कोई रूप नहीं बदलेगा सत्ता के सिंहासन का कोई अर्थ नहीं निकलेगा बार-बार निर्वाचन का एक बड़ा ख़ूनी परिवर्तन होना बहुत जरुरी है अब तो भूखे पेटों का बागी होना मजबूरी है
जागो कलम पुरोधा जागो मौसम का मजमून लिखो चम्बल की बागी बंदूकों को ही अब कानून लिखो हर मजहब के लम्बे-लम्बे खून सने नाखून लिखो गलियाँ- गलियाँ बस्ती-बस्ती धुआं-गोलियां खून लिखो
हम वो कलम नहीं हैं जो बिक जाती हों दरबारों में हम शब्दों की दीप- शिखा हैं अंधियारे चौबारों में हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाले हैं
जब तक भोली जनता के अधरों पर डर के ताले हैं तब तक बनकर पांचजन्य हम हर दिन अलख जगायेंगे बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे
कोई रूप नहीं बदलेगा सत्ता के सिंहासन का
ReplyDeleteकोई अर्थ नहीं निकलेगा बार-बार निर्वाचन का
एक बड़ा ख़ूनी परिवर्तन होना बहुत जरुरी है
अब तो भूखे पेटों का बागी होना मजबूरी है
जागो कलम पुरोधा जागो मौसम का मजमून लिखो
चम्बल की बागी बंदूकों को ही अब कानून लिखो
हर मजहब के लम्बे-लम्बे खून सने नाखून लिखो
गलियाँ- गलियाँ बस्ती-बस्ती धुआं-गोलियां खून लिखो
हम वो कलम नहीं हैं जो बिक जाती हों दरबारों में
हम शब्दों की दीप- शिखा हैं अंधियारे चौबारों में
हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं
डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाले हैं
जब तक भोली जनता के अधरों पर डर के ताले हैं
तब तक बनकर पांचजन्य हम हर दिन अलख जगायेंगे
बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे