद्ध कारखानों में नेहरू जी का जोर हथियारों की जगह सौंदर्य-प्रसाधन बनवाने पर ज्यादा था । जिसके विरूद्ध तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी ने नेहरू जी को पत्र लिखकर चेताया भी था । पर नेहरू जी तो कबूतर की तरह आँखें बन्द किए हुए कहते फिर रहे थे, हमारे ऊपर कोई हमला नहीं कर सकता । वे कितने दूरदर्शी थे इसका पता 1962 में ही लग गया,जब हथियारों की कमी के कारण हमारे बहादुर सैनिकों को शहीद होना पड़ा और भारत युद्ध हार गया। हमारी मातृभूमि के एक बड़े हिस्से पर चीन ने कब्जा कर लिया।आओ उन शहीदों को हर पल प्रणाम करने का प्रण करें । काश नेहरू जी को पता होता कि शान्ति बनाए रखने का एकमात्र उपाय है युद्ध के लिए तैयार रहना।
Ø कांग्रेस का इस्लांम में व्याप्त बुराई यों का समर्थन करना व उन्हें बढ़ाबा देने का इतिहास कोई नया नहीं है यह मामला शुरू होता है तुर्की में चलाए जा रहे खिलाफत आन्दोलन के समर्थन से । बाद में ये कांग्रेस जन्म देती है जिन्ना जैसे नेताओं को, जो आगे चलकर पाकिस्तान की माँग उठाते हैं, कांग्रेस मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनवाती है, इस दौरान जिहादी मुसलमान हिन्दुओं पर जगह-जगह हमला करते हैं, हिन्दू मारे जाते हैं परन्तु कांग्रेस यह सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास करती है कि कोई मुस्लिम जिहादी आतंकी न मारा जाए ।
Ø मानो इतने हिन्दुओं का खून पी लेने के बाद भी इस कांग्रेस नामक डायन की प्यास न बुझी हो इसलिए इस डायन ने यह सुनिश्चित किया कि भारत के हिन्दुओं वाले हिस्से को हिन्दूराष्ट्र न बनने दिया जाए ।
Ø इस कांग्रेस नामक डायन द्वरा यह भी सुनिश्चित किया गया कि भविष्य में हिन्दू सुखचैन से न जी सकें और कांग्रेस का वोट बैंक भी चलता रहे । अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने भारत का विभाजन करवाने वाली, देशद्रोही जिहादी औंरगजेब और बाबर की संतानों को, यहां रख लिया ताकि हिन्दूराष्ट्र भारत में हिन्दुओं का खून पानी की तरह बहाया जाता रहे ।
Ø अब आप ही फैसला करें कि भारत में मुस्लिम जिहादी आतंकवादियों द्वारा भारतीय संस्कृति के प्रतीक दर्जनों मन्दिरों पर किए जा रहे हमलों, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं को चुन चुन कर मार कर या हिन्दुबहुल क्षेत्रों में बम्बविस्फोट करके चलाए जा रहे हिन्दू मिटाओ अभियान के लिए कांग्रेस को जिम्मेवार क्यों न माना जाए ?
Ø अगर जिम्मेवार ठहराया जाए जो कि है तो क्यों न उसके विरूद्ध देशब्यापी गद्दार मिटाओ अभियान चलाकर उसी के बापू द्वारा 1947 में लिए गए कांग्रेस मिटाओ के निर्णय को आज 2009 से शुरू कर 2020 से पहले-पहले पूरा किया जाए ।
जिन दो नेताओं की क्राँतिविरोधी हिन्दुविरोधी मुस्लिमपरस्त षड्यन्त्रकारी सोच के चलते कई क्रांतिकारी शहीद होकर भी हिन्दूस्थानी जनता के अखण्ड भारत के स्वप्न को पूरा न कर सके । उन्हीं दो नेताओं में से कांग्रेसियों ने एक को अपना बापू व दूसरे को अपना चाचा बना लिया( उन दोनों की आत्मा से हम क्षमा मांगते हैं अगर उनकी कोई ऐसी मजबूरियां रहीं हों जो हम नहीं समझ पा रहे हैं । ये सबकुछ हम हरगिज न लिखते अगर मोहन दास जी की बात मान कर कांग्रेस को बिसर्जित कर दिया गया होता । तो न यह कांग्रेस इस तरह भगवान राम के अस्तित्व को नकारती, न देशद्रोह के मार्ग पर आगे बढ़ती। बेशक उनकी मजबूरियां रही हों पर आज की कांग्रेस की कोई मजबूरी नहीं है इसके काम स्पष्ट देशद्रोही और हिन्दुविरोधी हैं ये हम सब हिन्दू देख सकते हैं ) ।
फिर प्रचार के हर साधन व सरकारी तन्त्र का दुरूपयोग कर इन्हें सारे देश का बापू व चाचा प्रचारित करने का असफल प्रयत्न किया गया । यह देश को कांग्रेस की हिन्दुविरोधी-देशविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक सोच का गुलाम बनाने जैसा था ।
प्रश्न ये भी उठता है कि जिस देश की सभ्यता संस्कृति इस दुनिया की सबसे प्राचीनतम हो व जिस देश के साधारण राजा अशोक महान जी व विक्रमादित्य जी को हुए 2000 वर्ष से अधिक हो चुके हों क्या ऐसे देश का बापू या चाचा 79 वर्ष का हो सकता है ?
नहीं ,न । वैसे भी जिस देश के आदर्श मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम हों, उस देश को किसी छदम राजनीतिज्ञ या मझे हुए विस्वासघाती राजनीतिज्ञ को- वो भी उसे जो कभी खुलकर भारतीय संस्कृति का सम्मान न कर पाया हो- ऐसा स्थान देने की आवश्यकता ही क्या है ?
अगर आपको ये बात समझ नहीं आ रही है तो आप जरा ईराक के बारे में सोचिए । सद्दाम हुसैन बेशक मुसलमान था पर जिहादी नहीं था। वेशक तानाशाह था पर हमारे नेताओं की तरह देशद्रोही नहीं था । उसने अपने देश के साथ कभी गद्दारी नहीं की । उसने जो भी किया देशहित में किया । मतलब वो पक्का देशभक्त मुसलमान था । उसने कभी विदेशी अंग्रेज ईसाईयों की गुलामी स्वीकार नहीं की । दूसरी तरफ ईराक के कुछ सद्दाम विरोधी गद्दारों ने ईसाईयों के साथ मिलकर उसके विरूद्ध देश हित के विपरीत काम किया । परिणाम ईराक में देशभक्त सद्दाम को फाँसी चढ़ाकर अंग्रेजों ने सत्ता इन गद्दारों को सौंप दी । यही सब कुछ अफगानिस्तान में किया गया वहां के देशभक्त शासक को हटाने के लिए तालिबान को पाला गया फिर तालिबान को हटाकर वहां पर अंग्रेज ईसाईयों ने ईसाईयों के बफादार व्यक्ति को शासक बना दिया ।
यही सबकुछ भारत में घटा था यहां भी सत्ता नेताजी सुभाषचन्द्र वोस, पटेल जी या वीर साबरकर जैसे किसी देशभक्त को न सौंपकर अंग्रेज ईसाईयों के प्रति बफादार हिन्दुविरोधी को सौंपी गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि मैकाले द्वारा बनाई गई हिन्दुविरोधी ईसाई समर्थक शिक्षा नीति व कानून आज भी चालू है । आज भी भारत का नाम भारतीयों द्वारा दिया गया भारत नहीं, बल्कि अंग्रेज ईसाईयों द्वरा दिया गया गुलामी का प्रतीक इंडिया प्रचलित है ।
आज भी भारत में किसी ईसाई या मुस्लिम के मरने पर तो जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह मातम मनाता है पर हिन्दू के शहीद होने पर इस गिरोह द्वारा खुशियां मनाइ जाती हैं । ईसाई पोप के मरने पर राष्ट्रीय शोक घोषित किया जाता है। साधु सन्तों को यातनांयें दी जाती हैं, अपमानित किया जाता है। देश में हजारों हिन्दुओं का खून बहाने वाले जिहादियों को बचाने के लिए कठोर कानून का विरोध किया जाता है और जिहादियों के हमलों से बचाने के लिए हिन्दुओं को जागरूक कर संगठित करने वाली देशभक्त बीरांगना साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, उसके देशभक्त सहयोगियों व सेना के अधिकारीयों को जेल में डाला जाता है । आतंकवादी कहकर अपमानित करने का प्रयास किया जाता है । जबकि आँध्रप्रदेश में हिन्दुबहुल क्षेत्रों में बम्बविस्फोट के आरोपियों को जेल से छोड़कर ईसाई कांग्रेसी मुख्यमन्त्री द्वारा तोहफे में आटोरिक्सा दिए जाते हैं !
§ हमें बड़ी हैरानी होती है जब हम किसी को 15 अगस्त 1947 को भारत का स्वतन्त्रता दिवस कहते हुए सुनते हैं । क्योंकि सच्चाई यह है कि इस दिन भारत को तीन टुकड़ों मे बांटा गया था, दो मुसलमानों के लिए (वर्तमान पाकिस्तान व बांगलादेश), एक हिन्दुओं के लिए (वर्तमान भारत) । पाकिस्तान व बांगलादेश में जो हिन्दू रह गए थे वो आज गिने-चुने रह गए हैं बाकी या तो इस्लाम अपनाने पर बाध्य कर दिय गए,भगा दिए गये या जिहादियों द्वारा जन्नत पाने के लिए हलाल कर दिए गये व किए जा रहे हैं लेकिन भारत में जो मुसलमान रह गए थे वो आज 300% से भी अधिक हो गए हैं और मुस्लिम जिहादी आतंकवादियों को शरण, सहायता व सहयोग देकर हिन्दुओं का कत्ल करवा रहे हैं।
§ क्योंकि पाकिस्तान व बांगलादेश की तरह भारत में भी शासन हिन्दुविरोधी जिहाद समर्थकों ने किया और हिन्दुविरोधी कानून बनाकर हिन्दुओं को अपूर्णीय क्षति पहुँचाई ।आज भारत में ही जिहादी आतंकवाद जारी है देश के विभिन्न हिस्सों में जिहादियों द्वारा हिन्दुबहुल क्षेत्रों,मन्दिरों ,सेना ब पुलिस की गाड़ियों व कैंपों में बम्बविस्फोट कर हजारों हिन्दू मारे जा चुके हैं। इन मुस्लिम जिहादियों द्वारा इतने निर्दोश हिन्दुओं का कत्ल कर देने के बावजूद जिहाद समर्थक सैकुलर हिन्दुविरोधी देशद्रोही गिरोह का जिहादियों को समर्थन आज भी जारी है ।
हिन्दुविरोध-- कांग्रेस की पुरानी आदत
कांग्रेस में ऐसे देशभक्त हिन्दू कार्यकर्ताओं की बहुत बढ़ी संख्या है, जो असंगठित हैं व एक दूसरे में विश्वाश की कमी की वजह से, इन देशद्रोहियों की जुंडली के देशविरोधी-हिन्दुविरोधी षड़यन्त्रों का मुंहतोड़ जबाब देने में अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं इसलिए खामोश हैं।
उन्हें अपनी चुपी तोड़ते हुए एक दूसरे पर विश्वास करते हुए संगठित होकर इस देशद्रोहियों की जुंडली को बेनकाब कर अपदस्थ करना होगा और देशभक्त लोगों को कांग्रेस के शीर्ष पदों पर बिठाकर कांग्रेस के देशविरोधी-हिन्दुविरोधी जिहादी आतंकवाद व धर्मांतरण समर्थक कदमों को रोककर देशभक्ति की राह पर चलाना होगा ।
नहीं तो हिन्दुस्थान की जनता ये मानने पर मजबूर हो जाएगी कि हरेक कांग्रेसी देशविरोधी-हिन्दुविरोधी जिहादी आतंकवाद व धर्मांतरण समर्थक है और देश मे आए दिन बम्ब विस्फोटों में मारे जाने वाले निर्दोष हिन्दुओं, सैनिकों, अर्धसैनिक बलों व पुलिस के जवानों के कत्ल के लिए जिम्मेवार है।
परिणाम स्वरूप ये सब मिलकर कांग्रेसियों के खून के प्यासे हो सकते हैं क्योंकि अब कांग्रेस के पाप का घड़ा भर चुका है । भगवान राम-जो करोड़ों हिन्दूस्थानियों के आस्था विश्वाश और श्रद्धा के केन्द्र हैं-के अस्तित्व को नकारना व सनातन में विश्वाश करने वाले शांतिप्रिय हिन्दुओं व सैनिकों को आतंकवादी कहकर जेलों में डालकर बदनाम करना-इस पाप के घड़े में समाने वाले अपराध नहीं हैं।
· वैसे भी कांग्रेस की स्थापना एक विदेशी अंग्रेज ए ओ हयूम(जो ब्यापार के बहाने भारत आकर धोखा देकर देश को गुलाम बनाने बाली ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकारी था) ने 1885 में विदेशियों के राज को भारत में लम्बे समय तक बनाए रखने के लिए अंग्रेजी शासकों के सहयोग से की थी । तब इसका मूल उदेश्य था क्रांतिकारियों की आवाज को जनसाधारण तक पहुंचने से रोकना और ये भ्रम फैलाना कि जनता का प्रतिनिधत्व कांग्रेस करती है न कि क्रांतिकारी।
· इसकी स्थापना का कारण बना 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम जिससे अंग्रेजों के अन्दर दहशत फैल गई ।
· आओ ! जरा नमन करें, शहीद मंगलपांडे, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ,शहीद तांत्य टोपे, शहीद नाना साहिब जैसे अनगिनत शहीदों को जो राष्ट्र की खातिर बलिदान हुए।
· कांग्रेस की स्थापना के बाद कुछ समय तक अंग्रेजी शासकों को किसी अंदोलन का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन धीरे- धीरे क्रांतिकारियों ने कांग्रेस को अपना मंच बना लिया । शहीद भगत सिंह , शहीद राजगुरू, शहीद सुखदेव, शहीद चन्दरशेखर आजाद, शहीद बाल गंगाधर तिलक , शहीद लाला लाजपतराय, शहीद विपन चन्द्र पाल जैसे असंख्य क्रांतिकारी कांग्रेस से जुड़े और देश के लिए बलिदान हुए ।
पर मोहन दास जी व नेहरू जी के नेतृत्व में कांग्रेस का एक ग्रुप क्रांतिकारियों को कभी गले न लगा पाया । वरना क्या वजह थी कि नेताजी सुभाषचन्द्र वोस (जिन्होने 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पट्टाभीसीतारमैइया जी को हराया जिनका समर्थन मोहन दास जी कर रहे थे) को कांग्रेस छोड कर आजाद हिन्द सेना बनानी पड़ी ।
· शहीद भक्तसिंह जैसे प्रखर राष्ट्रवादी देशभक्त के बचाव में यह ग्रुप खुलकर सामने नहीं आया उल्टा उनको गुमराह क्राँतिकारी कहकर उनके देश की खातिर किए गए बलिदान को अपमानित करने का दुःसाहस किया । यह ग्रुप या तो अपने आप को बचाने में लगा रहा या फिर मुस्लिमों के तुष्टीकरण में लगा रहा ।
मोहन दास जी व नेहरू जी ने मुस्लिमों को प्रसन्न करने के लिए उनकी हर उचित-अनुचित, छोटी-बड़ी मांग को यह सोच कर माना, कि इनके लिए त्याग करने पर इनके अन्दर भी राष्ट्र के लिए प्यार जागेगा और ये भी हिन्दुओं की तरह शान्ति से जीना सीख जायेंगे ।
परन्तु हुआ उल्टा मोहन दास जी व नेहरू जी ने मुस्लिमों को प्रसन्न करने का जितना ज्यादा प्रयत्न किया वे उतने ज्यादा अशान्त होते चले गये ।
परिणाम हुआ धर्म के नाम पर देश का विभाजन । मुसलमानों के लिए पाकिस्तान व हिन्दुओं के लिए वर्तमान भारत । सरदार बल्लभभाई पटेल व वीर साबरकर जी ने कई बार इनके गलत निर्णयों का विरोध किया लेकिन इन पर तो धर्मनिर्पेक्षता-बोले तो-मुस्लिम तुष्टिकरण का ऐसा भूत सबार था जिसने देश को तबाह कर दिया।
उधर देश का धर्म के आधार पर विभाजन स्वीकार कर लिया । अंग्रेजों को लिख कर दे दिया कि नेताजी सुभाष चन्द्रवोस जैसा घोर राष्ट्रवादी क्राँतिकारी जब भी हिन्दुस्थान आएगा तो उसे उन दुष्ट- डकैत साम्राज्यबादियों के हवाले कर दिया जाएगा, जिन्होंने 300 वर्ष तक इस देश का लहू पानी की तरह बहाया व देशछोड़ते वक्त अपने लिए काम करने वाले को कुर्सी पर बिठाया । इधर लोगों को यह कहकर बरगलाना शुरू कर दिया कि देश आजाद करवा दिया । आज तक लोगों को यह नहीं बताया कि अगर पाकिस्तान की ओर से हस्ताक्षर सैकुलर पुराने काँग्रेसी मुहम्मदअली जिन्ना ने किए थे तो भारत की ओर से सैकुलर काँग्रेसी ज्वाहरलाल नेहरू ने किए थे या किसी और ने ?
उधर मुसलमानों ने हिन्दुओं का कत्लेआम शुरू कर रखा था इधर मोहन दास जी व नेहरू जी हिन्दुओं को यह कहकर बरगलाने में लगे हुए थे कि वो हमारे भाई हैं जो हिन्दुओं का कत्लेआम कर रहे हैं , हिन्दुओं की माँ बहनों की इज्जत पर हमला कर रहे हैं इसलिए आप कायर और नपुंसक बनकर हमारी तरह तमाशा देखो, जिस तरह क्रांतिकारी देश के लिए शहीद होते रहे देश छोड़ते रहे और हम अपने अंग्रेज भाईयों से सबन्ध अच्छे बनाए रखने के लिए तमाशबीन बने रहे ब क्रांतिकारियों को भला बुरा कहते रहे।
1947 में धर्म के आधार पर विभाजन स्वीकार कर मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान बनवा देने के बाद भी इन दोनों ने हिन्दुओं के हितों की रक्षा करने के बजाए हिन्दुओं के नाक में दम करने के लिए उन अलगावबादियों के वंशजों को देश में रख लिया जो देश विभाजन की असली जड़ थे व अपने हिन्दुविरोधी-देशविरोधी होने का परिचय दिया।
आज हिन्दू जानना चाहता है कि अगर हिन्दू-मुस्लिम एक साथ रह सकते थे तो देश का विभाजन क्यों करबाया गया ? और नहीं रह सकते थे तो उन्हें देश में क्यों रखा गया ?
वे कितने दूरदर्शी थे इसका पता आज आए दिन देश के विभिन्न हिन्दुबहुल क्षेत्रों में होने वाले बम्बविस्फोटों व मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में होने वाले दंगों से पता चलता है। काश ! उन्होंने बकिंम चन्द्र चटर्जी जी द्वारा लिखित उपन्यास आनंदमठ पढ़ा होता(सैकुलर गिरोह में सामिल हिन्दुओं को ये उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए) तो शायद वो ये गलती न करते और भारत के सर्बमान्य नेता होते और आज हिन्दू इस तरह न मारे जाते।
हम इस बात को यहां स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम निजी तौर पर मोहन दास जी की आर्थिक सोच व उनकी सादगी के कट्टर समर्थक हैं जिसमें उन्होंने स्वदेशी की खुलकर बकालत की । पर क्या नेहरू जी को यह सोच पसन्द थी ? नहीं न । कुर्सी की दौड़ में ईसाईयत की शिक्षा प्राप्त नेहरू जी मांउटबैटन की यारी व कुर्सी की दौड़ में इनसानित और देशभक्ति छोड़कर वो सब कर बैठे जो देशद्रोही गद्दार मुस्लिम जिहादियों और सम्राज्यबादी ईसाईयों के हित में व हिन्दुस्थान और हिन्दुओं के विरोध में था ।
कई बार मन यह सोचने पर मजबूर होता है कि मोहन दास जी के नाम जितनी भी बदनामियां हैं उन सबके सूत्रधार नेहरू जी थे । जिन हालात में मोहन दास जी के शरीर को खत्म किया गया उसके सूत्रधार भी कहीं न कहीं नेहरू जी ही थे क्योंकि नेहरू जी प्रधानमन्त्री थे, गांधी जी सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी थी और उनके खत्म होने का सबसे ज्यादा फायदा नेहरू परिवार ने ही उठाया। जिसके मोहन दास जी कटर विरोधी थे क्योंकि उन्होंने तो देश विभाजन के बाद ही कांग्रेस को समाप्त करने का आग्रह किया था जिसके नेहरू जी विरूद्ध थे अब जरा सोचो मोहन दास जी को किसने खत्म करवाया ?
क्या आपको याद है कि जब 1948 में पाकिस्तानी सेना ने कबाइली जिहादियों के वेश में भारत पर हमला किया तब भी नेहरू जी की भूमिका भारत विरोधी ही रही। यह वही नेहरू जी हैं जो पटेल जी के लाख समझाने के बावजूद, इस हमले का मुकाबला कर मुस्लिम जिहादी आक्रांताओं को मार भगाने के बजाए संयुक्तराष्ट्र में ले गए ।
यह वही नेहरू जी हैं जिन्होंने संयुक्तराष्ट्र की बैठक में पटेल जी के रोकने के बाबजूद, पाकिस्तान द्वारा कब्जे में लिए गए जम्मू-कश्मीर के हिस्से को बार-बार आजाद कश्मीर कहा जिसका खामियाजा भारत आज तक भुक्त रहा है। अब आप ही बताइए कि आज जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों द्वारा मारे गये या मारे जा रहे निर्दोष हिन्दुओं व शहीद हो रहे सैनिकों के कत्ल के लिए कांग्रेस व नेहरू जी को जिम्मेवार क्यों न ठहराया जाए ?
यह वही नेहरू जी हैं जिन्होंने हिन्दुविरोधीयों को खुश करने के लिए कहा था ‘ मैं दुर्घटनावश हिन्दू हूँ ’।
आपको यह जान कर हैरानी होगी कि पचास के दशक में आयुद्ध कारखानों में नेहरू जी का जोर हथियारों की जगह सौंदर्य-प्रसाधन बनवाने पर ज्यादा था । जिसके विरूद्ध तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी ने नेहरू जी को पत्र लिखकर चेताया भी था । पर नेहरू जी तो कबूतर की तरह आँखें बन्द किए हुए कहते फिर रहे थे, हमारे ऊपर कोई हमला नहीं कर सकता । वे कितने दूरदर्शी थे इसका पता 1962 में ही लग गया,जब हथियारों की कमी के कारण हमारे बहादुर सैनिकों को शहीद होना पड़ा और भारत युद्ध हार गया। हमारी मातृभूमि के एक बड़े हिस्से पर चीन ने कब्जा कर लिया।आओ उन शहीदों को हर पल प्रणाम करने का प्रण करें । काश नेहरू जी को पता होता कि शान्ति बनाए रखने का एकमात्र उपाय है युद्ध के लिए तैयार रहना।
Ø कांग्रेस का इस्लांम में व्याप्त बुराई यों का समर्थन करना व उन्हें बढ़ाबा देने का इतिहास कोई नया नहीं है यह मामला शुरू होता है तुर्की में चलाए जा रहे खिलाफत आन्दोलन के समर्थन से । बाद में ये कांग्रेस जन्म देती है जिन्ना जैसे नेताओं को, जो आगे चलकर पाकिस्तान की माँग उठाते हैं, कांग्रेस मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनवाती है, इस दौरान जिहादी मुसलमान हिन्दुओं पर जगह-जगह हमला करते हैं, हिन्दू मारे जाते हैं परन्तु कांग्रेस यह सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास करती है कि कोई मुस्लिम जिहादी आतंकी न मारा जाए ।
Ø मानो इतने हिन्दुओं का खून पी लेने के बाद भी इस कांग्रेस नामक डायन की प्यास न बुझी हो इसलिए इस डायन ने यह सुनिश्चित किया कि भारत के हिन्दुओं वाले हिस्से को हिन्दूराष्ट्र न बनने दिया जाए ।
Ø इस कांग्रेस नामक डायन द्वरा यह भी सुनिश्चित किया गया कि भविष्य में हिन्दू सुखचैन से न जी सकें और कांग्रेस का वोट बैंक भी चलता रहे । अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने भारत का विभाजन करवाने वाली, देशद्रोही जिहादी औंरगजेब और बाबर की संतानों को, यहां रख लिया ताकि हिन्दूराष्ट्र भारत में हिन्दुओं का खून पानी की तरह बहाया जाता रहे ।
Ø अब आप ही फैसला करें कि भारत में मुस्लिम जिहादी आतंकवादियों द्वारा भारतीय संस्कृति के प्रतीक दर्जनों मन्दिरों पर किए जा रहे हमलों, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं को चुन चुन कर मार कर या हिन्दुबहुल क्षेत्रों में बम्बविस्फोट करके चलाए जा रहे हिन्दू मिटाओ अभियान के लिए कांग्रेस को जिम्मेवार क्यों न माना जाए ?
Ø अगर जिम्मेवार ठहराया जाए जो कि है तो क्यों न उसके विरूद्ध देशब्यापी गद्दार मिटाओ अभियान चलाकर उसी के बापू द्वारा 1947 में लिए गए कांग्रेस मिटाओ के निर्णय को आज 2009 से शुरू कर 2020 से पहले-पहले पूरा किया जाए ।
जिन दो नेताओं की क्राँतिविरोधी हिन्दुविरोधी मुस्लिमपरस्त षड्यन्त्रकारी सोच के चलते कई क्रांतिकारी शहीद होकर भी हिन्दूस्थानी जनता के अखण्ड भारत के स्वप्न को पूरा न कर सके । उन्हीं दो नेताओं में से कांग्रेसियों ने एक को अपना बापू व दूसरे को अपना चाचा बना लिया( उन दोनों की आत्मा से हम क्षमा मांगते हैं अगर उनकी कोई ऐसी मजबूरियां रहीं हों जो हम नहीं समझ पा रहे हैं । ये सबकुछ हम हरगिज न लिखते अगर मोहन दास जी की बात मान कर कांग्रेस को बिसर्जित कर दिया गया होता । तो न यह कांग्रेस इस तरह भगवान राम के अस्तित्व को नकारती, न देशद्रोह के मार्ग पर आगे बढ़ती। बेशक उनकी मजबूरियां रही हों पर आज की कांग्रेस की कोई मजबूरी नहीं है इसके काम स्पष्ट देशद्रोही और हिन्दुविरोधी हैं ये हम सब हिन्दू देख सकते हैं ) ।
फिर प्रचार के हर साधन व सरकारी तन्त्र का दुरूपयोग कर इन्हें सारे देश का बापू व चाचा प्रचारित करने का असफल प्रयत्न किया गया । यह देश को कांग्रेस की हिन्दुविरोधी-देशविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक सोच का गुलाम बनाने जैसा था ।
प्रश्न ये भी उठता है कि जिस देश की सभ्यता संस्कृति इस दुनिया की सबसे प्राचीनतम हो व जिस देश के साधारण राजा अशोक महान जी व विक्रमादित्य जी को हुए 2000 वर्ष से अधिक हो चुके हों क्या ऐसे देश का बापू या चाचा 79 वर्ष का हो सकता है ?
नहीं ,न । वैसे भी जिस देश के आदर्श मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम हों, उस देश को किसी छदम राजनीतिज्ञ या मझे हुए विस्वासघाती राजनीतिज्ञ को- वो भी उसे जो कभी खुलकर भारतीय संस्कृति का सम्मान न कर पाया हो- ऐसा स्थान देने की आवश्यकता ही क्या है ?
अगर आपको ये बात समझ नहीं आ रही है तो आप जरा ईराक के बारे में सोचिए । सद्दाम हुसैन बेशक मुसलमान था पर जिहादी नहीं था। वेशक तानाशाह था पर हमारे नेताओं की तरह देशद्रोही नहीं था । उसने अपने देश के साथ कभी गद्दारी नहीं की । उसने जो भी किया देशहित में किया । मतलब वो पक्का देशभक्त मुसलमान था । उसने कभी विदेशी अंग्रेज ईसाईयों की गुलामी स्वीकार नहीं की । दूसरी तरफ ईराक के कुछ सद्दाम विरोधी गद्दारों ने ईसाईयों के साथ मिलकर उसके विरूद्ध देश हित के विपरीत काम किया । परिणाम ईराक में देशभक्त सद्दाम को फाँसी चढ़ाकर अंग्रेजों ने सत्ता इन गद्दारों को सौंप दी । यही सब कुछ अफगानिस्तान में किया गया वहां के देशभक्त शासक को हटाने के लिए तालिबान को पाला गया फिर तालिबान को हटाकर वहां पर अंग्रेज ईसाईयों ने ईसाईयों के बफादार व्यक्ति को शासक बना दिया ।
यही सबकुछ भारत में घटा था यहां भी सत्ता नेताजी सुभाषचन्द्र वोस, पटेल जी या वीर साबरकर जैसे किसी देशभक्त को न सौंपकर अंग्रेज ईसाईयों के प्रति बफादार हिन्दुविरोधी को सौंपी गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि मैकाले द्वारा बनाई गई हिन्दुविरोधी ईसाई समर्थक शिक्षा नीति व कानून आज भी चालू है । आज भी भारत का नाम भारतीयों द्वारा दिया गया भारत नहीं, बल्कि अंग्रेज ईसाईयों द्वरा दिया गया गुलामी का प्रतीक इंडिया प्रचलित है ।
आज भी भारत में किसी ईसाई या मुस्लिम के मरने पर तो जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह मातम मनाता है पर हिन्दू के शहीद होने पर इस गिरोह द्वारा खुशियां मनाइ जाती हैं । ईसाई पोप के मरने पर राष्ट्रीय शोक घोषित किया जाता है। साधु सन्तों को यातनांयें दी जाती हैं, अपमानित किया जाता है। देश में हजारों हिन्दुओं का खून बहाने वाले जिहादियों को बचाने के लिए कठोर कानून का विरोध किया जाता है और जिहादियों के हमलों से बचाने के लिए हिन्दुओं को जागरूक कर संगठित करने वाली देशभक्त बीरांगना साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, उसके देशभक्त सहयोगियों व सेना के अधिकारीयों को जेल में डाला जाता है । आतंकवादी कहकर अपमानित करने का प्रयास किया जाता है । जबकि आँध्रप्रदेश में हिन्दुबहुल क्षेत्रों में बम्बविस्फोट के आरोपियों को जेल से छोड़कर ईसाई कांग्रेसी मुख्यमन्त्री द्वारा तोहफे में आटोरिक्सा दिए जाते हैं !
§ हमें बड़ी हैरानी होती है जब हम किसी को 15 अगस्त 1947 को भारत का स्वतन्त्रता दिवस कहते हुए सुनते हैं । क्योंकि सच्चाई यह है कि इस दिन भारत को तीन टुकड़ों मे बांटा गया था, दो मुसलमानों के लिए (वर्तमान पाकिस्तान व बांगलादेश), एक हिन्दुओं के लिए (वर्तमान भारत) । पाकिस्तान व बांगलादेश में जो हिन्दू रह गए थे वो आज गिने-चुने रह गए हैं बाकी या तो इस्लाम अपनाने पर बाध्य कर दिय गए,भगा दिए गये या जिहादियों द्वारा जन्नत पाने के लिए हलाल कर दिए गये व किए जा रहे हैं लेकिन भारत में जो मुसलमान रह गए थे वो आज 300% से भी अधिक हो गए हैं और मुस्लिम जिहादी आतंकवादियों को शरण, सहायता व सहयोग देकर हिन्दुओं का कत्ल करवा रहे हैं।
§ क्योंकि पाकिस्तान व बांगलादेश की तरह भारत में भी शासन हिन्दुविरोधी जिहाद समर्थकों ने किया और हिन्दुविरोधी कानून बनाकर हिन्दुओं को अपूर्णीय क्षति पहुँचाई ।आज भारत में ही जिहादी आतंकवाद जारी है देश के विभिन्न हिस्सों में जिहादियों द्वारा हिन्दुबहुल क्षेत्रों,मन्दिरों ,सेना ब पुलिस की गाड़ियों व कैंपों में बम्बविस्फोट कर हजारों हिन्दू मारे जा चुके हैं। इन मुस्लिम जिहादियों द्वारा इतने निर्दोश हिन्दुओं का कत्ल कर देने के बावजूद जिहाद समर्थक सैकुलर हिन्दुविरोधी देशद्रोही गिरोह का जिहादियों को समर्थन आज भी जारी है ।
Wednesday, 15 April 2009
ये तो देश का सौभाग्य है कि अडबानी जी हिन्दुत्वनिष्ठ देशभक्त संगठन के गुलाम हैं मनमोनहन सिंह की तरह किसी तेरे जैसी हिन्दुविरोधी-भारतविरोधी के नहीं
एंटोनियो के हिन्दुविरोधी षडयन्त्र
क्या आपने कभी फुर्सत के क्षणों में इस सरकार द्वारा भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ भगवान राम के अस्तित्व पर किए जा रहे हमले के पीछे छुपे संदेश व कारण को समझने का प्रयास किया नहीं न आओ मेरो साथ मिलकर सोचो ।
जिस दिन एंटोनियो माइनो मारीयो को भारत में विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दी गई उसी दिन से भारतीय संस्कृति बोले तो हिन्दू संस्कृति को समाप्त करने के प्रयत्नों को नई ताकत मिली असली हमला तो तब शुरू हुआ जब देशद्रोही हिन्दुविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह ने एंटोनियो माइनो मारीयो को अपना प्रमुख चुन लिया ।
जब देशभक्त भारतीयों ने इस विदेशी ईसाई मिशनरी का प्रधानमन्त्री बनने का विरोध किया तो तर्क दिया गया कि, इसकी शादी एक हिन्दू से हुई है इसलिए एंटोनियो माइनो मारीयो हिन्दू हो गई ,जो कि सरासर झूठ है । लोगों को उसी तरह गुमराह करने का षड्यन्त्र है जिस तरह लोगों को इसका असली नाम एंटोनियो माइनो मारीयो न बताकर एक हिन्दू नाम बताकर व अंग्रेजी परिधान(जो हिलेरी कलिंटन व एंटोनियो की माता जी पहनती हैं) की जगह हिन्दू परिधान बोले तो भारतीय परिधान पहनाकर सच को छुपाकर हिन्दू के रूप में दिखाकर किया गया । आज भी ये प्रयत्न यथावत जारी है ।
अगर ये हिन्दू हो गई होती तो क्या ये अपनी बेटी की शादी एक हिन्दु से नहीं करती (हालांकि शादी/पूजा करनी न करनी किससे/कैसे करनी निजी मामला है पर जोर-शोर से फैलाए जा रहे झूठ को बेनकाब कर देश को इस गुलामीं के दौर से बाहर निकालना जरूरी है) हिन्दू धर्म अपनाने की एक शुद्धी प्रक्रिया है वो भी उन हिन्दुओं की घरवापसी के लिए है जो जिहादियों व धर्मांतरण के दलालों के चंगुल में फंस कर या उनके अत्याचारों से तंग आकर अपनी पूजा-पद्धति बदल लिए ।एंटोनियो इस पद्धति के योग्य है ही नहीं। फिर भी क्या एंटोनियो उस शुद्धी प्रक्रिया से गुजरी ? नहीं न । फिर ये झूठ किस लिए ?
अगर इस झूठ को मान भी लिया जाए तो भी एक विदेशी को देश को गुलाम बनाने का अधिकार नहीं दिया जा सकता चाहे वो परावर्तित हिन्दू ही क्यों न हो । हम देशभक्त ईसाईयों से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि वे एंटोनियो और देश में सक्रिय अन्य ईसाई मिशनरियों से अपने आप को अलग कर लें वरना इन विदेशियों द्वारा किए जा रहे हिन्दू विरोधी देश विरोधी कार्यों की कीमत कहीं उनको न चुकानी पड़ जाए ?
§ क्योंकि सच्चाई यह है कि एंटोनियो माइनो मारीयो एक अंग्रेज ईसाई है और हिन्दुओं व हिन्दूसंस्कृति बोले तो भारतीय संस्कृति को तबाह बर्बाद करने के हरेक प्रयत्न का प्रेरणा स्रोत व ताकत है बोलने से क्या फर्क पड़ता है आओ जरा कर्म देखें सबसे पहला कदम कांग्रेस के पहले शूद्र अध्यक्ष सीता राम जी केसरी को अपमानित कर हटाना व खुद को उस कुर्सी पर बिठाना। कांग्रेस के महत्वपूर्ण पदों से चुन चुन कर ताकतवर हिन्दू नेताओं को हटाना व हर जगह ईसाईयों को आगे बढ़ाना ।
§ एंटोनियो माइनो मारियो के इस कुर्सी पर पहुंचने व पकड़ मजबूत करने की प्रक्रिया में देश को स्वर्गीय संजय गाँधी, स्वर्गीय राजीव गाँधी, स्वर्गीय माधव राव सिन्धिया व स्वर्गीय राजेश पायलट जैसे हिन्दुओं को खोना पड़ा और संयोग देखिए इन सब का आकस्मिक स्वर्गबास हुआ । इसे भी संयोग ही कहेंगे कि इन में से अगर एक भी जिन्दा होता तो आज भारत सरकार इस विदेशी अंग्रेज की गुलाम न होती ।
§ क्या यह भी संयोग ही है कि भारतीय जनता को यह तक न बताया गया कि यह अंग्रेज कौन है ? इसके माता-पिता क्या करते थे ,या करते हैं ?
§ क्या ये भी संयोग ही है कि जिस क्वात्रोची का पैसा छुड़वाने के लिए इस अंग्रेज की गुलाम सरकार के कानूनमन्त्री को रातों-रात लंदन जाना पड़ता है ? उसी क्वात्रोची के बारे में यह समाचार आता है कि स्वर्गीय राजीव गाँधी जी के कत्ल से पहले इस क्वात्रोची की मुलाकात एल.टी.टी.ई प्रमुख प्रभाकरण के दूत वालासिंधम से फ्रांस के एक होटल में हुई थी।
क्या यह भी एक संयोग ही है कि जिस बैबसाइट हिन्दूयुनिटी डाट काम पर इस समाचार व ऐसे षडयन्त्रों की सच्चाई को जन जन तक पहुँचाने का प्रयत्न किया जाता है उसे यह गुलाम सरकार बलाकॅ कर देती है !
§ क्या ये भी एक संयोग ही है कि 1997 में जिस डी.एम.के को राजीव जी के कत्ल के लिए जिम्मेवार ठहराकर कांग्रेस ने सरकार गिराई उसी डी.एम.के के साथ मिलकर एंटोनियां ने 2004 में प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की।
§ क्या ये भी संयोग ही है कि पिछले लगभग पांच वर्षों से एंटोनिया की गुलाम सरकार सता में होने के बाबजूद राजीव जी के कत्ल की तह तक पहुंचने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया उल्टा कातिलों के प्रति सहानुभूति दिखाकर जांच को बाधित करने के प्रयत्न किए गए ।
§ ये कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जिन लोगों को राजीव जी के कातिलों को बेनकाव करने की जी तोड़ कोशिश करनी चाहिए थी उन लोगों ने ही अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए षडयन्त्र की तह तक पहुंचने के सारे रास्ते बन्द कर दिए।
क्या इसे भी एक संयोग ही मानें कि जब से यह अंग्रेज नेत्री विपक्ष बनीं फिर नेत्री सरकार तब से कभी हिन्दूराष्ट्र भारत को ईसाई बना देने की पोप द्वारा घोषणा,कभी टेरेसा तो कभी केरला की किसी और महिला को अलंकृत कर चर्च द्वारा ईसाईयत का प्रचार-प्रसार, पोप की मृत्यु पर धर्म निर्पेक्ष सरकार द्वारा तीन दिन का शोक और मानो यह सब ईसाईयत के प्रचार-प्रसार के लिए काफी न हो तो साधु सन्तों का ईसाईयों द्वारा कत्ल और इस से भी काम न चले तो फिर साधु-सन्तों-सैनिकों को झूठे आरोप लगाकर बदनाम करना और फिर हिन्दू आतंकवादी कहकर जेलों मे डालना और अमानवीय यातनांयें देकर प्रताड़ित करना । जले पर नमक छिड़कने के लिए मर्यादापुर्षोत्तम भगवान राम के अस्तित्व को नकारना ।
अब आप इन सब घटनाओं-दुर्घटनाओं को संयोग कहते हो तो कहो पर हिन्दू जनता इसे संयोग नहीं षड्यन्त्र मानती है। भविष्य में बनने वाली किसी भी राष्ट्रवादी सरकार से मांग करती है कि सत्ता में आते ही सबसे पहले इस अंग्रेज एंटोनियो माइनो मारियो को गिरफ्तार कर इसका नार्को टैस्ट करवाकर इस हिन्दुविरोधी-देशविरोधी षड्यन्त्र की तह तक पहुँचा जाए और दोषियों को फांसी पर लटकाया जाए ।
पता लगाया जाए कि हिन्दुओं को बदनाम कर हिन्दुस्थान को तवाह करने के षड्यन्त्रों को आगे बढ़ाने के लिए कहीं ईसाई देशों की खुफिया एजैंसियों की मदद तो नहीं ली जा रही और अगर राष्ट्रवादी सरकार नहीं बन पाती है तो सेना को शासन अपने हाथ में लेकर इस षड्यन्त्र का पर्दाफास कर देश को बर्बादी से बचाना चाहिए।
§ आज अगर आप कांग्रेस के कोर ग्रुप पर या सरकार के मालदार पदों पर नजर दौड़ाएं तो आपको दूर-दूर तक कांग्रेस के कोटे का कोई ताकतवर हिन्दू नेता नजर नहीं आएगा। सब जगह या तो ईसाई नजर आंएगे या फिर वे कमजोर हिन्दू जिनका अपना कोई जनाधार न होने के कारण उनके पास अपना स्वाभिमान व देशहित बेचकर एंटोनिया की गुलामी करने के सिबाय कोई और रास्ता नहीं है ।
· आप सबको याद होगा श्रीमति प्रतिभा पाटिल जी राष्ट्रपति कैसे चुनी गईं लेकिन एंटोनियो को उन पर भी भरोसा नहीं इसलिए उनका निजी सचिव भी ईसाई बनवाया। समझने वालों को संदेश बिल्कुल साफ है कि या तो ईसाई बनो या गुलाम नहीं तो कांग्रेस के कोर ग्रुप या सरकार के मालदार पदों को भूल जाओ ।
· जो ताकतवर हिन्दूनेता हैं उनको कमजोर करने के लिए एंटोनियो माइनो मारीयो किसी भी हद तक जा सकती है इसका प्रमाण देखना हो तो आपको हिमाचल कांग्रेस में ताकतवर हिन्दूनेता राजा वीरभद्र सिंह जी की जगह ईसाई विद्या सटोक्स को विपक्ष का नेता बनाने के घटनाक्रम को ध्यान से समझना होगा ।
ü यह घटनाक्रम सामने आना शुरू होता है अगस्त 2006 में एंटोनियो माइनो मारीयो के हिमाचल दौरे से। यह वह वक्त था जब धर्मांतरण के ठेकेदार ईसाईयों व देशभक्त हिन्दुओं के बीच धर्मांतरण के मुद्दे पर संघर्ष अपने चरम पर था। एक तरफ ईसाई केन्द्र में अंग्रेज एंटोनियो की गुलाम सरकार होने से उत्साहित होकर चलाए जा रहे जबरदस्त धर्मांतरण अभियान को हिन्दुओं व उनके संगठनों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। दूसरी तरफ राज्य में कांग्रेस सरकार होने पर धर्मांतरण के लिए जो अनुकूलता, सहयोग व सुविधायें देश के अन्य राज्यों में मिल रही थीं वे हिमाचल में नहीं मिल पा रही थीं क्योंकि राजा वीरभद्र सिंह जी छल कपट व आर्थिक अनियमितता से करवाए जा रहे धर्मांतरण के विरूद्ध थे । ऊपर से हिन्दुओं के वापिस अपने हिन्दू धर्म में लौटने के घर वापसी अभियान की सफलता से धर्मांतरण के दलाल देशी विदेशी ईसाई मिशनरी छटपटाए हुए थे।
दिल्ली में बैठे धर्मांतरण के ठेकेदार ईसाईयों ने जब एंटोनिया को यह सबकुछ बताया तो एंटोनिया के क्रोध का ठिकाना न रहा और एकदम घूमने के बहाने शिमला आई और यहां पर हिमाचल में सक्रिय धर्मांतरण के ठेकेदार ईसाईयों ने धर्मांतरण के काम में हिन्दूसंगठनों द्वारा पैदा की जा रही रूकाबटों व राजा वीरभद्र सिंह द्वारा अपनाए जा रहे न्यायसंगत रूख के बारे में बताया । बस फिर क्या था एंटोनिया ने आव देखा न ताव झट से राजा वीरभद्र सिंह जी को शीघ्रतिशीघ्र कठोर कार्यवाही कर धर्मांतरण के काम में आ रही रुकाबटों को दूर करने का आदेश दिया । राजा वीरभद्र सिंह जी ने भी ब्यान दे दिया कि हिन्दूसंगठनों से जुड़े कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया जाएगा। लेकिन मन से तो राजा वीरभद्र सिंह जी धर्मांतरण के ठेकेदारों द्वारा धर्मांतरण के लिए अपनाए जा रहे असंवैधानिक अमानवीय तरीकों के विरूद्ध थे व हिन्दुओं व उनके संगठनों द्वारा चलाए जा रहे आन्दोलन की भी जानकारी उन्हें जरूर रही होगी जिसका बिराट रूप ठीक दो महीने बाद प्रदेशभर में आयोजित हिन्दूसम्मेलनों के रूप में देखने को मिला ।
ü राजा वीरभद्र सिंह जी के हिन्दुत्वनिष्ठ होने व बिराट हिन्दूसम्मेलनों का असर हिमाचल सरकार द्वारा लाए गए धर्म-स्वतन्त्रता विधेयक(इस कानून का महत्व समझने के लिए आपको ये ध्यान में रखना होगा कि किस तरह उतर पूर्व में इस सैकुलर गिरोह द्वारा प्रयोजित धर्मांतरण से वहां कई राज्यों की हिन्दू आवादी लगभग 100% तक ईसाई बना दी गई) के निर्बिरोध पास होने के रूप में दिखा । जिसकी सब देशभक्त व्यक्तियों ,संगठनों, राजनैतिक दलों, समाचारपत्रों,टी वी चैनलों ने दिलखोलकर प्रशंसा की व इसे देशभक्ति से ओतप्रोत सराहनीय ऐतिहासिक कदम बताया ।
लेकिन देशद्रोही हिन्दुविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह को यह बात नागवार गुजरी और इस गिरोह ने धार्मिक स्वतन्त्रता के नाम पर धर्म स्वतन्त्रता विधेयक का विरोध किया व देश विदेश में हिन्दुविरोधी-देशविरोधी अभियान चलाकर ईसाई देशों से दबाव डलवाकर और पत्र लिखबाकर मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह जी पर धर्म-स्वतन्त्रता विधेयक को वापिस लेने का दबाव बनवाया लेकिन राजा वीरभद्र सिंह जी ने हिन्दूहित-देशहित में लिए गए निर्णय से पीछे हटने से मना कर दिया ।
ü इनका यह निर्णय और भी महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्येंकि वह उस राजनीतिक दल से सबन्धित हैं जो देशद्रोही-हिन्दुविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह का प्रमुख सदस्य है और जिसकी अध्यक्षा धर्मांतरण समर्थक अंग्रेज एंटोनियो माइनो मारीयो है । राजा वीरभद्र सिंह जी को इस राष्ट्रवादी हिन्दुत्वनिष्ठ काम की कीमत चुकानी पड़ी। एक उनकी इच्छा के विरूद्ध समय से पहले चुनाव करवा दिए जिसका विद्या स्टोक्स ने समर्थन किया, दूसरा उनकी योजना के अनुसार टिकटों का बितरण नहीं किया गया । कुल मिलाकर केन्द्रीय नेतृत्व के गलत निर्णयों की वजह से उन्हें चुनाव में हरबा दिया गया मानों इतने षड्यन्त्र काफी न हों तो एक कदम आगे बढ़कर एंटोनियो माइनो मारीयो ने अपनी योजनानुसार ईसाई विद्यास्टोक्स को नेता विपक्ष बनाकर हिमाचल में ईसाई शासन की नींब रख दी पर हमें पूरा भरोसा है कि हिमाचल की हिन्दुत्वनिष्ठ जनता एंटोनियो के इस षड़यन्त्र को कभी पूरा नहीं होने देगी । हिमाचल का हर प्रबुध नागरिक जानता है कि हिमाचल में वर्तमान में आज कांग्रेस जो भी है राजा वीरभद्र सिंह जी की वजह से है वरना एंटोनिया की हिन्दुविरोधी नीतियों की वजह से आज तक हिमाचल कांग्रेस की स्थिति गुजरात कांग्रेस जैसी हो चुकी होती ।
ü यह सब तब है जब हिमाचल में हिन्दू 98% से अधिक हैं । राजा वीरभद्र सिंह जी एंटोनियो के ईसाई जुनून का अकेले शिकार नहीं हैं । सत्यव्रत चतुर्वेदी(आपको याद होगा किस तरह मुस्लिम जिहादियों के ठेकेदार अमर सिंह द्वारा शहीद मोहन चन्द शर्मा जी का अपमान करने पर कांग्रेस ने खामोशी धारण कर ली लेकिन देशभक्त सत्यब्रत जी ने इस देशद्रोही हरकत पर अमर सिंह को पागल करार दिया) जैसे अनेक राष्ट्रभक्त कांग्रेसी आज वनवास काट रहे हैं । उन्हें सिर्फ एंटोनिया की गुलाम सरकार के हिन्दुविरोधी कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए आगे लाया जाता है । मेरा सभी देशभक्त हिन्दूकांग्रेसियों से अपनी चुप्पी तोड़ कर कांग्रेस को इस हिन्दुविरोधी देशविरोधी सोच से बाहर निकालने के लिए संघर्ष करने की विनम्र प्रार्थना है !
जागो ! हिन्दू जागो !
छतीसगढ और आंध्रप्रदेश में हिन्दुओं की संख्या 90% से अधिक होने के बावजूद एंटोनिया ने ईसाई मुख्यमन्त्री बनवाए ।
आंध्रप्रदेश में यह ईसाई मुख्यमन्त्री मुसलमानों को संविधान के विरूद्ध जाकर आरक्षण देता है । जब माननीय न्यायालय इस ईसाई को देशविरोधी-सांप्रदायिक निर्णय न करने का आदेश देता है तो यह ईसाई अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति को आगे बढ़ाते हुए संविधान के विरूद्ध जाना ही उचित समझता है,फिर ईसाईयों और मुसलमानों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करता है मानो 90% हिन्दुओं को हर अधिकार से वंचित करना ही इसकी आका विदेशी अंग्रेज एंटोनिया का एकमात्र लक्ष्य हो । मानो हिन्दुओं के खून पसीने की कमाई को यह ईसाई अपने बाप की कमाई समझता हो इसलिए येरूशलम यात्रा के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 80000 रू देने की घोषणा भी करता है । किसी ने क्या खूब कहा है- “ अंधा बांटे रेबड़ियां अपनो को मुड़-मुड़ दे ”। फिर हैदराबाद बम्ब धमाकों के आरोपियों को छोड़ कर आटो देने की घोषणा करता है मानो कह रहा हो- हिन्दुओं को इसी तरह मारते रहो ! देखा न क्या होती है हिन्दुविरोधी-देशविरोधी मानसिकता !
इसी तरह केन्द्रसरकार में अच्छा काम कर रहे हिन्दू श्री प्रणवमुखर्जी को रक्षामन्त्री के पद से हटाबाकर ईसाई एन्टनी को रक्षामन्त्री बनवाया । इस फेरबदल का सबसे बढ़ा कारण एंटोनिया का हिन्दुओं पर अविश्वास व अपने ईसाई संप्रदाय को आगे बढ़ाकर हिन्दुओं को महत्वपूर्ण पदों से दूर करना है । क्योंकि निकट भविष्य में खरबों रूपये के रक्षा सौदे होने वाले थे और उनसे मिलने वाले कमीशन की राशी अरबों रूपये तक जा सकती थी और इतनी बड़ी राशी अगर अकेले श्री प्रणवमुखर्जी जी के पास रह जाती तो वे बहुत ताकतवर हो जाते और अगर आपस में बांट ली जाती तो श्री नटबर सिंह जी की तरह कभी भी पोल खोल देते(आपको याद होगा कि किस तरह तेल के बदले अनाज कार्यक्रम में दलाली का मामला सामने आने पर जब नटवर जी को बलि का बकरा बनाने की कोशिश सरकार द्वारा की गई तो उन्होंने सपष्ट कर दिया था कि ये सब एंटोनियो ने करवाया था । जरा सोचो जो एंटोनियो ईराक में भूखे मर रहे मुसलमानों के लिए जा रहे भोजन में भी दलाली ढूंढती है वो और क्या छोड़ेगी, नार्को करवाकर स्विस बैंक के खातों का पता लगाओ सब पर्दाफाश अपने आप हो जायेगा) । ऊपर से हिन्दू होने के नाते विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता अपने संप्रदाय का थोड़े ही है । इसलिए हिन्दू प्रणबमुखर्जी को हटाकर अपने संप्रदाय के एंटनी जी को रक्षामन्त्री बनवाया ताकि सब काम आसानी से अंजाम दिये जा सकें । अगर ऐसा नहीं था तो फिर देश को बताया जाना चाहिए कि और क्या कारण था ?
रक्षा सौदों से क्वात्रोची के बारे में याद आया- कौन क्वात्रोची अरे वही क्वात्रोची जिसके बारे में कुछ समाचारपत्रों व इंटरनैट पर यह छपा था कि स्वर्गीय राजीव गांधी जी की हत्या से पहले फ्रांस के एक होटल में क्वात्रोची की बैठक एल टी टी ई प्रमुख प्रभाकरण के दूत वालासिंघम के साथ हुई थी, वही क्वात्रोची जिसके लंदन बैंक के खाते में पिछली सरकार द्वारा जब्त करवाए गए वोफोर्स दलाली काँड के पैसे को छुड़बाने के लिए वर्तमान सरकार में कानूनमन्त्री श्री हँसराज जी भारद्वाज विशेष रूप से लंदन गये ।
सोचने वाला विषय यह है कि बोफोर्स दलाली काँड के पैसे से न तो श्री मनमोहन जी का सबन्ध है न श्री हँसराज जी भारद्वाज का । फिर उनको ये सब करने की क्या जरूरत थी ? हमारे विचार में ये पैसे छुड़बाना इनकी जरूरत नहीं मजबूरी थी क्योंकि ये लोग जिस सरकार में मन्त्री हैं वह सरकार एंटोनियो माइनो मारीयो की गुलाम है और क्वात्रोची, एंटोनियो के परिबारिक मित्र हैं व उनके ऊपर ही वोफोर्स दलाली काँड में कमीशन खाने का आरोप है । बेचारे राजीव गांधी जी ब्यर्थ में षड्यन्त्र का शिकार हुए । हमारा तो शुरू से ही यह मानना था कि राजीव जी जैसा व्यक्ति यह सब नहीं कर सकता । इस लंदन भागमभाग से बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि वोफोर्स दलाली काँड क्वात्रोची और एंटोनियो की साजिश थी क्योंकि अगर ऐसा न होता तो राजीव जी के कत्ल के षडयन्त्रकारी क्वात्रोची द्वारा दलाली में लिए गए पैसे को छुड़वाने की एंटोनियो को क्या जरूरत थी ?
जो देशबिरोधी-चापलूस एंटोनियो को त्याग की मूर्ति बताकर भोले-भाले हिन्दुओं को गुमराह करते हैं उन्हें एंटोनियो के इस रूप को भी नहीं भूलना चाहिए । कुछ लोग यह कुतर्क देते हैं कि एंटोनियो ने प्रधानमन्त्री पद को ठोकर मार दी , त्याग कर दिया हमें इनकी बेवकूफी पर गुस्सा नहीं तरस आता है कि जो एंटोनियो प्रधानमन्त्री बनने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति जी से झूठ बोलती हैं कि उसे 273 सांसदो का समर्थन प्राप्त है। वह झूठ सारे देश के सामने पकड़ा जाता है । वही एंटोनियो 2004 में प्रधानमन्त्री बनने के लिए फिर से मारी-मारी फिरती हैं वह भी उस स्थिति में जब कांग्रेस को बहुमत से लगभग आधी सीटें मिलती हैं । एंटोनियो राष्ट्रपति भवन जाती हैं खुद प्रधानमन्त्री बनने के लिए बुलाबा पत्र लेने के लिए लेकिन, देशभर में हो रहे विरोध व भारतीय संविधान की भाबना (एक्ट 1955 के अनुसार किसी देश के नागरिक को भारत में बसने पर उतने ही अधिकार मिलते हैं जितने किसी भारतीय को उस देश में बसने पर मिल सकते हैं) को ध्यान में रखते हुए जब बुलाबा पत्र नहीं मिलता है तो ह्रदय परिबर्तन हो गया, ठोकर मार दी, त्याग कर दिया, मातम मनाया गया, आँसु बहाए गए, पूरा फिल्मी ड्रामा रचा गया । भाबुक हिन्दुओं को मूर्ख बनाने के लिए वो भी लाइब सरकारी चैनल पर । ये भी न सोचा कि ये सरकारी चैनल भारतीयों की खून पसीने की उस कमाई से चलते हैं जो टैक्स के रूप में दी जाती है ,देश के विकास के लिए न कि किसी विदेशी को सत्ता न मिलने पर उसकी नौटंकी देखने के लिए । किसी ने क्या खूब कहा है- हाथ न लागे थू कौड़ी ।
जो लोग इस अंग्रेज एंटोनियो को प्रधानमन्त्री बनाने के लिए इतने कुतर्क दे रहे थे , काश उन्हें याद होता- शहीद भगत सिंह जैसे नौजवानों का इस देश से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए फांसी पर झूलना । काश उनको ज्ञान होता भारत के उस कानून का जिसके अनुसार सेना का कोई अधिकारी किसी विदेशी से शादी नहीं कर सकता । फिर इन अधिकारियों से देश की सुरक्षा से सबन्धित गुप्त जानकारी लेने वाला प्रधानमन्त्री विदेशी कैसे हो सकता है ?
काश उनको ज्ञान होता ईसाई बहुल देश फिजी की घटनाओं का । फिजी एक छोटा सा देश है इस देश में हिन्दुओं की बड़ी संख्या है और इन हिन्दुओं को यहां बसे हुए 20-25 नहीं सैंकड़ों वर्ष हो गए हैं। सोचो जरा वहां पर हिन्दू को अल्पसंख्यक होने के नाते क्या विशेषाधिकार प्राप्त हैं ? अरे ! क्या बात करते हो , विशेषाधिकार तो दूर मूलाधिकार तक प्राप्त नहीं हैं। भारत में इन अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए हिन्दू दोयम दर्जे के नागरिक बना दिये गए !
विश्वास नहीं होता तो ये जानो
कुछ वर्ष पहले यहां हुए चुनावों में फिजी की जनता ने एक हिन्दू श्री महेन्द्र चौधरी जी को प्रधानमन्त्री चुना। क्या वहां के ईसाईसों ने उन्हें प्रधानमन्त्री स्वीकार किया ? नहीं न , क्यों नहीं, जरा सोचो, हिन्दू जनसंख्या की कमी नहीं ,हिन्दू सैंकड़ों वर्षों से वहां बसे हुए हैं फिर भी विदेशी । यहां भारत में अभी कुछ वर्ष पहले आई एक विदेशी अंग्रेज (जो भारत-पाक युद्ध के दौरान भागकर अपने मूलदेश इटली के दूताबास में छिप गई । यह सोच कर कि कहीं अगर भारत की हार हो गई तो सुरक्षित इटली पहुँच जांऊ )को- हर तरह के झूठ बोलकर,नाम बदलकर,वेश बदलकर -भोले भाले शांतिप्रिय हिन्दुओं को फुसालाकर उसे भारतीय बताकर, उसके गुलाम बनने की होड़ ।
एक ईसाई जार्ज स्पीट उठा दर्जन भर स्टेनगनधारी युवक साथ लिए । चुने हुए प्रधानमन्त्री महेन्द्र चौधरी को बंधक बनाया जान से मारने की धमकी देकर त्यागपत्र लिखवाकर जान बख्सी । क्या वहां पुलिस नहीं थी ? सेना नहीं थी ?(भारतीय सेना को सोचना चाहिए) क्या वहां यू .एन. ओ. नहीं था ? सब कुछ था पर वहां क्योंकि ईसाई हिन्दुओं से ज्यादा हैं इसलिए ईसाई हित में सबकुछ जायज । हमारे भारत में कुछ वर्ष पहले आई एक अंग्रेज एंटोनियो, नाम बदल कर, वेश बदल कर ,सारी की सारी सरकार को गुलाम बनाकर बैठ गई । इसलिए यहां हिन्दूविरोध में सबकुछ जायज ।
जागो ! हिन्दू जागो !
हमें इस बात में कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस इटालिएन अंग्रेज के प्रभाव में आकर देशद्रोह-हिन्दूविरोध के रास्ते पर चल निकला है । परन्तु कांग्रेस में लम्बे समय से सक्रिय देशभक्त कार्य कर्ताओं की कमी नहीं, जो आज इन देशद्रोहियों की जुंडली की वजह से, योजनाबद्ध उपेक्षित किए जा रहे हैं व बड़ी जिम्मेबारियों से दूर रखे जा रहे हैं ।
क्या आपने कभी फुर्सत के क्षणों में इस सरकार द्वारा भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ भगवान राम के अस्तित्व पर किए जा रहे हमले के पीछे छुपे संदेश व कारण को समझने का प्रयास किया नहीं न आओ मेरो साथ मिलकर सोचो ।
जिस दिन एंटोनियो माइनो मारीयो को भारत में विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दी गई उसी दिन से भारतीय संस्कृति बोले तो हिन्दू संस्कृति को समाप्त करने के प्रयत्नों को नई ताकत मिली असली हमला तो तब शुरू हुआ जब देशद्रोही हिन्दुविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह ने एंटोनियो माइनो मारीयो को अपना प्रमुख चुन लिया ।
जब देशभक्त भारतीयों ने इस विदेशी ईसाई मिशनरी का प्रधानमन्त्री बनने का विरोध किया तो तर्क दिया गया कि, इसकी शादी एक हिन्दू से हुई है इसलिए एंटोनियो माइनो मारीयो हिन्दू हो गई ,जो कि सरासर झूठ है । लोगों को उसी तरह गुमराह करने का षड्यन्त्र है जिस तरह लोगों को इसका असली नाम एंटोनियो माइनो मारीयो न बताकर एक हिन्दू नाम बताकर व अंग्रेजी परिधान(जो हिलेरी कलिंटन व एंटोनियो की माता जी पहनती हैं) की जगह हिन्दू परिधान बोले तो भारतीय परिधान पहनाकर सच को छुपाकर हिन्दू के रूप में दिखाकर किया गया । आज भी ये प्रयत्न यथावत जारी है ।
अगर ये हिन्दू हो गई होती तो क्या ये अपनी बेटी की शादी एक हिन्दु से नहीं करती (हालांकि शादी/पूजा करनी न करनी किससे/कैसे करनी निजी मामला है पर जोर-शोर से फैलाए जा रहे झूठ को बेनकाब कर देश को इस गुलामीं के दौर से बाहर निकालना जरूरी है) हिन्दू धर्म अपनाने की एक शुद्धी प्रक्रिया है वो भी उन हिन्दुओं की घरवापसी के लिए है जो जिहादियों व धर्मांतरण के दलालों के चंगुल में फंस कर या उनके अत्याचारों से तंग आकर अपनी पूजा-पद्धति बदल लिए ।एंटोनियो इस पद्धति के योग्य है ही नहीं। फिर भी क्या एंटोनियो उस शुद्धी प्रक्रिया से गुजरी ? नहीं न । फिर ये झूठ किस लिए ?
अगर इस झूठ को मान भी लिया जाए तो भी एक विदेशी को देश को गुलाम बनाने का अधिकार नहीं दिया जा सकता चाहे वो परावर्तित हिन्दू ही क्यों न हो । हम देशभक्त ईसाईयों से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि वे एंटोनियो और देश में सक्रिय अन्य ईसाई मिशनरियों से अपने आप को अलग कर लें वरना इन विदेशियों द्वारा किए जा रहे हिन्दू विरोधी देश विरोधी कार्यों की कीमत कहीं उनको न चुकानी पड़ जाए ?
§ क्योंकि सच्चाई यह है कि एंटोनियो माइनो मारीयो एक अंग्रेज ईसाई है और हिन्दुओं व हिन्दूसंस्कृति बोले तो भारतीय संस्कृति को तबाह बर्बाद करने के हरेक प्रयत्न का प्रेरणा स्रोत व ताकत है बोलने से क्या फर्क पड़ता है आओ जरा कर्म देखें सबसे पहला कदम कांग्रेस के पहले शूद्र अध्यक्ष सीता राम जी केसरी को अपमानित कर हटाना व खुद को उस कुर्सी पर बिठाना। कांग्रेस के महत्वपूर्ण पदों से चुन चुन कर ताकतवर हिन्दू नेताओं को हटाना व हर जगह ईसाईयों को आगे बढ़ाना ।
§ एंटोनियो माइनो मारियो के इस कुर्सी पर पहुंचने व पकड़ मजबूत करने की प्रक्रिया में देश को स्वर्गीय संजय गाँधी, स्वर्गीय राजीव गाँधी, स्वर्गीय माधव राव सिन्धिया व स्वर्गीय राजेश पायलट जैसे हिन्दुओं को खोना पड़ा और संयोग देखिए इन सब का आकस्मिक स्वर्गबास हुआ । इसे भी संयोग ही कहेंगे कि इन में से अगर एक भी जिन्दा होता तो आज भारत सरकार इस विदेशी अंग्रेज की गुलाम न होती ।
§ क्या यह भी संयोग ही है कि भारतीय जनता को यह तक न बताया गया कि यह अंग्रेज कौन है ? इसके माता-पिता क्या करते थे ,या करते हैं ?
§ क्या ये भी संयोग ही है कि जिस क्वात्रोची का पैसा छुड़वाने के लिए इस अंग्रेज की गुलाम सरकार के कानूनमन्त्री को रातों-रात लंदन जाना पड़ता है ? उसी क्वात्रोची के बारे में यह समाचार आता है कि स्वर्गीय राजीव गाँधी जी के कत्ल से पहले इस क्वात्रोची की मुलाकात एल.टी.टी.ई प्रमुख प्रभाकरण के दूत वालासिंधम से फ्रांस के एक होटल में हुई थी।
क्या यह भी एक संयोग ही है कि जिस बैबसाइट हिन्दूयुनिटी डाट काम पर इस समाचार व ऐसे षडयन्त्रों की सच्चाई को जन जन तक पहुँचाने का प्रयत्न किया जाता है उसे यह गुलाम सरकार बलाकॅ कर देती है !
§ क्या ये भी एक संयोग ही है कि 1997 में जिस डी.एम.के को राजीव जी के कत्ल के लिए जिम्मेवार ठहराकर कांग्रेस ने सरकार गिराई उसी डी.एम.के के साथ मिलकर एंटोनियां ने 2004 में प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की।
§ क्या ये भी संयोग ही है कि पिछले लगभग पांच वर्षों से एंटोनिया की गुलाम सरकार सता में होने के बाबजूद राजीव जी के कत्ल की तह तक पहुंचने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया उल्टा कातिलों के प्रति सहानुभूति दिखाकर जांच को बाधित करने के प्रयत्न किए गए ।
§ ये कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जिन लोगों को राजीव जी के कातिलों को बेनकाव करने की जी तोड़ कोशिश करनी चाहिए थी उन लोगों ने ही अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए षडयन्त्र की तह तक पहुंचने के सारे रास्ते बन्द कर दिए।
क्या इसे भी एक संयोग ही मानें कि जब से यह अंग्रेज नेत्री विपक्ष बनीं फिर नेत्री सरकार तब से कभी हिन्दूराष्ट्र भारत को ईसाई बना देने की पोप द्वारा घोषणा,कभी टेरेसा तो कभी केरला की किसी और महिला को अलंकृत कर चर्च द्वारा ईसाईयत का प्रचार-प्रसार, पोप की मृत्यु पर धर्म निर्पेक्ष सरकार द्वारा तीन दिन का शोक और मानो यह सब ईसाईयत के प्रचार-प्रसार के लिए काफी न हो तो साधु सन्तों का ईसाईयों द्वारा कत्ल और इस से भी काम न चले तो फिर साधु-सन्तों-सैनिकों को झूठे आरोप लगाकर बदनाम करना और फिर हिन्दू आतंकवादी कहकर जेलों मे डालना और अमानवीय यातनांयें देकर प्रताड़ित करना । जले पर नमक छिड़कने के लिए मर्यादापुर्षोत्तम भगवान राम के अस्तित्व को नकारना ।
अब आप इन सब घटनाओं-दुर्घटनाओं को संयोग कहते हो तो कहो पर हिन्दू जनता इसे संयोग नहीं षड्यन्त्र मानती है। भविष्य में बनने वाली किसी भी राष्ट्रवादी सरकार से मांग करती है कि सत्ता में आते ही सबसे पहले इस अंग्रेज एंटोनियो माइनो मारियो को गिरफ्तार कर इसका नार्को टैस्ट करवाकर इस हिन्दुविरोधी-देशविरोधी षड्यन्त्र की तह तक पहुँचा जाए और दोषियों को फांसी पर लटकाया जाए ।
पता लगाया जाए कि हिन्दुओं को बदनाम कर हिन्दुस्थान को तवाह करने के षड्यन्त्रों को आगे बढ़ाने के लिए कहीं ईसाई देशों की खुफिया एजैंसियों की मदद तो नहीं ली जा रही और अगर राष्ट्रवादी सरकार नहीं बन पाती है तो सेना को शासन अपने हाथ में लेकर इस षड्यन्त्र का पर्दाफास कर देश को बर्बादी से बचाना चाहिए।
§ आज अगर आप कांग्रेस के कोर ग्रुप पर या सरकार के मालदार पदों पर नजर दौड़ाएं तो आपको दूर-दूर तक कांग्रेस के कोटे का कोई ताकतवर हिन्दू नेता नजर नहीं आएगा। सब जगह या तो ईसाई नजर आंएगे या फिर वे कमजोर हिन्दू जिनका अपना कोई जनाधार न होने के कारण उनके पास अपना स्वाभिमान व देशहित बेचकर एंटोनिया की गुलामी करने के सिबाय कोई और रास्ता नहीं है ।
· आप सबको याद होगा श्रीमति प्रतिभा पाटिल जी राष्ट्रपति कैसे चुनी गईं लेकिन एंटोनियो को उन पर भी भरोसा नहीं इसलिए उनका निजी सचिव भी ईसाई बनवाया। समझने वालों को संदेश बिल्कुल साफ है कि या तो ईसाई बनो या गुलाम नहीं तो कांग्रेस के कोर ग्रुप या सरकार के मालदार पदों को भूल जाओ ।
· जो ताकतवर हिन्दूनेता हैं उनको कमजोर करने के लिए एंटोनियो माइनो मारीयो किसी भी हद तक जा सकती है इसका प्रमाण देखना हो तो आपको हिमाचल कांग्रेस में ताकतवर हिन्दूनेता राजा वीरभद्र सिंह जी की जगह ईसाई विद्या सटोक्स को विपक्ष का नेता बनाने के घटनाक्रम को ध्यान से समझना होगा ।
ü यह घटनाक्रम सामने आना शुरू होता है अगस्त 2006 में एंटोनियो माइनो मारीयो के हिमाचल दौरे से। यह वह वक्त था जब धर्मांतरण के ठेकेदार ईसाईयों व देशभक्त हिन्दुओं के बीच धर्मांतरण के मुद्दे पर संघर्ष अपने चरम पर था। एक तरफ ईसाई केन्द्र में अंग्रेज एंटोनियो की गुलाम सरकार होने से उत्साहित होकर चलाए जा रहे जबरदस्त धर्मांतरण अभियान को हिन्दुओं व उनके संगठनों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। दूसरी तरफ राज्य में कांग्रेस सरकार होने पर धर्मांतरण के लिए जो अनुकूलता, सहयोग व सुविधायें देश के अन्य राज्यों में मिल रही थीं वे हिमाचल में नहीं मिल पा रही थीं क्योंकि राजा वीरभद्र सिंह जी छल कपट व आर्थिक अनियमितता से करवाए जा रहे धर्मांतरण के विरूद्ध थे । ऊपर से हिन्दुओं के वापिस अपने हिन्दू धर्म में लौटने के घर वापसी अभियान की सफलता से धर्मांतरण के दलाल देशी विदेशी ईसाई मिशनरी छटपटाए हुए थे।
दिल्ली में बैठे धर्मांतरण के ठेकेदार ईसाईयों ने जब एंटोनिया को यह सबकुछ बताया तो एंटोनिया के क्रोध का ठिकाना न रहा और एकदम घूमने के बहाने शिमला आई और यहां पर हिमाचल में सक्रिय धर्मांतरण के ठेकेदार ईसाईयों ने धर्मांतरण के काम में हिन्दूसंगठनों द्वारा पैदा की जा रही रूकाबटों व राजा वीरभद्र सिंह द्वारा अपनाए जा रहे न्यायसंगत रूख के बारे में बताया । बस फिर क्या था एंटोनिया ने आव देखा न ताव झट से राजा वीरभद्र सिंह जी को शीघ्रतिशीघ्र कठोर कार्यवाही कर धर्मांतरण के काम में आ रही रुकाबटों को दूर करने का आदेश दिया । राजा वीरभद्र सिंह जी ने भी ब्यान दे दिया कि हिन्दूसंगठनों से जुड़े कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया जाएगा। लेकिन मन से तो राजा वीरभद्र सिंह जी धर्मांतरण के ठेकेदारों द्वारा धर्मांतरण के लिए अपनाए जा रहे असंवैधानिक अमानवीय तरीकों के विरूद्ध थे व हिन्दुओं व उनके संगठनों द्वारा चलाए जा रहे आन्दोलन की भी जानकारी उन्हें जरूर रही होगी जिसका बिराट रूप ठीक दो महीने बाद प्रदेशभर में आयोजित हिन्दूसम्मेलनों के रूप में देखने को मिला ।
ü राजा वीरभद्र सिंह जी के हिन्दुत्वनिष्ठ होने व बिराट हिन्दूसम्मेलनों का असर हिमाचल सरकार द्वारा लाए गए धर्म-स्वतन्त्रता विधेयक(इस कानून का महत्व समझने के लिए आपको ये ध्यान में रखना होगा कि किस तरह उतर पूर्व में इस सैकुलर गिरोह द्वारा प्रयोजित धर्मांतरण से वहां कई राज्यों की हिन्दू आवादी लगभग 100% तक ईसाई बना दी गई) के निर्बिरोध पास होने के रूप में दिखा । जिसकी सब देशभक्त व्यक्तियों ,संगठनों, राजनैतिक दलों, समाचारपत्रों,टी वी चैनलों ने दिलखोलकर प्रशंसा की व इसे देशभक्ति से ओतप्रोत सराहनीय ऐतिहासिक कदम बताया ।
लेकिन देशद्रोही हिन्दुविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह को यह बात नागवार गुजरी और इस गिरोह ने धार्मिक स्वतन्त्रता के नाम पर धर्म स्वतन्त्रता विधेयक का विरोध किया व देश विदेश में हिन्दुविरोधी-देशविरोधी अभियान चलाकर ईसाई देशों से दबाव डलवाकर और पत्र लिखबाकर मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह जी पर धर्म-स्वतन्त्रता विधेयक को वापिस लेने का दबाव बनवाया लेकिन राजा वीरभद्र सिंह जी ने हिन्दूहित-देशहित में लिए गए निर्णय से पीछे हटने से मना कर दिया ।
ü इनका यह निर्णय और भी महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्येंकि वह उस राजनीतिक दल से सबन्धित हैं जो देशद्रोही-हिन्दुविरोधी जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गिरोह का प्रमुख सदस्य है और जिसकी अध्यक्षा धर्मांतरण समर्थक अंग्रेज एंटोनियो माइनो मारीयो है । राजा वीरभद्र सिंह जी को इस राष्ट्रवादी हिन्दुत्वनिष्ठ काम की कीमत चुकानी पड़ी। एक उनकी इच्छा के विरूद्ध समय से पहले चुनाव करवा दिए जिसका विद्या स्टोक्स ने समर्थन किया, दूसरा उनकी योजना के अनुसार टिकटों का बितरण नहीं किया गया । कुल मिलाकर केन्द्रीय नेतृत्व के गलत निर्णयों की वजह से उन्हें चुनाव में हरबा दिया गया मानों इतने षड्यन्त्र काफी न हों तो एक कदम आगे बढ़कर एंटोनियो माइनो मारीयो ने अपनी योजनानुसार ईसाई विद्यास्टोक्स को नेता विपक्ष बनाकर हिमाचल में ईसाई शासन की नींब रख दी पर हमें पूरा भरोसा है कि हिमाचल की हिन्दुत्वनिष्ठ जनता एंटोनियो के इस षड़यन्त्र को कभी पूरा नहीं होने देगी । हिमाचल का हर प्रबुध नागरिक जानता है कि हिमाचल में वर्तमान में आज कांग्रेस जो भी है राजा वीरभद्र सिंह जी की वजह से है वरना एंटोनिया की हिन्दुविरोधी नीतियों की वजह से आज तक हिमाचल कांग्रेस की स्थिति गुजरात कांग्रेस जैसी हो चुकी होती ।
ü यह सब तब है जब हिमाचल में हिन्दू 98% से अधिक हैं । राजा वीरभद्र सिंह जी एंटोनियो के ईसाई जुनून का अकेले शिकार नहीं हैं । सत्यव्रत चतुर्वेदी(आपको याद होगा किस तरह मुस्लिम जिहादियों के ठेकेदार अमर सिंह द्वारा शहीद मोहन चन्द शर्मा जी का अपमान करने पर कांग्रेस ने खामोशी धारण कर ली लेकिन देशभक्त सत्यब्रत जी ने इस देशद्रोही हरकत पर अमर सिंह को पागल करार दिया) जैसे अनेक राष्ट्रभक्त कांग्रेसी आज वनवास काट रहे हैं । उन्हें सिर्फ एंटोनिया की गुलाम सरकार के हिन्दुविरोधी कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए आगे लाया जाता है । मेरा सभी देशभक्त हिन्दूकांग्रेसियों से अपनी चुप्पी तोड़ कर कांग्रेस को इस हिन्दुविरोधी देशविरोधी सोच से बाहर निकालने के लिए संघर्ष करने की विनम्र प्रार्थना है !
जागो ! हिन्दू जागो !
छतीसगढ और आंध्रप्रदेश में हिन्दुओं की संख्या 90% से अधिक होने के बावजूद एंटोनिया ने ईसाई मुख्यमन्त्री बनवाए ।
आंध्रप्रदेश में यह ईसाई मुख्यमन्त्री मुसलमानों को संविधान के विरूद्ध जाकर आरक्षण देता है । जब माननीय न्यायालय इस ईसाई को देशविरोधी-सांप्रदायिक निर्णय न करने का आदेश देता है तो यह ईसाई अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति को आगे बढ़ाते हुए संविधान के विरूद्ध जाना ही उचित समझता है,फिर ईसाईयों और मुसलमानों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करता है मानो 90% हिन्दुओं को हर अधिकार से वंचित करना ही इसकी आका विदेशी अंग्रेज एंटोनिया का एकमात्र लक्ष्य हो । मानो हिन्दुओं के खून पसीने की कमाई को यह ईसाई अपने बाप की कमाई समझता हो इसलिए येरूशलम यात्रा के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 80000 रू देने की घोषणा भी करता है । किसी ने क्या खूब कहा है- “ अंधा बांटे रेबड़ियां अपनो को मुड़-मुड़ दे ”। फिर हैदराबाद बम्ब धमाकों के आरोपियों को छोड़ कर आटो देने की घोषणा करता है मानो कह रहा हो- हिन्दुओं को इसी तरह मारते रहो ! देखा न क्या होती है हिन्दुविरोधी-देशविरोधी मानसिकता !
इसी तरह केन्द्रसरकार में अच्छा काम कर रहे हिन्दू श्री प्रणवमुखर्जी को रक्षामन्त्री के पद से हटाबाकर ईसाई एन्टनी को रक्षामन्त्री बनवाया । इस फेरबदल का सबसे बढ़ा कारण एंटोनिया का हिन्दुओं पर अविश्वास व अपने ईसाई संप्रदाय को आगे बढ़ाकर हिन्दुओं को महत्वपूर्ण पदों से दूर करना है । क्योंकि निकट भविष्य में खरबों रूपये के रक्षा सौदे होने वाले थे और उनसे मिलने वाले कमीशन की राशी अरबों रूपये तक जा सकती थी और इतनी बड़ी राशी अगर अकेले श्री प्रणवमुखर्जी जी के पास रह जाती तो वे बहुत ताकतवर हो जाते और अगर आपस में बांट ली जाती तो श्री नटबर सिंह जी की तरह कभी भी पोल खोल देते(आपको याद होगा कि किस तरह तेल के बदले अनाज कार्यक्रम में दलाली का मामला सामने आने पर जब नटवर जी को बलि का बकरा बनाने की कोशिश सरकार द्वारा की गई तो उन्होंने सपष्ट कर दिया था कि ये सब एंटोनियो ने करवाया था । जरा सोचो जो एंटोनियो ईराक में भूखे मर रहे मुसलमानों के लिए जा रहे भोजन में भी दलाली ढूंढती है वो और क्या छोड़ेगी, नार्को करवाकर स्विस बैंक के खातों का पता लगाओ सब पर्दाफाश अपने आप हो जायेगा) । ऊपर से हिन्दू होने के नाते विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता अपने संप्रदाय का थोड़े ही है । इसलिए हिन्दू प्रणबमुखर्जी को हटाकर अपने संप्रदाय के एंटनी जी को रक्षामन्त्री बनवाया ताकि सब काम आसानी से अंजाम दिये जा सकें । अगर ऐसा नहीं था तो फिर देश को बताया जाना चाहिए कि और क्या कारण था ?
रक्षा सौदों से क्वात्रोची के बारे में याद आया- कौन क्वात्रोची अरे वही क्वात्रोची जिसके बारे में कुछ समाचारपत्रों व इंटरनैट पर यह छपा था कि स्वर्गीय राजीव गांधी जी की हत्या से पहले फ्रांस के एक होटल में क्वात्रोची की बैठक एल टी टी ई प्रमुख प्रभाकरण के दूत वालासिंघम के साथ हुई थी, वही क्वात्रोची जिसके लंदन बैंक के खाते में पिछली सरकार द्वारा जब्त करवाए गए वोफोर्स दलाली काँड के पैसे को छुड़बाने के लिए वर्तमान सरकार में कानूनमन्त्री श्री हँसराज जी भारद्वाज विशेष रूप से लंदन गये ।
सोचने वाला विषय यह है कि बोफोर्स दलाली काँड के पैसे से न तो श्री मनमोहन जी का सबन्ध है न श्री हँसराज जी भारद्वाज का । फिर उनको ये सब करने की क्या जरूरत थी ? हमारे विचार में ये पैसे छुड़बाना इनकी जरूरत नहीं मजबूरी थी क्योंकि ये लोग जिस सरकार में मन्त्री हैं वह सरकार एंटोनियो माइनो मारीयो की गुलाम है और क्वात्रोची, एंटोनियो के परिबारिक मित्र हैं व उनके ऊपर ही वोफोर्स दलाली काँड में कमीशन खाने का आरोप है । बेचारे राजीव गांधी जी ब्यर्थ में षड्यन्त्र का शिकार हुए । हमारा तो शुरू से ही यह मानना था कि राजीव जी जैसा व्यक्ति यह सब नहीं कर सकता । इस लंदन भागमभाग से बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि वोफोर्स दलाली काँड क्वात्रोची और एंटोनियो की साजिश थी क्योंकि अगर ऐसा न होता तो राजीव जी के कत्ल के षडयन्त्रकारी क्वात्रोची द्वारा दलाली में लिए गए पैसे को छुड़वाने की एंटोनियो को क्या जरूरत थी ?
जो देशबिरोधी-चापलूस एंटोनियो को त्याग की मूर्ति बताकर भोले-भाले हिन्दुओं को गुमराह करते हैं उन्हें एंटोनियो के इस रूप को भी नहीं भूलना चाहिए । कुछ लोग यह कुतर्क देते हैं कि एंटोनियो ने प्रधानमन्त्री पद को ठोकर मार दी , त्याग कर दिया हमें इनकी बेवकूफी पर गुस्सा नहीं तरस आता है कि जो एंटोनियो प्रधानमन्त्री बनने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति जी से झूठ बोलती हैं कि उसे 273 सांसदो का समर्थन प्राप्त है। वह झूठ सारे देश के सामने पकड़ा जाता है । वही एंटोनियो 2004 में प्रधानमन्त्री बनने के लिए फिर से मारी-मारी फिरती हैं वह भी उस स्थिति में जब कांग्रेस को बहुमत से लगभग आधी सीटें मिलती हैं । एंटोनियो राष्ट्रपति भवन जाती हैं खुद प्रधानमन्त्री बनने के लिए बुलाबा पत्र लेने के लिए लेकिन, देशभर में हो रहे विरोध व भारतीय संविधान की भाबना (एक्ट 1955 के अनुसार किसी देश के नागरिक को भारत में बसने पर उतने ही अधिकार मिलते हैं जितने किसी भारतीय को उस देश में बसने पर मिल सकते हैं) को ध्यान में रखते हुए जब बुलाबा पत्र नहीं मिलता है तो ह्रदय परिबर्तन हो गया, ठोकर मार दी, त्याग कर दिया, मातम मनाया गया, आँसु बहाए गए, पूरा फिल्मी ड्रामा रचा गया । भाबुक हिन्दुओं को मूर्ख बनाने के लिए वो भी लाइब सरकारी चैनल पर । ये भी न सोचा कि ये सरकारी चैनल भारतीयों की खून पसीने की उस कमाई से चलते हैं जो टैक्स के रूप में दी जाती है ,देश के विकास के लिए न कि किसी विदेशी को सत्ता न मिलने पर उसकी नौटंकी देखने के लिए । किसी ने क्या खूब कहा है- हाथ न लागे थू कौड़ी ।
जो लोग इस अंग्रेज एंटोनियो को प्रधानमन्त्री बनाने के लिए इतने कुतर्क दे रहे थे , काश उन्हें याद होता- शहीद भगत सिंह जैसे नौजवानों का इस देश से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए फांसी पर झूलना । काश उनको ज्ञान होता भारत के उस कानून का जिसके अनुसार सेना का कोई अधिकारी किसी विदेशी से शादी नहीं कर सकता । फिर इन अधिकारियों से देश की सुरक्षा से सबन्धित गुप्त जानकारी लेने वाला प्रधानमन्त्री विदेशी कैसे हो सकता है ?
काश उनको ज्ञान होता ईसाई बहुल देश फिजी की घटनाओं का । फिजी एक छोटा सा देश है इस देश में हिन्दुओं की बड़ी संख्या है और इन हिन्दुओं को यहां बसे हुए 20-25 नहीं सैंकड़ों वर्ष हो गए हैं। सोचो जरा वहां पर हिन्दू को अल्पसंख्यक होने के नाते क्या विशेषाधिकार प्राप्त हैं ? अरे ! क्या बात करते हो , विशेषाधिकार तो दूर मूलाधिकार तक प्राप्त नहीं हैं। भारत में इन अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए हिन्दू दोयम दर्जे के नागरिक बना दिये गए !
विश्वास नहीं होता तो ये जानो
कुछ वर्ष पहले यहां हुए चुनावों में फिजी की जनता ने एक हिन्दू श्री महेन्द्र चौधरी जी को प्रधानमन्त्री चुना। क्या वहां के ईसाईसों ने उन्हें प्रधानमन्त्री स्वीकार किया ? नहीं न , क्यों नहीं, जरा सोचो, हिन्दू जनसंख्या की कमी नहीं ,हिन्दू सैंकड़ों वर्षों से वहां बसे हुए हैं फिर भी विदेशी । यहां भारत में अभी कुछ वर्ष पहले आई एक विदेशी अंग्रेज (जो भारत-पाक युद्ध के दौरान भागकर अपने मूलदेश इटली के दूताबास में छिप गई । यह सोच कर कि कहीं अगर भारत की हार हो गई तो सुरक्षित इटली पहुँच जांऊ )को- हर तरह के झूठ बोलकर,नाम बदलकर,वेश बदलकर -भोले भाले शांतिप्रिय हिन्दुओं को फुसालाकर उसे भारतीय बताकर, उसके गुलाम बनने की होड़ ।
एक ईसाई जार्ज स्पीट उठा दर्जन भर स्टेनगनधारी युवक साथ लिए । चुने हुए प्रधानमन्त्री महेन्द्र चौधरी को बंधक बनाया जान से मारने की धमकी देकर त्यागपत्र लिखवाकर जान बख्सी । क्या वहां पुलिस नहीं थी ? सेना नहीं थी ?(भारतीय सेना को सोचना चाहिए) क्या वहां यू .एन. ओ. नहीं था ? सब कुछ था पर वहां क्योंकि ईसाई हिन्दुओं से ज्यादा हैं इसलिए ईसाई हित में सबकुछ जायज । हमारे भारत में कुछ वर्ष पहले आई एक अंग्रेज एंटोनियो, नाम बदल कर, वेश बदल कर ,सारी की सारी सरकार को गुलाम बनाकर बैठ गई । इसलिए यहां हिन्दूविरोध में सबकुछ जायज ।
जागो ! हिन्दू जागो !
हमें इस बात में कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस इटालिएन अंग्रेज के प्रभाव में आकर देशद्रोह-हिन्दूविरोध के रास्ते पर चल निकला है । परन्तु कांग्रेस में लम्बे समय से सक्रिय देशभक्त कार्य कर्ताओं की कमी नहीं, जो आज इन देशद्रोहियों की जुंडली की वजह से, योजनाबद्ध उपेक्षित किए जा रहे हैं व बड़ी जिम्मेबारियों से दूर रखे जा रहे हैं ।
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